कल CIMS में चैक अप हेतु अहमदाबाद जाना हुआ, वहाँ अपनी बारी का इंतज़ार करते हुए हुए कुछ गुजराती अखबार देख रहा था कि अचानक श्रद्धेय मुरारी बापू जी की प्रकाशित इस तस्वीर पर नज़रे अटक गयीं.
कुछ – कुछ पढ़ने और समझने की कोशिश के बीच बाजू में बैठे और अपने साथ लाए धार्मिक और गुजराती भाषा में छपी पुस्तक पढ़ रहे अधेड़ पुरुष से इस चित्र में छपे विवरण को मुझे समझाने का आग्रह किया. जानकर अत्यंत आश्चर्य हुआ कि महज 20 – 25 मीटर की दूरी पर जंगल के राजा शेर बैठे हुए हैं और इधर बापू जी अपने भक्त से निडर होकर चर्चारत हैं. यह दृश्य गीर वन क्षैत्र का है.
मैं जिन सज्जन से यह जानकारी पा रहा था, उन्होंने अपना परिचय एक “वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर” के रूप में दिया. साथ ही उन्होंने बहुत ही सहज भाव से किन्तु मेरे लिए आश्चर्यजनक तथ्य बताया कि “गिरवन क्षैत्र” में ऐसे दृश्य बहुत आम हैं. जहाँ वन क्षेत्र में रहने वाले अपने पालतू पशुओं के झुण्ड को चराने के लिए जाते हैं तो कई दफा शेर, शावक और इन चरवाहों के बीच बहुत ही कम फ़ासला होता है.
उन्होंने स्वयं एक दो अवसर पर महज कुछ मीटर के फासले से इनको देखने की बात कहते हुए बताया “गिरवन क्षेत्र” के साथ – साथ शेरों शेरो के अनुकूल माहौल और भरपूर संरक्षण के कारण ही अब स्थिति यह है कि न केवल “गिरवन क्षेत्र” बल्कि आसपास के कुछेक अन्य जिला क्षेत्रो में भी शेरों की सामान्य आवाजाही बढ़ गयी है.
यहीं नहीं उन्होंने यहाँ तक कहा कि इन क्षेत्रों के रहवासियों और खूँखार माने जाने वाले शेरों के बीच गज़ब की “बॉन्डिंग” देखने में आती है. यही कारण है कि सैकड़ो की संख्या में वन क्षेत्र में रहने वाले शेरों के द्वारा शायद ही कभी वहाँ बसे लोगों पर हमले की खबर आई हो!!!
कुल मिलाकर कहा जा सकता हैं शेर गुजरात में सुरक्षित ही नहीं संरक्षित भी हैं और देश में यहाँ के शेर की विशिष्ट पहचान दिनोदिन बढ़ती जा रही है.
– अंबरीष भावसार झाबुआ