70 के दशक में लेबनान अरब का एक ऐसा मुल्क था जिसे अरब का स्वर्ग कहा जाता था और इसकी राजधानी बेरुत को अरब का paris. अरब में व्याप्त पिस्लामिक जहालत के बावजूद लेबनान एक Progressive, Tolerant और Multi cultural सोसाइटी थी. ठीक वैसे ही जैसे भारत है.
लेबनान में दुनिया की बेहतरीन Universities थीं जहां पूरे अरब से बच्चे पढ़ने आते थे और फिर वहीं रह जाते थे. काम करते थे. मेहनत करते थे. लेबनान की banking दुनिया की श्रेष्ठ banking व्यवस्थाओं में शुमार थी. Oil न होने के बावजूद लेबनान एक शानदार economy थी.
60 के दशक में वहाँ इस्लामिक ताकतों ने सिर उठाना शुरू किया. 70 में जब Jordan में अशांति हुई तो लेबनान ने फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए दरवाज़े खोल दिए. आइये स्वागत है… 1980 आते आते लेबनान की ठीक वही हालत थी जो आज सीरिया की है.
लेबनान की Christian आबादी को जिहादी मुसलमानों ने ठीक उसी तरह मारा जैसे सीरिया के ISIS ने मारा. पूरे के पूरे शहर में पूरी Christian आबादी को क़त्ल कर दिया गया. कोई बचाने नहीं आया. Brigette Gabriel उसी लेबनान की एक survivor हैं जिन्होंने वो कत्लेआम अपनी आखों से देखा है. Brigette किसी तरह भाग के पहले Israel पहुंची और फिर वहाँ से अमेरिका. आजकल वो पूरी दुनिया में इस्लामिक साम्राज्य वाद और इस्लामिक आतंकवाद से लोगों को सचेत करती हैं.
उनके बहुत से Videos Youtube पे हैं.
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उनकी आपबीती पर सोशल मीडिया पर posts लिखिये…
उनकी एक सभा में एक लड़की ने उनसे पूछ लिया ……… सभी मुसलमान तो जिहादी नहीं? ज़्यादातर peace loving और law abiding citizens हैं. जिहाद तो एक मानसिकता है. आखिर एक मानसिकता का मुकाबला गोली बन्दूक से कैसे किया जा सकता है?
Brigette ने उत्तर दिया – 40 के दशक में Germany की अधिकाँश प्रजा भी peace loving थी. इसके बावजूद मुट्ठी भर उन्मादियों ने 6 करोड़ लोग दुनिया भर में मारे.
Russia की जनता भी अमन पसंद थी. इसके बावजूद वहाँ के चंद उन्मादियों ने 2 करोड़ लोग मारे.
China की जनता भी अमन पसंद बोले तो peace loving law abiding थी. चीन के उन्मादियों ने 7 करोड़ लोगों को मारा.
जापान तो बेहद सभ्य सुशिक्षित सुसंस्कृत मुल्क है न. वहाँ की peace loving जनता तो पूरी दुनिया में अपने संस्कारों के लिए जानी जाती है. वहाँ उन्मादियों के एक छोटे से समूह ने सवा करोड़ लोगों का क़त्ल किया.
अमेरिका के 23 लाख मुस्लिम आबादी भी तो peace loving ही है पर सिर्फ 19 लोगों के एक उन्मादी जिहादी समूह ने अकेले 9 /11 में 3000 से ज्यादा अमेरिकियों का क़त्ल किया.
किसी समाज का एक छोटा सा हिस्सा भी उन्मादी जिहादी हो जाए तो फिर शेष peace loving society का कोई महत्त्व नहीं रहता. वो irrelevent हो जाते हैं.
आज दुनिया भर में peace loving मुसलमान irrelevant हो चुके हैं. कमान उन्मादियों के हाथ में है. लेबनान की कहानी ज़्यादा पुरानी नहीं. सिर्फ 25 – 30 साल पुरानी है.
लेबनान और सीरिया से बहुत कुछ सीखने की जरुरत है. और कोई सीखे न सीखे हिन्दूस्थान को तो रोहंगिया को बसाने गले लगाने से पहले सीख ही लेना चाहिए.