आशा है आपने सकल घरेलू उत्पाद बढ़ोत्तरी, Sensex सूचकांक और देश की प्रगति : भाग 1 के विचारों को देखा कि GDP के पैमाने में कैसी विसंगतियाँ हैं. सैद्धांतिक रूप से इसका अर्थ होता है देश के सब लोगों ने कितने का सामान या सेवाएँ खरीदी या बेची हैं. इसके बहुत से विभाग हैं परन्तु अधिकांश रूप से इसे तीन भागों में बांटा जा सकता है जिसे आप कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र में बाँट सकते हैं.
भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार, भारत की आज़ादी के समय कृषि का योगदान 53 % उद्योग का योगदान 14% और सेवा क्षेत्र का योगदान 33% था. कृषि क्षेत्र में कृषि संबंधी कार्य आते हैं कृषि, पशु पालन और उनसे संबन्धित काम. उद्योग का अर्थ तो हर प्रकार के निर्माण कार्य से हैं जिससे भारत कि औद्योगिक उत्पाद को निकालते हैं. इसके अतिरिक्त बिजली, पानी, गैस और निर्माण काम भी इसी में आता है. और सेवा के क्षेत्र में मुख्य रूप से व्यापार, होटल, यातायात, दूरसंचार इत्यादि है.
[सकल घरेलू उत्पाद बढ़ोत्तरी, Sensex सूचकांक और देश की प्रगति : भाग 1]
इसी में लोक प्रशासन जिसके अंतर्गत सरकारी काम काज और भारत सरकार का रक्षा विभाग आता है. जनसंख्या भारत की बढ़ती गयी और 37 करोड़ से 135 करोड़ हो गयी पर कृषि का योगदान आज 17% मात्र रह गया है मतलब आपके पास खाद्य पदार्थ की कमी होनी ही है. और वह सामने नज़र आ रही है.
कृषि प्रधान देश में दालों का आयात!
आज हमें अपनी मात्र दालों के लिए 30% तक आयात करना पड़ता है. कृषक हैं, कृषि भूमि है और उत्पाद के लिए जनता की आवश्यकता यानि उपभोक्ता भी है फिर भी इसके पूर्ण प्रबंधन की कोई योजना नहीं है. सरकार भले ही कहे कि कृषक की कमाई को दुगुना करना है. परन्तु कैसे… इस पर कोई ठोस विचार नहीं है.
खाद्य पदार्थ के संरक्षण की व्यवस्था नहीं
जो देश कृषि प्रधान देश है पिछले 70 सालों में उसके पास खाद्य पदार्थ के संरक्षण की व्यवस्था नहीं हुई और दुर्भाग्य से इस पर कोई नीति भी नहीं है. इसका सीधा सा अर्थ है कि खाने के लिए भोजन की व्यवस्था में कमी आएगी. और इसका भरपूर मुनाफा बीच के बिचौलिये उठाएंगे.
नहीं बढ़ी कृषक की कमाई
कभी यह भी सोचने का विषय है जब जनसंख्या 4 गुणा के लगभग बढ़ गयी है और अनाज की आवश्यकता भी कम से कम चार गुणी बढ़नी चाहिए. तो इस गणित से कृषक की कमाई भी बढ़नी चाहिए, पर यह नहीं हुआ. स्थिति इतनी भयावह है कि कृषक आज अपनी संतान से खेती नहीं करवाना चाहता है क्योंकि इसकी कमाई कम है.
कम औद्योगिक विकास दर
अब आइये उद्योग के विषय में सोचे, आज भले ही हम औद्योगिकी की तरफ बढ़ते नज़र आते हैं परंतु इसका योगदान जो आज़ादी के समय 14% था अभी तक 30% के आसपास ही भटक रहा है. लोग गांवों से शहरों में पलायन कर गए. खेती छोड़ दी और बड़े-बड़े शहरों में मजदूरी या उद्योग जगत में लग गए फिर भी योगदान इस क्षेत्र का 30% के आसपास अटक रहा है.
सरकारी योजनाएं सिर्फ संगठित उद्योग के लिए
इस उद्योग जगत में भी सरकारी आंकड़े अधिकतर संगठित उद्योग के हैं और सरकार उन्हीं के लिए योजनाएँ बनाती हैं. यह संगठित छोटे उद्योग मिला कर जिनकी संख्या 5.7 करोड़ के पास है मात्र 12 करोड़ लोगों को रोजगार उपलब्ध कराते हैं. जबकि सरकार के आंकड़ों में जिनका कोई ज़िक्र नहीं है वह असंगठित उद्योग, 47 करोड़ लोगों को रोजगार देते हैं.
प्रत्यक्ष कर के घेरे से बाहर असंगठित उद्योग
संगठित उद्योग के लिए सरकार की योजनाओं का 96% धन आता है और वह दर वर्ष लगभग 17.3 लाख करोड़ की पूंजी उत्पन्न करते हैं जबकि असंगठित उद्योग जिसके लिए सरकार की योजनाएँ कुल 4% धन लगाती हैं 6.3 लाख करोड़ की पूंजी उत्पन्न करती हैं. ध्यान रहे कि 52 लाख करोड़ का संगठित उद्योग 17.3 लाख करोड़ पूंजी उत्पन्न करता है जबकि असंगठित उद्योग जिसकी पूंजी मात्र 11.5 लाख करोड़ है, 6.3 लाख की पूंजी उत्पन्न करता है. यह असंगठित उद्योग सरकार के प्रत्यक्ष कर के घेरे से बाहर है और इसीलिए इसकी योजनाएँ नहीं हैं और सरकार के पास इसका पुष्ट आंकड़ा भी नहीं है.
सेवा क्षेत्र में आवश्यकता से अधिक बढ़ोत्तरी
अब आप विचार करें कि सेवा क्षेत्र में आवश्यकता से अधिक बढ़ोत्तरी की. समझें कि सेवा के क्षेत्र में आता क्या क्या है? इसमें होटल व्यवसाय, दूरसंचार और बीमा इत्यादि का काम आता है. इसके अतिरिक्त सबसे अधिक बोझ इस में सरकारी खर्चे का पड़ता है. आपको याद होगा कि सरकार चलाने के खर्चे में सरकारी तनख्वाह, पेंशन, सरकारी खर्चों में, नेताओं की फिजूलखर्ची में अत्यधिक वृद्धि हुई है जो आज आज़ादी के बाद के 33% से बढ़ कर 57% के आसपास हुआ है.
अब आप स्वयं देखें कि जिस खर्चे से आम आदमी को रोटी और रोजगार मिलना है उसमें तो बहुत कम वृद्धि है अपितु जिन स्थानों से मात्र कुछ लोगों की ज़िंदगी जुड़ी है उसमें अत्याधिक वृद्धि हुई है. अब यदि यह उचित पैमाना होता तो 4 गुणा जनसंख्या के साथ कृषि में अधिक वृद्धि होनी थी.
भरपूर अनाज, पर धन की कमी होने के कारण भोजन नहीं
आपको शायद याद होगा कि 1965 ही में लाल बहादुर शास्त्री के जमाने में देश में खाद्यान्न की कमी थी तो भारत गेहूं का आयात करता था पीएल480. जिसके विरोध में शास्त्री जी ने लोगों से अपील करके सप्ताह में एक रात लोगों को उपवास के लिए प्रेरित किया और लोगों ने किया. आज कम से कम लोगों की ज़रूरत के अनुसार अनाज की कमी नहीं है भले ही गरीब के पास धन की कमी होने के कारण भोजन नहीं है.
सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि का सबसे बड़ा श्रेय सेवा विभाग को
अब आप सोचें यदि GDP या सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि होती है तो सबसे बड़ा श्रेय सेवा विभाग का है जिसका अर्थ नेताओं की पगार और उनके खर्चे बढ़ गए हैं. तो क्या यह वृद्धि सही में कुछ आंकड़ा दिखाती है. उसके बाद श्रेय उस उद्योग विभाग का है जो संगठित है जिस से 12 करोड़ लोग रोजगार पाते हैं.
सकल घरेलू उत्पाद में कृषक का योगदान सिर्फ 17% प्रतिशत बचा
जिस असंगठित क्षेत्र से 47 करोड़ को रोजगार मिलता है उसकी इसकी सकल घरेलू उत्पाद में गिनती बहुत कम है. और यह गिनती भारत में संभव नहीं है क्योंकि जो क्षेत्र सबसे ज़्यादा रोजगार देता है उसका पुष्ट आंकड़ा सरकार के पास न है और न ही शायद रखना चाहती है. सबसे निम्न वर्ग पर सबसे अधिक आवश्यक वस्तु यानि अनाज उगाने वाला कृषक का योगदान कुल 17% प्रतिशत रह गया है.
यदि इसे रोजगार से देखें तो जिस क्षेत्र (corporate sector) में 12 करोड़ लोग रोजगार प्राप्त करते हैं उसका योगदान 30% और देश के 70 करोड़ लोगों से अधिक से जुड़े क्षेत्र (agriculture) का योगदान 17%. आप कल्पना कर सकते हैं यदि यह सकल घरेलू उत्पाद बढ़ता है तो किस वर्ग के लोगों की प्रगति का द्योतक है. अगले और अंतिम भाग में इसके विश्व के आंकड़ों से संबंध पर चर्चा करेंगे.