‘क़ानूनपालिका’ ने जो किया वो अवैधानिक भले ही न हो किन्तु न्यायसंगत तो बिल्कुल नहीं है. इसी ‘क़ानूनपालिका’ ने इस्लामिक मूल्यों को छेड़ने का साहस (तीन तलाक़ का खात्मा) अभी-अभी दिखलाया है जिससे कुछ हद तक पंथनिरपेक्षता पर विश्वास बढ़ा है. फ़िर भी ‘क़ानूनपालिका’ को इस्लामी एवं ईसाइयत से जुड़े ढकोसलों को छेड़ने में बहुत हिम्मत दिखानी बाकी है.
हिन्दू समाज दीपावली के पटाखों पर प्रतिबंध से उतना आहत नहीं है जितना बक़रीद की अस्वस्थ परम्परा एवं न्यू ईयर इव पर होते प्रदूषण पर ‘क़ानूनपालिका’ की चुप्पी से होता रहा है.
मैं समझता हूँ कि ‘क़ानूनपालिका’ के पटाखों पर लगाये गए प्रतिबंध का स्वागत करना चाहिए, साथ ही अपने ही राजनैतिक नेतृत्व पर दबाव बनाना चाहिए कि वह अन्य समुदायों की अस्वस्थ परम्पराओं को कानून बनाकर प्रतिबंधित कर दे.
ऐसे में कथित ‘क़ानूनपालिका’ भी तो मजबूर होकर संयमित व्यवहार करेगी, क्योंकि वह न्याय /अन्याय की नहीं बल्कि कानून की संरक्षक मात्र है.
हिन्दू समाज को यह परिपक्वता दिखानी होगी. अजान के शोर का जवाब DJ से देने की परंपरा हिन्दू समाज बहुत दिनों तक स्वीकार नहीं करेगा.. ‘क़ानूनपालिका’ को कानून से ही बाध्य करें.
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