माँ जगदम्बा दुर्गा के नौ रूप मनुष्य को शांति, सुख, वैभव, निरोगी काया एवं भौतिक आर्थिक इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हैं. माँ अपने बच्चों को हर प्रकार का सुख प्रदान कर अपने आशीर्वाद की छाया में बैठाती है.
नवदुर्गा के नौ रूप औषधियों के रूप में भी अपने भक्तों का कार्य करते हैं. सर्वप्रथम इस पद्धति को मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में दर्शाया परंतु गुप्त ही रहा. इस चिकित्सा प्रणाली के रहस्य को ब्रह्माजी ने अपने उपदेश में दुर्गाकवच कहा है. ये नवदुर्गा प्रसाद वास्तव में दिव्य गुणों वाली नौ औषधियाँ हैं.
ये औषधियाँ प्राणियों के समस्त रोगों को हरने वाली और रोगों से बचाए रखने वाली है. ये समस्त प्राणियों की पाँचों ज्ञानेंद्रियों व पाँचों कर्मेंदियों पर प्रभावशील है. इनके प्रयोग से मनुष्य अकाल मृत्यु से बचकर स्वस्थ रहता है! इन समस्त दैवीय गुणों को रक्त में विकार पैदा करने वाले सभी रोगाणुओं का काल कहा जाता है.
1. भय दूर करती है शैलपुत्री :
प्रथम शैलपुत्री (हरड़)- प्रथम रूप शैलपुत्री माना गया है. इस भगवती देवी शैलपुत्री को हिमावती हरड़ कहते हैं. यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है जो सात प्रकार की होती है. हरीतिका (हरी) जो भय को हरने वाली है.
पथया – जो हित करने वाली है.
कायस्थ – जो शरीर को बनाए रखने वाली है. अमृता (अमृत के समान) हेमवती (हिमालय पर होने वाली).
चेतकी – जो चित्त को प्रसन्न करने वाली है. श्रेयसी (यशदाता) शिवा – कल्याण करने वाली.
2. स्मरण शक्ति को बढ़ाती है ब्रह्मचारिणी :
द्वितीय ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी) – दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी को ब्राह्मी कहा है. ब्राह्मी आयु को बढ़ाने वाली स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, रूधिर विकारों को नाश करने के साथ-साथ स्वर को मधुर करने वाली है. ब्राह्मी को माँ सरस्वती रूप भी कहा जाता है.
क्योंकि यह मन एवं मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है. यह वायु विकार और मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है. यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है. अत: इन रोगों से पीड़ित व्यक्ति को दुसरे नवरात्रि में ब्रह्मचारिणी की आराधना करना चाहिए. एवं ब्राह्मी बूटी चढ़ानी चाहिए !!
3. हृदय रोग ठीक करती है देवी चंद्रिका :
तृतीय चंद्रघंटा (चन्दुसूर) – दुर्गा का तीसरा रूप है चंद्रघंटा, इसे चनदुसूर या चमसूर कहा गया है. यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के समान है. (इस पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है. ये कल्याणकारी है. इस औषधि से मोटापा दूर होता है. इसलिए इसको चर्महन्ती भी कहते हैं. शक्ति को बढ़ाने वाली, रक्त को शुद्ध करने वाली एवं हृदय रोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है. अत: इस बीमारी से संबंधित रोगी ने चंद्रघंटा की पूजा करना चाहिए.
4. रक्त विकार को ठीक करती हैं कुष्माण्डा :
चतुर्थ कुष्माण्डा (पेठा) – दुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा है. ये औषधि से पेठा मिठाई बनती है. इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं. इसे कुम्हडा भी कहते हैं. यह कुम्हड़ा पुष्टिकारक वीर्य को बल देने वाला (वीर्यवर्धक) व रक्त के विकार को ठीक करता है एवं पेट को साफ करता है. मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत है. यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है. कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है. यह दो प्रकार की होती है एक सब्जी वाला और दूसरा मिठाई वाला . इन बिमारियों से पीड़ित व्यक्तिको पेठा का परशाद माँ को चड़ा कर चतुर्थ कुष्माण्डा देवी की आराधना करना चाहिए.
5. कफ रोगों का नाश करती हैं स्कंदमाता :
पंचम स्कंदमाता (अलसी) – दुर्गा का पाँचवा रूप स्कंद माता है. इसे पार्वती एवं उमा भी कहते हैं. यह औषधि के रूप में अलसी के रूप में जानी जाती है. यह वात, पित्त, कफ, रोगों की नाशक औषधि है. अतः पांचवें दिन इस ओषध का प्रसाद लगा कर स्कन्द माता की पूजा करनी चाहिए !
6. कंठ रोग का शमन करती हैं कात्यायनी :
षष्ठम कात्यायनी (मोइया) – दुर्गा का छठा रूप कात्यायनी है. इस आयुर्वेद औषधि में कई नामों से जाना जाता है. जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका भी कहते हैं. यह कफ, पित्त, अधिक विकार एवं कंठ के रोग (thioride) का नाश करती है. इससे पीड़ित रोगी को माँ कात्यायनी को इस मोइया नामक औषधि का प्रसाद अर्पण कर उनकी पूजा करनी चाहिए !
7. मस्तिष्क विकारों को हरती हैं कालरात्रि :
सप्तम कालरात्रि (नागदौन) – दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि है जिसे महायोगिनी, महायोगीश्वरी कहा गया है. यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है. सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है.
इस पौधे को व्यक्ति अपने घर में लगा ले तो घर के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. यह सुख देने वाली एवं सभी विषों की नाशक औषधि है. इस कालरात्रि की आराधना प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति को करना चाहिए.
8. सब रोगों का निवारण करती है महागौरी :
अष्टम महागौरी (तुलसी) – दुर्गा का अष्टम रूप महागौरी है. जिसे प्रत्येक व्यक्ति औषधि के रूप में जानता है क्योंकि इसका औषधि नाम तुलसी है जो प्रत्येक घर में लगाई जाती है. रक्त शोधक है एवं हृदय रोग का नाश करती है.
इस देवी की आराधना हर सामान्य एवं रोगी व्यक्ति को करनी चाहिए परन्तु शास्त्र आज्ञा अनुसार माता जी को यह ओषध चढ़ाई नहीं जाती बल्कि इस पौधे की पूजा की जाती है अतः ध्यान रहे तुलसी पत्र माता जी पर न चढ़ाएं !
9. बलबुद्धि बढ़ाती हैं सिद्धिदात्री :
नवम सिद्धिदात्री (शतावरी) – दुर्गा का नवम रूप सिद्धिदात्री है. जिसे नारायणी या शतावरी कहते हैं. शतावरी बुद्धि बल एवं वीर्य के लिए उत्तम औषधि है. रक्त विकार एवं वात पित्त शोध नाशक है. हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है. शतावरी नमक औषध का जो मनुष्य नियमपूर्वक सेवन करता है. उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं. इससे पीड़ित व्यक्ति को माँ सिद्धिदात्री देवी की आराधना करनी चाहिए.
इस प्रकार प्रत्येक देवीस्वरूप माँ जगदम्बा आयुर्वेद की भाषा में मार्कण्डेय पुराण के अनुसार नौ औषधि के रूप में मनुष्य की प्रत्येक बीमारी को अपनी प्रसाद स्वरूप औषध के द्वारा ठीक कर रक्त का संचालन उचित एवं साफ कर मनुष्य को स्वस्थ करती है. अत: मनुष्य को इनकी आराधना एवं सेवन करना चाहिए. कोई भी औषध बिना ज्ञानी वैद्य की परामर्श के बिना ग्रहण न करें ! नवरात्रों में ये सभी ओषधियाँ माँ चरणों में अर्पित होकर अभिमंत्रित होकर और अधिक कल्याणकारी हो जाती हैं.
– साभार श्री अक्षय भैरवनाथ मन्दिर खेमपुर मावली