जब बेटा शादी लायक हो जाये, तो समझदार लोग शादी तय करने से पहले ये फिक्र करते हैं कि नई बहू आएगी तो आखिर रहेगी कहां? समझदार लोग शादी तय करने से पहले बहू-बेटे के लिए नया कमरा बनाते है.
ऐसा अगर न किया जाए तो सिर्फ दो विकल्प होते हैं… या तो सभी एक ही कमरे में घुस के सोओ रहो… या फिर बुज़ुर्गों की खाट उठा के बरामदे में लगा दो, या फिर बाहर पेड़ के नीचे. एक ही कमरे में 8 लोगों का परिवार भी रहता ही है.
भारत आज़ाद हुआ तो आबादी सिर्फ 35 करोड़ थी. देश का इंफ्रास्ट्रक्चर आबादी के अनुपात में बढ़ना चाहिए. जैसे जैसे औद्योगिक विकास हो, उसी के अनुरूप इंफ्रास्ट्रक्चर भी बढ़ना चाहिए. 1935 में कितने लोग यात्रा करते थे? आज कितने लोग रेलों में लंबी दूरी की यात्रा करते हैं?
1935 में जिस रुट पर एक single रेल लाइन थी, आज भी single line ही है. 1935 में जिस रुट पर सारा दिन में सिर्फ 2 या 3 जोड़ी गाड़ियां चलती थीं, आज उसी रुट पर दिन भर में 50 जोड़ी रेल गाड़ियां चलती हैं.
जालंधर शहर में 1935 में तीन प्लेटफॉर्म थे और 1 नंबर प्लेटफॉर्म से दो पर जाने के लिए एक पतला सा पुल था. आज 2017 में भी 3 ही प्लेटफॉर्म हैं और वही एक पुल है.
मेरे गांव के रेलवे स्टेशन माहपुर में 1913 में रेल चली थी. एक प्लेटफार्म था और जो नागरिक सुविधाएं थीं वही आज तक हैं. अब जा के मनोज सिन्हा जी ने 1913 में बने उस प्लेटफार्म को ऊंचा करने का काम शुरू कराया है.
आज़ादी से पहले तो माना कि हम गुलाम थे और अंग्रेजों का राज था. पर आज़ादी के बाद तो कम से कम नई बहू लाने से पहले नया कमरा बनाना चाहिए था. भारत सरकार नई-नई बहुएं लाती रही और उसी एक कमरे में घुसाती रही…
भारत ने अपनी बढ़ती जनसंख्या और उनकी बढ़ती ज़रूरतों के हिसाब से न रेल का इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ाया, न सड़कें बनायीं, न अस्पताल बनाये और न स्कूल, न बिजली बनाने के पावर हाउस बनाये, और न ही कृषि उत्पादन और कृषि उपज की सम्हाल करने को इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाया.
आंकड़े बताते हैं कि आज देश का 40% कृषि उत्पाद सड़ गल जाता है, बर्बाद हो जाता है क्योंकि उसके transportation, विपणन, storage की समुचित व्यवस्था ही नहीं बना पाए आज तक. आज भारत मे सिर्फ 135 ml. प्रति व्यक्ति दुग्ध उत्पादन होता है. हमने अपनी बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में डेरी उद्योग को नहीं बढ़ाया.
हमने देश को और देशवासियों को कभी अपने पैरों पर खड़ा करने का प्रयास नहीं किया. अगर उन्होंने कोशिश की भी तो रोक दिया. पिछले 70 साल में देश को ‘बेचारा’ बना के रख छोड़ा, बेचारे गरीब लोग… बेचारा आम आदमी… हमने इसे सब्सिडी पर पलने वाला बेचारा गरीब देश बना के रख छोड़ा.
खाना सब्सिडी का, कपड़ा सब्सिडी का, बिजली सब्सिडी की, पानी और sewer line सब्सिडी की, garbage collection में सब्सिडी, रेल यात्रा में सब्सिडी, हज और तीर्थ यात्रा में सब्सिडी, मंदिर के प्रसाद में सब्सिडी, इलाज में सब्सिडी, पढ़ाई में सब्सिडी यहां तक कि कंडोम भी सब्सिडी का???
बड़ी मुश्किल से देश मे मेट्रो जैसी एक संस्था खड़ी हुई जिसे हम विश्व स्तरीय कह सकते थे… दिल्ली की मेट्रो इसलिए विश्व स्तरीय बनी क्योंकि उसे professionally बनाया और चलाया गया.
पर अब अरविंद केजरीवाल उसका भी सत्यानाश करने पर उतारू है… कहता है कि भाड़ा नहीं बढ़ाने देंगे. ‘बेचारे’ आम आदमी का क्या होगा? सब्सिडी दे दो… आधी मैं दूंगा, आधी मोदी देंगे…
दिल्ली वालों, मेट्रो को Professionally चलने दो… कायदे से मेट्रो को प्रॉफिट में चलना चाहिए… जो संस्थान प्रॉफिट में चलता है वही चलता है… उत्तरोत्तर विकास करता है… घाटे और सब्सिडी से चलने-जीने वाले संस्थान अंततः सड़ गल जाते हैं, मर जाते हैं…
देश को बेचारा समझना बंद करो. देश को और देशवासियों को अपने पैरों पर खड़ा होने दो… देश को सब्सिडी की मछली मत दो, उन्हें मछली पकड़ने लायक और मछली खरीदने लायक बनाओ…
देश की हर संस्था को दिल्ली मेट्रो की माफ़िक़ professionally चलाओ… सब्सिडी वाली समाजवादी सोच से मुक्ति पाओ.