सन 1946 के आसपास मानसून का पहला दौर बरस रहा था लेकिन उस गांव की माटी में सौंधेपन की जगह विष व्याप्त था. कुछ ही महीनों पूर्व भूमि संबंधी किसी विवाद में हुई मारपीट एक पक्ष के व्यक्ति का जीवन लील चुकी थी, इसी विवाद में दूसरे पक्ष के मुखिया श्रीकिशन जी जेल में थे.
आज उनका सीजारी मतलब आधी फसल के बदले कृषि कार्य करने वाला सहायक उनके घर पहुंचा. उसने श्री किशन जी की पत्नी सरजूबाई से कहा कि जमीन अच्छी तरह से आद्र हो गई है अतः खेतों में हकाई एवं जुताई शुरु कर दी जानी चाहिए.
सरजूबाई ने पूछा कि समस्या क्या है? आप शुरू कीजिए जुताई. सिजारी बोला माताजी विपरीत पक्ष वाले लोग 10 से 12 की संख्या में लाठियों से लैस मार्ग में घात लगाकर बैठे हैं. जो भी आज खेतों की ओर जाएगा उसका जीवित बचना असंभव है. तब तक सरजूबाई के काका श्वसुर जो भी इस विवाद का अंग थे और कारागृह से जल्दी छूट गए थे, वे भी आ गये. विमर्श होने लगा कि क्या किया जाए ??
कुछ समझदार लोगों ने वक्त की नजाकत को देखते हुए यह सलाह दी कि इस बार खेत नहीं जोते जाएं और श्रीकिशन जी के आने का इंतजार किया जाए क्योंकि वे हीं विरोधी पक्ष से प्रबल प्रतिकार करने में सक्षम है.
सरजूबाई के हृदय में आज कहीं ना कहीं बड़ा धर्मसंकट था एक तरफ गांव में अपने खेतों पर खेती का अधिकार सेना के लिए सीमा पर नियंत्रण के समान था और दूसरी तरफ छोटे-छोटे बच्चों का भविष्य. निर्णय उन्हें ही करना था.
कुछ समय सोचने के बाद आखिर उन्होंने निर्णय लिया , गांव के मकानों के द्वार जिन्हें “पोल” कहा जाता है के कुछ आगे ही एक आलिये (दीवार में छोड़ा गया खाना ) मे “कुंट” (पेड़ पर चढ़कर लकड़ी काटने के लिए काम आने वाला दराती जैसा एक शस्त्र ) रखा हुआ था.
सरजूबाई ने उसे उठाया और उस पर अपनी मुट्ठी कसते हुए गरजी ,
” खेत तो हर हाल में जोते जाएंगे, उनकी (श्रीकृष्ण जी की) अनुपस्थिति में यदि खेत नहीं जोते गए तो इससे अधिक बुरा उनके सम्मान के लिए कुछ भी नहीं होगा.
किसी भी परिस्थिति में खेत तो जोते ही जाएंगे. बच्चे भूखों मरे उससे श्रेष्यकर है कि हम अपनी भूमि के लिए संघर्ष करते हुए मारे जाए.
सिजारी जी ! चलो मैं आगे चलती हूं.पहले मैं लड़ूंगी उन कायरों से. ”
घुंघट निकाले हुए एक सामान्य सी ग्रहणी अपने एक हाथ में “कुंट” लिए जब एक अलौकिक शक्ति से सुशोभित होकर चलने लगी तो सम्पूर्ण गांव का नजारा बिल्कुल बदल गया. असामान्य आवाजें सुनकर अधखुली खिड़कियां अब पूरी तरह से खुल गई , स्त्री एवं पुरुष देखने लगे कि कैसे एक सौम्य स्वभाव की गृहणी जिसकी आवाज को कभी किसी ने एक निश्चित तीव्रता से ऊपर नहीं सुना, यहाँ तक कि स्त्रियों के मध्य भी जिनकी वाणी अपना नियंत्रण नहीं खोती थी, वह स्त्री एक हाथ में मात्र “कुंट “लेकर 10-12 लठैतों से अकेले मुकाबला करने जा रही है. उनकी इस अप्रत्याशित हिम्मत एवं निर्णय से प्रभावित सिजारी और उनके काका ससुर जी भी एक एक लट्ठ एवं बेलों का जोड़ा लेकर उनके पीछे पीछे चलने लगे.
एक मोड़ के बाद वे लोग लगभग डेढ़ सौ फीट की दूरी पर खड़े थे. उन्होंने देखा कि श्रीकृष्ण जी की पत्नी अपने हाथ में कुंट लिए असाधारण गति से उनकी ओर बढ़ी चली आ रही हैं. अब तक रास्ता उन लोगों द्वारा पूरी तरह से अवरुद्ध था लेकिन अचानक बीच में से 2 लोगों के गुजरने की रिक्तता उत्पन्न हो गई फिर देखते देखते वे लोग किनारों पर छंटने लगे और जब वे केवल 50 फीट दूर रह गए तब तक संख्या तीन से चार लोगों की रह गई जो भी नजर झुका कर उन चोंतरो (चबूतरों पर जो मकान के बाहर बने होते हैं बैठने के लिए ) पर बैठ गए.
पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी रक्षिणीशक्ति उस कुंट को हाथ में थामे वे खेतों की तरफ आगे बढ़ गई. कहते हैं ना कि पशुपक्षी हमारी भाषा ना समझे लेकिन भाव समझ जाते हैं, आमतौर पर शांत से रहने वाले वे दौ बेल आज एक अद्भुत आक्रामकता लिए हुए अपने श्रृंगों को तलवारों की भांति लहरा रहे थे जैसे कह रहे हो कि यदि कुछ अनपेक्षित हुआ तो 2-4 से हम भी पूरी शक्ति से निपट लेंगे.
उस दिन के बाद खेती की प्रक्रियाएं पूरी तरह से सामान्य हुई, कोई अवरोध उत्पन्न करने की किसी की हिम्मत नहीं हुई.
बचपन में जब भी अपनी दादीजी के पराक्रम की यह विलक्षण घटना हम अपने पिताजी के मुंह से सुनते तो जोश से रोमांच हो उठता था, वही रोमांच जो अम्बे जी की आरती गाते हुए इन शब्दों के उद्घोष पर अनुभव होता था
“शुम्भ निशुम्भ विडारे, शोणित बीज हरे,
मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे..”
तो है देवियों!
आप क्यों नहीं अपनी उस अलौकिक सुषुप्त शक्ति का आहवान करती जो आपके भीतर उसी प्रकार स्थित है जिस प्रकार से काष्ट में अग्नि, वायु में आद्रता और आकाश में दामिनी.
आप समर्थ हैं देवियों और आपके सामर्थ्य ही प्रताप और शिवा के रूप में प्रकट होते हैं.
नि:संदेह इसीलिए तो हम भावपूर्वक कहते हैं,
“या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थितां,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः”
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