जिस तरह पश्चिमी यूरोप अन्य देशों के नागरिकों को अपने यहाँ बसाने पर तुला है उससे कुछ प्रश्न आते हैं. यह बात आज की नहीं है, कुछ सालों से है. जब यूरोप ने एकीकरण का फैसला लिया और एक चलन को – यूरो को अपनाया तब से यह नीति भी अपनाई कि अब आगे की प्रगति के लिए वे सम्मिश्र संस्कृति (multiculturalism) को अपनाएँगे.
हर राष्ट्र अपनी मूल संस्कृति को विसर्जित कर के बाहरी आने वालों से खुद को एडजस्ट कर लेगा. उनसे यह नहीं कहा जाएगा कि वे यजमान राष्ट्र की संस्कृति को अपना लें बल्कि यजमान राष्ट्र की प्रजा अपने पूर्वजों की संस्कृति त्यागकर आगंतुकों के साथ खुद को एडजस्ट कर लेगी. इसके तहत प्रगत यूरोपीय राष्ट्रों ने अविकसित और विकासशील देशों से लोगों को बुलाना शुरू किया.
इस्लाम के बारे में यह कहना पड़ेगा कि वो हमेशा हिजरत के mode में रहता है. या फिर मौकों पर बाज की सी नजर रहती है. यहाँ भी हम देखें तो शहर विकसित होने के पहले ही ऐसी जगहों पर अवैध मुस्लिम बस्तियाँ और मस्जिदें उग आती हैं. बाद में जब शहर बन जाता है तब शहरवासियों को पता चलता है कि ये सभी जगह मौके की थी.
इसी तरह यहाँ भी हुआ. सभी सम्पन्न देशों में जोरदार मायग्रेशन हुआ और वो भी इस्लामी देशों से, चाहे मध्य एशिया के हों या फिर अफ्रीका के. सभी मायग्रंट्स के बीच दो समानताएँ है और वे है हिंसा और इस्लाम.
आज जर्मनी, नॉर्वे, स्वीडन जैसे सम्पन्न देशों में मुस्लिम मायग्रंट्स ने माहौल खराब कर रखा है. परिणामस्वरूप लगभग साढ़े तीन सालों से यह स्थिति उत्पन्न हुई है कि आज वहाँ कोई हिन्दू जाना नहीं चाहेगा. जब कि उन्हें आज भी कुछ बीस लाख तक मायग्रंट्स की कमी है.
इसमें भी यह बात नोट कर ली जाये कि जो मायग्रंट्स वहाँ नर्क मचाये हुए हैं, वे ना तो कोई विशेष तकनीकी प्रशिक्षण पाये हुए हैं और उन्हें जर्मन या स्वीडिश या वहाँ की और कोई भाषा भी नहीं आती.
सोचिए, अगर छह साल पहले काँग्रेस की सरकार ने इस बात को पहचाना होता और यहाँ प्रचार किया होता तो परिणाम कितने अच्छे आते. भारत के लिए भी और उन देशों के लिए भी, क्योंकि किसी भी देश में हिन्दू का उस देश की उन्नति में भी हिस्सा रहा है और खुद भी फला फूला है. और कहीं भी हिन्दू का रेकॉर्ड दंगाई का नहीं है.
काँग्रेस सरकार ने अगर इतना भी भारतीय लोगों के लिए किया होता तो भी काफी बड़ी बात होती. विदेश मंत्रालय तो तब भी था और हर जगह भारतीय दूतावास भी हैं.
आज मोदी सरकार यह नहीं कर सकती, आज मुसलमानों ने वहाँ अपनी फितरत के कारण उन सम्पन्न मुल्कों को जहन्नुम बनाए रखा है. आज हिन्दू कश्मीर में वापस जाने को तैयार नहीं वो उन मुल्कों में क्या जाएगा?