रेगुलर यूनिवर्सिटी सिस्टम से अलग कहीं अच्छी जगह पढ़ने के लिए आवेदन कीजिये तो लिखा होता है “Candidates with Excellent Academic record should apply”… अरे क्या Excellent academic record यार! कोई अपनी पिछली जिन्दगी में क्या किया, क्या नहीं किया इससे तुमको क्या मतलब है? कोई तुम्हारे यहाँ पढ़ने के लिए आवेदन किया है तो भविष्य के बारे में सोच के किया है न कि अपना इतिहास तुमसे लिखवाने के लिए.
तुमको उसकी क्षमता परखनी है तो प्रवेश परीक्षा का स्तर ऊँचा रखो. अभ्यर्थी का इंटरव्यू लो, उससे आधा घंटा बात करो. वो उस फील्ड में क्यों जाना चाहता है इस पर उससे कुछ लिखित में मांगो. इसी से पता चल जायेगा कि अभ्यर्थी कितना सीरियस है.
जब ये सब नहीं करना है तो काहे के ‘विशिष्ट संस्थान’? रेवड़ी की भांति डिग्री बाँटने के लिए तो रेगुलर यूनिवर्सिटी हैं ही. इसीलिए तुम मूर्खों को original टैलेंट नहीं मिलता है. रैंक होल्डर तो व्यापारी होते हैं. उनको पता होता है कि कितना लिखने से कितना नम्बर मिलता है. मौलिक शोध में उनकी रुचि थोड़े होती है.
तुम लोग दुनिया के श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में पढ़े लोगों को अपनी फैकल्टी रखते हो जो दुनिया से कुछ सीख कर नहीं आते.
प्रोफेसर एडवर्ड विटन (SNS, IAS Princeton) विश्व के महानतम गणितज्ञों में से हैं. प्रोफेसर विटन (Edward Witten) ने हिस्ट्री में बीए किया था, फिर पत्रकारिता की, उसके बाद अर्थशास्त्र पढ़ने चले गए. विभाग बदलते हुए अंततः डेविड ग्रॉस (नोबेल 2004) के अधीन फिजिक्स में पीएचडी की.
भारतीय ‘विशिष्ट फैकल्टी’ की बनाई पद्धति के अनुसार चलते तो उन्हें इतिहास पढ़ने के बाद गणित विषय सात जन्म में न मिलता.
ये ‘सर्व शिक्षा अभियान’ और ‘सब पढ़ें सब बढ़ें’ जैसे नारों ने रोजगार तो छीना ही, ‘टैलेंट-हंट’ भी खूब किया है. सुपर-30 के महिमामंडन से कोचिंग संस्कृति की अर्थव्यवस्था की विकास दर मौलिक चिंतन की जीडीपी से टक्कर लेते हुए बहुत आगे निकल चुकी है. जब तक knowledge-based economy के इस मायाजाल को नहीं समझेंगे देश परगति को प्राप्त होता रहेगा.