अब इसे एक और तरीके से भी समझे कि क्यों यह भारत के लिए कदापि उपयुक्त नहीं है. यदि सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर ही महत्वपूर्ण होती है तो आप जान लीजिये इस वर्ष सर्वाधिक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर इराक नामक देश की है जो कि 10.1% है. पूरे यूरोप की अगर देखें तो 2% के आसपास है. अमेरिका की भी 1.6% है. और जापान की तो 1% है.
इस देश में धन का बंटवारा इस प्रकार है कि ऊपर के 1% प्रतिशत तबके के पास लगभग आधी दौलत है और नीचे के 30% प्रतिशत तबके के पास मात्र 1.4% दौलत है. इस प्रकार से यदि मात्र ऊपर के 1% की आमदनी आप दुगुनी कर दें तो भी आपको देश की आमदनी या सकल घरेलू उत्पाद 5% से बढ़ोत्तरी में नज़र आएगा.
[सकल घरेलू उत्पाद बढ़ोत्तरी, Sensex सूचकांक और देश की प्रगति : भाग 1]
अमेरिका जैसे देश में जहां के आंकड़े काफी अधिक मात्र में सही माने जा सकते हैं क्योंकि वहाँ अधिक प्रतिशत में लोग आयकर और अधिक प्रत्यक्ष करों का भुगतान करते हैं. वहाँ पर भी पिछले 20 वर्षों में 35% सकल घरेलू उत्पाद बढ़ा है और व्यक्ति की आय 20 वर्षों 7% की वृद्धि है.
दूसरे उदाहरण से समझें कि अमेरिका जैसे देश में सबसे अमीर व्यक्ति की आय 30 करोड़ और न्यूनतम की लगभग 45 लाख, इस प्रकार से उनमें फिर भी लगभग 80 गुने का फर्क है. जहां तक भारत की बात है वहाँ पर सबसे धनवान की आय 60 करोड़ और न्यूनतम की (सरकारी आंकड़े) 1.20 लाख है यानि 5000 गुने का अंतर है. अभी हम सब यह जानते हैं कि बहुत से लोग इस से कम पर काम करने के लिए मजबूर हैं क्योंकि उन्हे नौकरी नहीं मिल पाती है. मेरे व्यक्तिगत अनुमान से 90% से अधिक भारतीय अगर unemployed नहीं हैं तो underemployed अवश्य हैं.
[सकल घरेलू उत्पाद बढ़ोत्तरी, Sensex सूचकांक और देश की प्रगति : भाग 2]
शिक्षा
यह तो उसी प्रकार है कि आप शिक्षा के क्षेत्र में आप फीस बढ़ा दीजिये, अब लोग अधिक पैसा खर्च करने लग गए और आप सोचें कि शिक्षा बेहतर हो गयी है ज्ञान अधिक आ गया है क्योंकि इसका सकल घरेलू उत्पाद में योगदान बढ़ गया है.
हमेशा हमारे देश में शिक्षा के लिए सरकारी बजट के प्रतिशत पर रोना रोया जाता है. पर क्या जो हम पढ़ा रहे हैं उसका कुछ उपयोग भी हो रहा है इस पर कोई भी विचार नहीं होता. इसलिए सबसे पहले शिक्षा और साक्षरता में अंतर और इनकी आवश्यकताओं में अंतर को समझना पड़ेगा. सरकार का सारा बजटीय पैसा साक्षरता अभियान की भेंट चढ़ रहा है और सरकार इसे शिक्षा मान रही है.
असंगठित क्षेत्र के रोज़गार
मोरबी जैसा 3 लाख का गुजरात का गाँव जिसमें आधे से अधिक लोग रोजगार में लिप्त हैं. लगभग 50% की रोजगार की दर पूरे विश्व में नहीं है. परंतु जब आप और अधिक ध्यान से साक्षरता को देखें तो 83% से अधिक लोग स्नातक भी नहीं हैं. मात्र 12% के लगभग स्नातक हैं. कोई IIT नहीं कोई MBA नहीं वरन वह लोग IIT और MBA वालों को नौकरी देते हैं.
इस देश में ऐसे 50 से अधिक उद्योग आपको मिल जाएंगे जहां पर परंपरागत शिक्षा से लिप्त पारिवारिक रूप से काम किए जा रहे हैं. मेरठ का खेल समान का, लुधियाना का क्रिकेट के बैट, गुजरात की बाँदी साड़ी का और ऐसे कितने ही उद्योग भारत के कौशल का उदाहरण देते हैं. उन सबमें रोजगार भी है पर शायद देश के आर्थिक सर्वेक्षण में उसे unorganized sector की तरह देखते है और इसमें से 75% सरकार की गिनती में ही नहीं है.
स्वास्थ्य
इसी प्रकार आप देखें कि देश में स्वास्थ्य की स्थिति इस बात से आँकी जाती है कि दवाइयों और अस्पताल में कितना खर्च हुआ है. जबकि अधिक दवाई और अधिक अस्पताल का खर्चा यह बताता है कि देश कितना बीमार है. अब ज्यों ज्यों दवाइयाँ और अस्पताल का खर्चा महंगा हुआ है उसका एक कारण यह भी है कि स्वास्थ्य बीमा नामक क्षेत्र का पदार्पण हुआ.
यह ठीक है कि बहुत लोगों का रोजगार उत्पन्न हुआ पर, कहीं पर देश का स्वास्थ्य सुधरता नहीं लगता. अब नए लोगों के इस प्रकार से रोजगार उत्पन्न करने से किसी सकारात्मक काम की उपयोगिता नहीं है. पर सकल घरेलू उत्पाद बढ़ गया है.
सकल घरेलू उत्पाद और जटिल कर प्रक्रिया
इसी प्रकार आप देश की कर प्रक्रिया इतनी जटिल कर दीजिये कि देश में मात्र 2% की दर से निकलने वाले CA की सबको ज़रूरत पड़े. अब देश का सकल घरेलू उत्पाद बढ़ गया परंतु उतने अधिक रास्ते CA ने कर से बचने के निकाल दिये. सरकार की आमदनी कम हुई क्योंकि हर एक व्यक्ति को जो पैसा CA को देना है, उसे पहले कमाने या बचाने का तरीका वही CA देगा.
ऐसे में देश की GDP ज़रूर बढ़ेगी पर क्या यह देश की तरक़्क़ी की निशानी है या CA की तरक़्क़ी की. और मेरे कई मित्र सीए हैं उन्हे देख कर मुझे व्यक्तिगत रूप से बहुत दु:ख होता है. 15 से 17% इनका परिणाम होता है उत्तीर्ण होने का, मतलब देश का बेहतरीन 20% दिमाग क्या काम करता है? एक जेब से दूसरी जेब में पैसा डालता है.
मेरे व्यक्तिगत विचार से मेरे देश में तरक़्क़ी का मतलब गरीब और अमीर में खाई का पाटना है. ना कि देश की आमदनी बढ़ाना. देश में धन की कमी नहीं है केवल युवाओं को सुअवसर प्रदान करने की आवश्यकता है. और इसी के अनुरूप परिमाण नापने की आवश्यकता है.