जीवन से संवाद : मैं और मेरी किताबें अक्सर ये बातें करते हैं…

नहीं जानता कौन मनुज
आया बनकर पीनेवाला
कौन अपरिचित उस साकी से
जिसने दूध पिला पाला
जीवन पाकर मानव पीकर
मस्त रहे इस कारण ही
जग में आकर सबसे पहले
पाई उसने मधुशाला

– हरिवंश राय बच्चन

जीवन को अपनी पूरी उन्मुक्तता से वही इंसान जी सकता है, जो उसके रहस्यों को जानता हो या उन रहस्यों की खोज में अग्रसर हो. यूं तो ये रहस्य हमारे चारों ओर खुले पड़े हैं, लेकिन इनको समझने के लिए, शुरुआती तौर पर हम हमारे ही द्वारा इजाद की गई वस्तुओं के उपयोग में सुविधा अनुभव करते हैं. जैसे मेरे लिए मेरी किताबें. फिर ज़रूरी नहीं कि वो किताब कोई महान साहित्यिक रचना हो, हाँ अक्सर होती भी है.

जैसे ऑग मैनडिनो की दुनिया का सबसे महान चमत्कार जो कहती है –

कई संगीत रचनाएं, कई कलाकृतियाँ, कई पुस्तकें और कई नाटक ऐसे होते हैं जिनकी रचना किसी संगीतकार, कलाकार, लेखक या नाटककार ने नहीं बल्कि ईश्वर ने की है. इनकी रचना करने वाले लोग तो निमित्त मात्र होते हैं, जो ईश्वर के आदेशानुसार रचना कर रहे थे, ताकि वह अपनी बात हम तक पहुंचा सके.

ऑग मैनडिनो की ही एक और पुस्तक दुनिया का सबसे महान सेल्समैन कहती है –

जीवन के पुरस्कार हर यात्रा के अंत में आते हैं. शुरू में नहीं, और मुझे यह नहीं पता कि अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए मुझे कितना फासला तय करना है. हो सकता है कि मुझे हजारवें कदम पर भी असफलता का सामना करना पड़े, पर हो सकता है कि सफलता सड़क के अगले मोड़ पर छुपी हुई हो. मैं यह कभी नहीं जान पाऊंगा कि सफलता कितनी करीब है, जब तक कि मैं वह अगला मोड़ न मुड़ जाऊं.

पाओलो कोएलो की अल्केमिस्ट का यूं तो हर वाक्य जीवन के रहस्यों को उजागर करता-सा लगता है, लेकिन पूरी किताब का सार इन्हीं शब्दों में समाहित है-

जब तुम वास्तव में कोई वस्तु पाना चाहते हो तो सम्पूर्ण सृष्टि उसकी प्राप्ति में मदद के लिए तुम्हारे लिए षडयंत्र रचती है.

और

कोई भी सपना साकार होने से पहले विश्वात्मा तुम्हारी हर तरह से परीक्षा लेती है यह जानने के लिए कि, जो कुछ भी तुमने अपने सफ़र में सीखा है, उसे भूला तो नहीं दिया. इसलिए अपने सपनों को साकार करने के साथ साथ जो कुछ भी हमने जीवन से सीखा है उस पर चलने की निपुणता हमें प्राप्त कर लेनी चाहिए.

और इन सबसे अलग जिस शख्स की मैं मुरीद हूँ, वो कोई हिन्दी साहित्य के महान लेखक नहीं है, लेकिन मेरी नज़रों में वो किसी भी साहित्यकार से कम महान नहीं है. वो है टॉप मिस्ट्री राइटर और पॉकेट बुक्स के जाने माने उपन्यासकार सुरेन्द्र मोहन पाठक. उन्होंने अपनी एक पुस्तक की भूमिका में महान पुस्तक प्रेमी और इंग्लैंड के चार बार प्रधानमंत्री रह चुके सर विंस्टन चर्चिल की कही कुछ पंक्तियों का उल्लेख करते हुए लिखा है –

यदि आप अपनी तमाम पुस्तकें पढ़ नहीं सकते हैं, तो कम से कम उन्हें हैंडल कीजिए, उन्हें छूइए, टटोलिये, उनके साथ लाड़ लड़ाइए – उनमें झांकिए, उनका सामीप्य महसूस कीजिए, रख दीजिए, फिर उठा लीजिए, कहीं से खोलिए और जहां निगाह अटके वहां से कोई फिकरा पढ़िए, उसे शेल्फ पर खुद अपने हाथों से वापिस रखिए, अपने संकलन को अपने हाथों से नई तरतीब दीजिए ताकि अगर आपको यह नहीं भी पता कि उन पुस्तकों में क्या दर्ज है तो कम से कम ये तो पता हो कि कौन सी पुस्तक कहाँ उपलब्ध है. पुस्तकों से दोस्ती कीजिए, कम से कम वाकफियत तो ज़रूर कीजिए.

और यही आज का सबक भी है… और यूं भी मैं और मेरी किताबें अक्सर ये बातें करते हैं…

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