आजकल अनेकों लोग मोदी जी से कुपित हैं, पूर्व समर्थक भी. एक दिन एक भाई बोलने लगे कि ज़मीन पर कुछ नहीं हो रहा है, बातें बड़ी-बड़ी हैं मोदी जी की… अब हमारा भी मोह हट रहा है. हमने पूछा कि क्या नहीं हो रहा? बोलने लगे कि बिजली, सड़क, साफ़ सफ़ाई इतने ही बिंदुओं पर काम कर दिया होता तो हमें बड़ा संतोष मिलता. लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं दिखा. नोटबंदी की, GST लगा दिया, लोगों का धंधा पानी बंद हो रहा है, डीज़ल पेट्रोल सभी पर मोटा टैक्स वसूले पड़ी है, लेकिन ज़मीन पर कुछ होता नहीं दिख रहा है. टैक्स ले रहे हो तो कुछ होते दिखना भी चाहिए. ट्रेन दुर्घटना ऐसे ही है, बुलेट ट्रेन का ख़्वाब दिखा रहे हैं. बिजली 24 घंटे स्वप्न है. स्वच्छ भारत केवल विज्ञापन में हैं. आदि आदि.
समझने की बात है कि सरकार अच्छा काम कर रही है या बुरा, एक आदमी को ये तब महसूस होता है जब उसे लोकल गवरनेंस बेहतर मिलता है. जब गली, सड़क, बिजली, पानी, साफ़ सफ़ाई आदि मूलभूत सरकार द्वारा प्रदत्त सुविधाएँ बेहतर होती हैं. माने किसी गाँव की ग्राम पंचायत या शहर का नगर निगम बेहतर काम करने लगे तो जनता को लगेगा कि 75% सुशासन आ गया.
वहीं केंद्र में विदेश नीति कैसी बनी, वित्तीय नीति कैसी बनी, रक्षा नीति कैसी बनी इन सारी बातें जनता को सीधा प्रभावित नहीं करती तो इन बातों में लोगों का ध्यान भी नहीं जाता. लोगों को इस बात से कोई मतलब नहीं कि सरकार ने आर्मी को बुलेट प्रूफ़ जैकेट व आधुनिक हथियार देना शुरू किया या बॉर्डर पर एक जानवर तक की घुसपैठ रोकने की अत्याधुनिक तकनीकी में निवेश किया. इस बात से लोगों को कोई मतलब नहीं कि वैश्विक परिदृश्य में भारत आज कहाँ खड़ा है. या RBI ने क्या पॉलिसी बनाई. ये बात कम ही लोगों के ध्यान में होगी.
बिडंबना है ये हैं कि बिजली, सड़क, साफ़ सफ़ाई आदि इन सभी मामलों में सरकार ने योजना तो बहुत पहले रोल आउट कर दिया. नौकरशाही को काम पर लगा दिया, फ़्री हैंड दिया, उसके बावजूद जिस गति से इसे कार्यान्वित होना था, ये हो न सका. क्योंकि नौकरशाही जानबूझ कर सरकार की सारी योजना को डिरेल करने पर तुली हुई है. क्योंकि बेनामी आने के बाद, P-note ख़त्म होने के बाद, स्विस बैंक अकाउंट से सूचना साँझा समझौता के बाद, नोटबंदी के उपरांत इनकी फ़र्ज़ी शेल कम्पनियों पर लगे ताले के बाद सबसे ज़्यादा बेचैनी तो नौकरशाही में ही है.
नौकरशाही के कम्फ़र्ट ज़ोन में सबसे बड़ा हमला हुआ, वो क्यों चाहेंगे कि ये सरकार चले. अभी कांग्रेस की असली आत्मा तो इन्हीं में समाई है. इनका इलाज बाक़ी है. यदि ये सरकार चलती है तो इनकी लूट नहीं चल सकती. कैसे अब बीवी बच्चे के नाम बेनामी सम्पत्ति लें? मनी लॉंडरिंग के लिए फ़र्ज़ी शेल कम्पनी कैसे खोले? कालाधन कहाँ रखें, कहाँ निवेश करें? तो ज़रा बतायिए कि जिनकी दुनिया ही लुट गई हो वो क्यों इस सरकार की योजना सफल होने देंगे? रेलवे वाले क्यों नहीं लापरवाही करेंगे?
अतः कहा जा सकता है कि वर्तमान में सरकार व नौकरशाही के बीच एक प्रकार का शीतयुद्ध शुरू है. जैसे सरकारी मुलाजिमों के असहयोग से अंग्रेजों की सत्ता चली गई थी, कुछ ऐसी ही नीयत से ही यहाँ भी ऐसा प्रयास चल रहा है. आप कहेंगे कि फिर सरकार क्या कर रही है, इन्हें सम्भालना सरकार का ही तो काम है? मान लीजिए आप अपने क्रिकेट टीम के कप्तान हैं, आपके 10 में से 7 प्लेयर आपके ही ख़िलाफ़ हैं और परम मग्घे हैं तो क्या आप मैच जीत लोगे, केवल इसीलिए कि आप एक अच्छे कप्तान हो? ज़ाहिर है कि बाग़ी प्लेयर बदलने पड़ेंगे.
सरकार की भी यही दिक़्क़त थी कि फिर काम किससे कराएँ? नौकरशाही का अन्य क्या विकल्प है?
अतः इस समस्या से निपटने के लिए अब एक नई शुरूवात हो चुकी है, सरकार ने अपनी योजनाओं को अमली जामा पहनाने के लिए भारत के नामी PSU (सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम) के हाथ इन विकास कार्यों की ज़िम्मेदारी सौपना शुरू किया है और भविष्य में इसी दिशा में बड़ी प्लानिंग में हैं.
और क्यों न हो? सरकार को भी दिखा कि लाख कहने के बावजूद वाराणसी नगर निगम जिस वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट को न चला सका, उसे एक PSU (NTPC) ने चंद महीनों में चला दिया. अंतर साफ़ है, इसीलिए सरकार नौकरशाही से कहीं ज़्यादा अब PSU पर निर्भर कर रही है. अभी उसने मंत्रालय के लिए 10000 इलेक्ट्रिक कारों (जिसका कुल मूल्य 1 हज़ार करोड़ है) का टेंडर EESL (JV PSU) से करवाया, जबकि ये मंत्रालय में बैठी नौकरशाही का काम था.
वहीं देश भर को कूड़े से निजात दिलाने के लिए वेस्ट मैनेजन्मेंट का काम भी PSU को दे रही है जो कि नगर निगम का काम है. यानी वो सारे काम जो नौकरशाही को करने थे और जो उनकी कमाई का बड़ा ज़रिया था, वो सारे PSU को देने का क्रम शुरू हो चुका है. माने नौकरशाही का ये रवैया ज़्यादा दिन नहीं चल पाएगा. इनकी सत्ता को भी चुनौती जल्द मिलेगी.
बल्कि अब तो सरकार ने सीधा सीधा PSU के सभी officials से पूछा है कि PSU के अधिकारी गण बताएँ कि देश की विकास योजनाओं में वो और क्या क्या कर सकते हैं? और इसी सम्बंध में आने वाले समय में सारे PSUs को लेकर बड़ा आयोजन होने वाला है.
पहले भी ये बात सरकार को भेज चुका हूँ और इस बार official तौर पर भी भेजा कि करसड़ा प्लांट के जैसे ही नगर निगम का प्रशासन व प्रबंधन भी PSU को देकर एक प्रयोग करना चाहिए. देश के नामी PSU वो संस्थाएँ हैं जहाँ VIP कल्चर और करप्शन नहीं है, विश्वस्तरीय मानक आधारित उच्च कोटि की कार्य शैली है. जो कम्पनी दस-दस हज़ार करोड़ के टेंडर अच्छी तरीक़े से execute कर लेती है, वो नगर निगम के 50-100 करोड़ के टेंडर तो चुटकियों में execute कर लेगी. इसमें लेश मात्र भी शंका नहीं है.
टेंडर से ही नौकरशाही कमाती है, इनसे टेंडर ही छीन लो. ईस्ट इंडिया कम्पनी से सरकार में बदली नौकरशाही को आज़ाद भारत की अच्छे वर्क कल्चर वाली कोई कम्पनी ही रिप्लेस कर सकती है. केवल यही एक तरीक़ा है देश में बड़ा परिवर्तन लाने का.
ये वो बिंदु है जिसपर मैं कई वर्ष से लिख रहा हूँ, लेकिन संयोग देखिए अब कुछ ऐसा ही होने जा रहा है. अब कोई शंका नहीं कि देश में बड़ा परिवर्तन होके रहेगा, बस थोड़ा धैर्य रखना होगा, बिजली क्षेत्र में तो PSU बड़े पैमाने पे लगे हुए हैं, कोई कारण नहीं है कि अगले 2 सालों में 24 घंटे बिजली न मिले. मिलनी ही मिलनी है. यदि दस वर्ष पहले PSU को इसमें लगाया होता तो ये दस वर्ष पहले मिलनी चाहिए थी. लेकिन अब साथ दिया है तो लम्बा देना होगा. कहीं ऐसा न हो कि मंज़िल के बहुत क़रीब पहुँच कर भी अनायास निराश होकर वापस लौट जाएँ.