राहुल गांधी ने बीते दो दिनों में दो बातें कही हैं. अपने अमेठी दौरे के दौरान पहली बात यह कही कि अगर मोदी से विकास कार्य नहीं हो रहा है तो वह शासन हमें दे दें. हम छह महीने में दिखा देंगे कि विकास कैसे होता है. इसके बाद दूसरी बात यह कही कि मोदी 2019 के चुनाव से घबराये हुये हैं. इसीलिये वह लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना चाहते हैं. लेकिन हम इसका विरोध करेंगे.
राहुल गांधी की पहली बात की चर्चा की जाय तो यह सवाल सबसे पहले ज़ेहन में आता है कि आखिर इन तीन सालों में उनके हाथ में ऐसी कौन सी जादू की छड़ी आ गयी है जो ये लगभग छह दशक से भी अधिक समय तक शासन करने के बावजूद विकास में असफल रहने के बाद अब छह महीने में ही विकास करने का दम भरने लगे हैं.
आखिर आज़ादी के बाद सबसे अधिक समय तक तो उन्ही की पार्टी सत्ता में रही. फिर यह विकास तब क्यों नहीं हो पाया जिसे छह महीने में ही पूरा करने का दम भरा जा रहा है? बाकी पार्टी को रहने भी दिया जाय तो भी खुद राहुल गांधी भी अपनी पार्टी के बीते कार्यकाल के दौरान सक्रिय राजनीति में कदम रख चुके थे.
फिर जिस नुस्खे के बलबूते आज वह मोदी से सत्ता मांगकर विकास करने की बात कह रहे हैं वह विकास मनमोहन सिंह जी के साथ सत्ता में शामिल होकर क्यों नहीं कर सके. उस समय तो अप्रत्यक्ष रुप से वही सत्ता चला रहे थे. कैबिनेट द्वारा पास बिल को खुलेआम फाड़कर फेंक देने की हैसियत रखने वाले राहुल गांधी को क्या उस समय विकास करने का मंत्र प्राप्त नहीं हुआ था?
दूसरी बात लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने का विरोध करने की है तो यह मोदी के डर के कारण नहीं होगा. सबको पता है कि यह बात मोदी तबसे कहते आ रहे हैं जब वह अभी प्रधानमंत्री भी नहीं बने थे. देश के बहुमूल्य समय, धन, श्रम और मानव संपदा की बचत हो सके, इसके लिये दोनों चुनाव एक साथ कराये जाने की वकालत मोदी किया करते थे.
बाकी रही डरने की बात तो सभी राजनैतिक विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ऐसा होता है तो इसका सबसे बड़ा फायदा मोदी और भाजपा को मिल सकता है. ऐसे में एक साथ चुनावों से मोदी क्यों डरने लगे.
चूंकि आप विपक्ष में हैं, लिहाजा विरोध करना आपकी जिम्मेदारी है. लेकिन एक साथ चुनावों का विरोध आप सिर्फ विरोध करने के लिये नहीं कर रहे बल्कि आप सहित सबको पता है कि अगर ऐसा होता है सबसे अधिक फायदा भाजपा का होगा और सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ेगा.
बहरहाल विरोध करना आपका फर्ज है तो आप विरोध कर रहे हैं. लेकिन इस विरोध में इतने अंधे भी मत हो जाइये कि यह पता ही न रहे कि इसका विरोध मोदी का विरोध नहीं बल्कि एक चुनावी सुधार कार्यक्रम का विरोध कहा जायेगा.
विपक्ष में होने के कारण आपसे यह उम्मीद की जाती है कि आप सत्ताधारी दल की गलत नीतियों का विरोध करें. लेकिन इस विरोध करने के सिंड्रोम के चलते राहुल गांधी दल का नही बल्कि देश का विरोध करने लगे हैं. इसमें सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि जिस चीज को राहुल गांधी मोदी की कमज़ोरी के तौर पर प्रचारित कर रहे़ है वह वास्तव में राहुल गांधी की कमज़ोरी है.