जो पूर्वाग्रह से ग्रस्त होता है, जड़ होता है, हठधर्मी होता है, वह परिवर्तन के लिए कभी भी तत्पर नहीं हो सकता… और जो परिवर्तन के लिए तत्पर नहीं हो सकता, उसका विकास भी कभी नहीं हो सकता. कोई उसका मित्र भी यदि उसके हित की बात कहे तो वह उसकी विवेचना इस दृष्टि से करता है कि यही बात तो उसके शत्रु ने कही थी, अत: उसके हित में हो ही नहीं सकती. बल्कि वह मित्र भी संदिग्ध हो जाता है कि यह तो शत्रु पक्ष से मिला हुआ है.
दीपावली पर पटाखे न जलाने के लिए कहा जाए तो ये पूर्वाग्रही, जड़, हठधर्मी तथाकथित हिन्दू… और अधिक पटाखे जलाएँगे… जो इन्हें पटाखे न जलाने के लिए कहेगा… वह सेकुलर, वामी, देशद्रोही, हिन्दू विरोधी कहा जाएगा… ये पूर्वाग्रही, जड़, हठधर्मी, तथाकथित हिन्दू सनातन धर्म को अपनी “सल्तनत”, अपनी पैतृक सम्पत्ति मानते हैं.
एक बात बताइए… यह तो आप मानते ही हैं कि दीपावली पर्व अविज्ञात काल से मनाया जा रहा है? दीपावली का अर्थ ही दीपों का पर्व है, दीपज्योति पर्व है… दीपक जलाकर अमावस की रात्रि को पूरा वातावरण प्रकाशमान करने का पर्व… इसमें बारूद कहाँ से आ गया भाई? कब से आ गया? कैसे आ गया?
पूर्वाग्रही, जड़, हठधर्मी, तथाकथित हिन्दू इसका विचार नहीं करेंगे… बस विरोध करना है… अन्धा विरोध!
बालकों-किशोरों का तो कुछ सीमा तक समझ में आता है कि उन्हें पटाखे, आतिशबाज़ी में हर्षोन्माद का अनुभव होता है… पर उससे अधिक आयु के लोगों को पटाखे जला कर आनन्द कैसे अनुभव होता है? यह शोध का विषय है.
अब एक और पक्ष देखते हैं… इन पूर्वाग्रही, जड़, हठधर्मी, तथाकथित हिन्दुओं को यह पता है कि शुद्ध वायु क्या होती है? “प्राण” क्या होता है? “प्राणायाम” क्या होता है? “ध्यान” क्या होता है?
आप 2-3 महीने किसी पर्वतीय क्षेत्र में रहिए और वहाँ जितना अधिक से अधिक समय सम्भव हो सके गहरी श्वास का अभ्यास कीजिए… और हाँ इस 2-3 महीने में शुद्ध शाकाहार लीजिए, प्याज़, लहसुन भी त्याग दीजिए. फिर एक दिन वापिस अपने क्षेत्र या किसी नगर-महानगर में लौट आइए…
अपने क्षेत्र में घुसते ही सबसे पहले तीव्र दुर्गन्ध आपका अभिनन्दन करेगी… उसके बाद प्रदूषित वायु आपकी श्वास और आपके फेफड़ों को प्रभावित करेगी और आप इसे अगले 1-2 दिन में ही स्पष्ट अनुभव करेंगे.
इसके बाद आपके रक्त में अशुद्धियाँ आप स्पष्ट अनुभव करेंगे और आप अनुभव करेंगे कि आपका स्वास्थ्य भी कुछ प्रभावित होने लगा है. आपको 1-2 सप्ताह लगेंगे प्रदूषित वातावरण के अभ्यस्त होने में …
यह तो सामान्य दिनों की बात कर रहा हूँ, दीपावली की रात्रि के प्रदूषण की बात नहीं कर रहा. मैं इतना दु:स्साहसी कहाँ जो आपको पटाखे न जलाने का सुझाव देकर देशद्रोही वामी हिन्दू विरोधी कहलाऊँ.
मैं तो मेरे भाग की शुद्ध वायु भी नहीं माँग सकता… इसीलिए जंगल में जाने की आकांक्षा रखता हूँ… आपका यह सभ्य समाज मुझे शुद्ध वायु नहीं दे सकता.
दीपज्योति पर्व की अग्रिम शुभकामनाएँ! – अशोक सत्यमेव जयते The 4th Pillar