उदयन के वो बच्चे, जिनका दूसरे स्कूल में एडमिशन कराया गया है, उनकी परीक्षा होने वाली है. उनके लिए स्टेशनरी लेने आज एक थोक विक्रेता के पास गया था. बड़ी पुरानी दुकान है उनकी सैदपुर कस्बे में. पूरे इलाके के फुटकर विक्रेता उनसे माल ले जाते हैं.
मैंने उनसे पूछा कि ‘GST के बाद आपके धंधे पे क्या प्रभाव पड़ा है?’
“बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है…”
‘क्यों? क्या हुआ? GST के बाद क्या बच्चों ने कॉपी पेंसिल खरीदनी बंद कर दी?’
“नहीं, बंद तो नही की…”
‘तो क्या पेंसिल घिसनी कम कर दी?’
“नही, अब भी उतनी ही घिसती है.”
‘तो फिर क्या दुष्प्रभाव पड़ा GST का?’ उनसे 15 मिनट तक इस विषय पर चर्चा होती रही. कुल मिला के ये समझ आया कि पहले सिर्फ एक काम था, माल खरीदा और कुछ मुनाफे के साथ बेच दिया… काम खत्म… कोई झिक-झिक नहीं, कोई tension नहीं.
पर अब हिसाब रखना पड़ता है. रोज़ाना रात को बैठ के बिल काटने पड़ते हैं. GST की return भरनी पड़ती है. मूल परेशानी यही है. और कोई परेशानी नहीं है.
बाकी form भरना और online return भरना और उसमें आने वाली समस्याएं तो temporary हैं कुछ दिनों में दूर हो जाएंगी.
उन्होंने बताया कि कुछ माल अभी भी बिना bill पर्चे के आ रहा है. व्यापारियों के पास पुराना stock पड़ा था उसे निकाल रहे हैं.
अभी सरकार transporters पर सख्ती नहीं कर रही है इसलिए अभी भी बहुत सा माल बिना bill पर्चे के आ रहा है. पर दो-तीन महीने के बाद ये गोरखधंधा भी बंद हो ही जायेगा.
अंत में मैंने उनसे पूछा… ‘GST देश और समाज के लिए अच्छा है न?’
“बहुत अच्छा है. इस से कौन इनकार कर सकता है?”
फिर वो कौन लोग हैं जो GST की व्यवस्था शुरू हो जाने से मरे जा रहे हैं?