वो भी क्या ज़माना था. क्या जलवा था… क्या जलाल था… ऐसा नहीं है कि कांग्रेस की जो दुर्दशा आज है वो पहले भी थी. नहीं, 1984 में एक वो भी ज़माना था जब लोकसभा में इनकी 404 सीटें हुआ करती थीं. वो दीगर बात है कि राजीव गांधी ने वो चुनाव इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति लहर पर सवार हो कर लड़ा था और समूचे विपक्ष का सफाया कर 404 सीट जीत ली थी. ऐसी प्रचंड लहर थी कि एक अकेले चरण सिंह के अलावा विपक्ष का कोई नेता नहीं जीता था.
ऐसे प्रचंड बहुमत पर सवार हो राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने थे. पर इतने अनाड़ी निकले कि सिर्फ 3 साल के भीतर सारा कुनबा बिखर गया और सारी लहर भित्तर घुस गई. खुद उनके ही वित्त मंत्री राजा मांडा वीपी सिंह ने उनके भ्रष्टाचार के खिलाफ विद्रोह कर दिया.
बोफोर्स घोटाला अपने चरम पर था… वीपी सिंह देश भर में घूम-घूम के रैली कर रहे थे… गली गली में नारा लगता था… ‘अब तो ये स्पष्ट है… राजीव गांधी भ्रष्ट है’… ‘गली गली में शोर है… राजीव गांधी चोर है’… देश मे ऐसा माहौल था कि राजीव गांधी को सरकार में एक एक दिन काटना मुश्किल हो रहा था.
1989 के चुनाव सिर पर थे. ऐसे में कांग्रेस ने वही चाल चली जो शरीफों के मुहल्ले में रहने वाली दुष्चरित्रा चलती है. शरीफ औरतों को भी किसी तरह दुष्चरित्रा घोषित कर दो…
वीपी सिंह अपने सार्वजनिक जीवन मे बेहद ईमानदार आदमी थे, ये सारी दुनिया आज तक मानती है. सारी जिंदगी राजनीति में रहे, सर्वोच्च पदों पर रहे, पर कभी कोई दाग नहीं लगा.
ऐसे में राजीव गांधी की सरकार ने वीपी सिंह के लड़के अजेय सिंह पर भ्रष्टाचार का एक फ़र्ज़ी केस खड़ा किया. PVNR बोले तो पीवी नरसिम्हा राव उस समय विदेश मंत्री थे. उन्होंने अपने गुर्गे तांत्रिक चंद्रा स्वामी की मदद से कैरिबियन द्वीप सेंट किट्स, जो कि एक Tax Haven है, वहां अजेय सिंह के नाम से एक फ़र्ज़ी खाता खुलवाया और उसका beneficiary, वीपी सिंह को बनाया गया.
उस खाते के कागज़ात ले लिए गए. फिर उनकी एक फ़र्ज़ी बैंक स्टेटमेंट बना के उसमें 21 Million US डॉलर की राशि जमा दिखाई गई. फिर उन फ़र्ज़ी कागज़ात को विदेश मंत्रालय और PMO के बड़े अधिकारियों ने New York और Trinidad Tobago स्थित दूतावास में पदस्थ राजदूतों और अन्य अधिकारियों पर जबरदस्ती अनर्गल दबाव बना के attest कराया गया. जब सारी तैयारी पूरी हो गयी, और 1989 लोकसभा चुनाव में सिर्फ 3 महीने बाकी थे तो खबर अंतराष्ट्रीय मीडिया में लीक कर दी गयी. सबसे पहले समाचार Kuwait Times और Turkey के अखबार Golze Adam ने छापा, जिसे तुरंत Hindustaan Times और Telegraph ने लपक लिया.
दुष्चरित्रा चौराहे पर खड़ी हो के चिल्लाने लगी कि वीपी सिंह भी दुष्चरित्र है. कांग्रेसी दुष्चरित्राओं ने बाकायदा मामला संसद में उठाया. खूब बहस हुई.
तय हुआ कि मामले के दस्तावेज संसद के पटल पर रखे जाएं. जब किसी मामले के कागज़ात संसद की पटल पर रख दिये जाते हैं तो दावे को मज़बूती मिलती है. आम चुनाव में सिर्फ 5 हफ्ते बचे थे.
कांग्रेस लीडरशिप ने तय किया कि कागज़ संसद पटल पे रखे जाएं. परंतु प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) और वित्त सचिव (Finance Secretary) ने इसका विरोध किया क्योंकि वो जानते थे कि पूरा मामला फ़र्ज़ी है, सारे कागज़ फ़र्ज़ी हैं और पूरा मामला सिर्फ और सिर्फ वीपी सिंह को बदनाम करने के लिए खड़ा किया गया है.
इसके बावजूद राजीव गांधी सरकार नहीं मानी और अंततः वो फ़र्ज़ी कागज़ात ही संसद के पटल पर रख दिये गए. इस तरह मिस्टर क्लीन उर्फ़ राजीव गांधी की सरकार ने संसद और देश को गुमराह किया. पूरे देश मे इसकी खूब चर्चा रही. गोदी मीडिया ने खूब कीचड़ उछाला पर वीपी सिंह की छवि इतनी उजली थी कि एक भी आरोप नहीं चिपका…
चुनाव हुए और मिस्टर क्लीन की पार्टी धराशायी हो गयी. जो 1984 में 404 सीट पर थे वो 1989 में 197 सीट पर आ गए. वो दिन और आज का दिन, कांग्रेस निरंतर ढलान पर है और 404 से वर्तमान में 44 पर आ चुकी है. 1984 से ले कर आज 2017 तक, 404 से 44 तक के इस सफर में कांग्रेस ने क्या सीखा?
कांग्रेस आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी है. उसकी प्रतिष्ठा समाज मे 20 रूपए वाली सड़क छाप दुष्चरित्रा से भी बदतर है. यूपीए के शासन काल में उस पर 12 लाख करोड़ से ऊपर के घोटालों के आरोप हैं.
पूरे देश मे उसकी चुनावी दुर्गति हुई है… फिर भी कांग्रेस ने क्या सीखा? आज भी वो चुनाव में वापसी करने के लिए वही पुराने हथकंडे अपना रही है. पहले वीपी सिंह के पुत्र अजेय सिंह थे, अब अमित शाह के बेटे जय शाह हैं.
आरोप तब भी फ़र्ज़ी थे, आज भी फ़र्ज़ी हैं. कांग्रेस लीडरशिप ने इतिहास से कुछ नहीं सीखा. कांग्रेस 44 से 4 की तरफ गिर रही है. बस देखते जाइये.