द्वारकाधीश धाम जाने वाले हिन्दू धर्मावलम्बियों के लिए समुद्र में स्थित बेट द्वारका मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन की अनिवार्य परम्परा है. इसके लिए उन्हें लगभग साढ़े तीन किलोमीटर तक समुद्र का सफर नावों के द्वारा करना पड़ता है.
शाम को सूर्यास्त से पहले नावों की सेवा बन्द हो जाती हैं. अतः नावों के द्वारा समुद्र की यात्रा के जोखिम के साथ ही साथ समय की भी बर्बादी होती है क्योंकि बेट द्वारका के दर्शन के लिए दूसरे दिन की प्रतीक्षा प्रायः करनी पड़ती है.
इसके अतिरिक्त मुख्यतः बेट द्वारका तथा वहां स्थित अन्य प्राचीन ऐतिहासिक मन्दिरों की देखभाल तथा प्रभु श्रीकृष्ण की सेवा कर जीवनयापन कर रही लगभग 15-20 हज़ार की जनसंख्या रोजाना उस द्वीप पर सूर्यास्त से सूर्योदय तक बंधक बनकर रह जाती है क्योंकि शेष संसार से सम्पर्क का एकमात्र साधन नाव इस अवधि में नहीं चलती.
आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ओखा से बेट द्वारका को जोड़नेवाले 3.92 किलोमीटर लम्बे 962 करोड़ की लागत के फोरलेन पुल का शिलान्यास करके बेट द्वारका के उन 15-20 हज़ार धर्मसेवी नागरिकों समेत प्रतिवर्ष द्वारकाधीश धाम जाने वाले लाखों हिन्दू श्रद्धालुओं की एक बहुत बड़ी और गम्भीर समस्या के स्थायी समाधान की नींव रख दी है. 2 वर्ष में इसके सुखद परिणाम भी मिलने लगेंगे.
यह है वास्तविक एवं धरातलीय धर्मसेवा जो प्रधानमंत्री पूरे मनोयोग से कर रहे हैं. पहले केदारनाथ समेत चारों धामों को फोरलेन से जोड़ने की हज़ारों करोड़ की योजना और अब द्वारकाधीश धाम के श्रद्धालुओं के लिए लगभग एक हज़ार करोड़ की लागत से एक पुल का निर्माण. यह तो केवल दो उदाहरण मात्र हैं. ऐसी सूची बहुत लम्बी है.
केवल 3 वर्ष के कार्यकाल में हिन्दू धर्मावलम्बियों की सुविधा हेतु हज़ारों करोड़ खर्च करने वाली सरकार स्वतंत्र भारत के इतिहास में कब आयी? इस प्रश्न का उत्तर अपने दिल से पूछिए तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को हिन्दू विरोधी कहने वाले कांग्रेसी मारीचों एवं हिन्दू धर्म के तथाकथित फेसबुकिये ठेकेदारों से इसका जवाब जरूर मांगिए.