हमारा इतिहास -1 : कपिलेश्वर

इतिहास बोध से शून्य होने में हमारा कोई सानी नहीं. हमारा, मने भारतीयों का, उसमें भी खासकर बिहार और उसमें भी मिथिलांचल का. जिस परले दर्जे की काहिली और मूर्खता से मैथिलों ने अपनी धरोहरों को नष्ट किया है, उसे देखकर शेखचिल्ली भी शर्मा जाए. यह दीगर कि आप एक तुच्छतम मैथिल से भी जहां बात करेंगे, वो न्याय शास्त्र से शुरू कर विद्यापति पर ही खत्म करेगा. बीच सड़क पर डेढ़ किलो पान की पीक उगलने के बाद ही वो राज दरभंगा और जनक के किस्से सुनाते हुए डेढ़-दो घंटे खींच लेगा. खैर……

ये कपिलेश्वर स्थान है. दरभंगा से लगभग 27 किलोमीटर दूर. हवाई अड्डे वाली सड़क बिल्कुल सीधे आपको पहुंचा देगी. केवटी से थोड़ा आगे यह मंदिर है. इसकी ख्याति अद्भुत है, जाग्रत महादेव माने जाते हैं. सावन में भारी भीड़ और मेला. अमूमन सप्ताह में रविवार को चहलपहल.

हम सुबह 7 बजे ही पहुंच गए थे, तो ऊंघते हुए मन्दिर में भीड़ से बच गए. 10-20 श्रद्धालुओं से ही भेंट हुई. लगभग NH से लगी जगह है, लेकिन जैसे नींद में हों. हमेशा की तरह, राज-दरभंगा ने ही इस मंदिर को भी बनाया है, मंदिर से सटा विशाल पोखर भी है, जो अतिक्रमण से सिकुड़ रहा है, कूड़ेदान का काम कर रहा है.

पोखर को dustbin बना चुके महान मैथिल…

(तस्वीर देखें)…. और, हमेशा की तरह मंदिर कुव्यवस्था, कूड़े और कर्महीनों के त्रिदोष से ग्रस्त. रास्ते भर, यही सोचता रहा ……काश, पोखर को बचा कर उसमें 10-12 बोट चलती, मंदिर की व्यवस्था और आस पास की दुकानें सुचारू और आकर्षक होतीं तो यह पर्यटन का कैसा बढ़िया जरिया होता. पर, मुद्दा वही है….काश…

मंदिर के पुजारी नारायण जी के मुताबिक, “मन्दिर द्वापर काल का है (ये भी ससुरी एक समस्या है. मिथिला में कुछ भी द्वापर से कम का नहीं). वैसे, यहां पर कर्दम ऋषि साधना करते थे, जो कपिल ऋषि के पिता थे. राजा जनक की पुत्री सीता के स्वयंवर में हिस्सा लेने जब कपिल मुनि चले तो धरती के मार्ग से (क्योंकि कई ऋषि वायु और कई जल मार्ग से आये थे, कौन? ये मत पूछियेगा,), और इधर से ही, ताकि इसी बहाने पिता से भी मिल लें.

कर्दम का नाम ऐसा इसलिए पड़ा कि वह कादो यानी कीचड़/कर्दम में लेटकर साधना करते थे. तो, यहां पहुँच कपिल ऋषि को लघुशंका लगी और जब वह निवृत्त होने लगे, तो उन्हें अग्नि-ज्वाल फूटता महसूस हुआ. घबराकर जब उन्होंने ध्यान किया तो उन्हें यहां एक शिवलिंग की प्राप्ति हुई. वही लिंग यहां स्थापित है और कपिलेश्वर महादेव के नाम से प्रख्यात है.

कहानी और भी है, गायों के उड़ने की और दूध के जलने की, पर वो सब यहां ज़रूरी नहीं. आप बस ये जानिए कि मिथिला में पग-पग पर ऐसी कहानियां और टूरिस्ट-स्पॉट बिखरे पड़े हैं. जाहिल मैथिलों ने अपने झूठे अहंकार और थोथे गर्व में सबका सत्यानाश कर रखा है.
….तो, अब?
….अब क्या? मैं ऐसे किसी भी स्थान पर अब गया, तो आपको उससे परिचित कराउंगा. आप में से कई जानकर मैथिल हैं, होंगे. आप भी बताइये, बांटिए.

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