अपने आप को संघी कहने वालों शर्म करो और चुल्लू भर पानी में डूब मरो, कहते फिरते हैं हम बहुत संयमित जीवन जीते हैं, देख लिया संयमित जीवन, मोदी जी भी संघी हैं, देख लो कितना संयमित जीवन जी रहे हैं.
मैं तो इस आदमी को ब्रह्मचारी समझता था, पर कल ऐसी घटिया हरकत की है कि किसी को मुँह दिखाने लायक नही छोड़ा. ब्रह्मचारी का चोला ओढ़े इस व्यक्ति को कल मैंने compromising position में देखा, 1 नहीं, 2 नहीं कइयों के साथ, एक साथ, उन सब को अपनी जान की चिंता थी इसलिए कोई कुछ ना बोली और मोदी जी घंटो तक अपनी मनमानी करते रहे.
कइयों की अस्मत लूट ली, चिन्दी भी ना छोड़ी उनके बदन पर, नंगा कर दिया, भला ऐसा चमत्कार (3 इडियट्स वाला) भी कोई करता है क्या? आपने सामूहिक चमत्कार सुने होंगे जिसमें पीड़ित एक और आरोपी कई होते हैं. पर यहाँ तो केस ही अलग है, यहां पीड़ित कई हैं और आरोपी एक मोदी जी हैं, कल एक साथ मोदी जी इन बेचारियों पर टूट पड़े और भूखे शेर की तरह सब पर एक साथ झपट पड़े.
बेचारी विरोधी पार्टियां जो कई दिनों से झूठ का मेकअप कर के छम्मक छल्लो बनी घूम रही थीं अचानक इस हमले से संभल भी नहीं पायीं और सब की आबरू सिर्फ एक घण्टे में ही लूट गयी, इज़्ज़त तार-तार हो गयी, इतना भयानक चमत्कार मैंने आज तक नहीं देखा.
कल रात चमत्कार की शिकार कई पार्टियां थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाने थाने पहुँची लेकिन उनकी रपट नहीं लिखी गयी. जब मेडिकल करवाने हस्पताल पहुँची तो वहां से भी डरा धमका कर भगा दिया गया, क्योंकि जब डॉक्टर ने परीक्षण करने के लिए पल्लू हटाने को कहा तो कोई भी तैयार नहीं हुई, क्योंकि पल्लू के पीछे से कई घोटाले और खस्ताहाल देश की अर्थव्यवस्था साफ झांक रही थी.
डॉक्टर ने डांटते हुए कहा, धक्के मार कर इन बाज़ारूओं को बाहर निकालो, habitual है ये सब की सब, और आयी हैं सती बन कर, सब की सब फ्रॉड हैं, पुलिस बुलवा कर अंदर करवाओ इन्हें.
इतना सुनते ही सब की सब सर पर पांव रख कर भाग निकली, रात भर मंत्रणा चली कि मोदी को कैसे फंसाया जाएं. जल्दी ही इन वेश्या रूपी पार्टियों की कोई नई चाल आप मार्किट में देखेंगे. कल इशारों इशारों में मोदी जी ने सोशल मीडिया के बिकाऊ होने और राष्ट्रवादियों की आवाज़ दबाए जाने और उन्हें ब्लॉक करने की बात भी कही थी.
महीनों की फ़र्ज़ी मुहिम पर एक घंटे में पानी फेर दिया, मैं कहता हूं मोदी जी पर मुकदमा दर्ज़ किया जाए, मोदी जी इस्तीफा दो, मोदी जी हाय हाय..
(कृपया व्यंग्य को व्यंग्य की तरह ही लें, भावनाएं आहत न करें)