महात्मा का पुण्य स्मरण : हाथी के दांत

अहिंसाप्रवर्तक, शान्तिपूजक, ब्रह्मचारी, “राष्ट्रपिता” महात्मा गांधी भारतीय इतिहास के श्रेष्टतम “हाथी के दांत” थे, जिसे ना केवल भारत की तत्कालीन राजनीति ने वरन आज की राजनीति ने और विश्व भर की राजनीति ने इसी रूप में शिरोधार्य किया है और करते रहेंगे.

दोगलापन जो राजनीति में डिप्लोमेसी के नाम से अलंकृत होता है उंसके लिए ये दिखाने वाले हाथी के दांत विश्व इतिहास को भारत की अद्भुत देन है जिस पर हमें गर्व होना चाहिए. विश्वास कीजिये मेरी इस बात का कि ना केवल भारत बल्कि अमेरिका, इजराइल और सम्भव है कभी उत्तर कोरिया भी अपनी विराट हिंसात्मक गतिविधियों को इसी हांथीदात की प्रसंशा कर करके विश्व को बरगलाता रहेगा.

भोले पंछियों ! यही राजनीति है और यही कूटनीति.

गांधीजी तब भी यही थे, आज भी यही है और कल भी इसी तरह आपके घर के ड्राइंग रूम में लगी उस बुद्ध की मूर्ति की तरह है जिसे आने वाले सभी मेहमानों को गर्व से दिखाया जाता है जिसके नीचे वाली दराज मे रखी रिवाल्वर को फिर कोई खोलकर देखने का दुस्साहस नही कर सकता.

इसलिये बेवजह छिजों मत और इस कलात्मक मूर्ति की प्रसंशा करने के नित नए शब्द गढ़ों और हे राम ! हे राम ! कहकर हाथी के असली खाने वाले दांतो की तरह अपने शत्रु को निपटाते रहो.

60 वर्ष तक कांग्रेस के राज से यदि तुम इतना दोगलापन भी ना सीख पाये तो धिक्कार है तुम्हारी कूटबुद्धि पर! फिर तो तुम्हारा राहुल गांधी ही मालिक है सच में.

अतः मैं एक कृतज्ञ भारतीय अतिकृतज्ञ भारत की तरफ से अपने महापुरुष, भारत की शान, अप्रतिम व्यक्तित्व, महात्मा मोहनदास करमचंद गांधी जी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए यह प्रण लेता हूँ कि ना केवल शरीर से अपीतु मन, कर्म एवं विचारों तक से कभी हिंसा का “समर्थन” नही करूँगा एवं इस विश्व के कल्याणार्थ प्रतिशोध का भाव कभी भी मन में नहीं लाऊंगा ठीक उसी तरह जिस तरह से महात्मा गांधी के प्रिय शिष्य नेहरू जी ने गाँधीजी के हत्यारे गोडसे को तत्काल फांसी देकर सर्वाधिक हिंसारहित, प्रतिशोधरहित शारीरिक मुक्ति प्रदान की थी.

आइये यह संकल्प ले इस पुनीत दिवस पर कि जब भी दिल्ली जाए तो राजघाट पर और अहमदाबाद जाए तो गांधी आश्रम पर अवश्य जाएं, वहाँ कुछ देर “बगुले” की तरह ध्यान लगाकर अपनी सभी शत्रुओं का स्मरण करें और अपने मन में आये कुत्सित हिंसात्मक विचारों को वहीं छोड़ दें और इस प्रकार स्मरण किये हुए अपने शत्रुओं को उसी प्रकार से अहिंसात्मक दंड दे जैसे नेहरू ने गोडसे को दिया था.

याद कीजिये वह कालजयी चित्र जब मोदीजी अपने परम मित्र एवं अतिथि शिंजो आबे जी को लेकर अत्यंत अहिंसक भाव से मुस्कुराते हुए चीन के दुर्भाव के प्रति अपने सद्भाव की जापान से भागीदारी पर चर्चा करते हुए उस पुल पर चहलकदमी कर रहे थे जो महात्मा मंदिर से आश्रम को जोड़ता है.

देखिये कैसे महात्मा गांधी की प्रासंगिकता को झुठलाया नहीं जा सकता. जैसे पांडवो के पास युधिष्ठिर थे, जैसे भाजपा के पास अटलजी वैसे ही भारत के पास महात्मा गांधी है.

वे शिखंडी की तरह उपलब्ध है हमेशा से जिसकी ओट से शत्रुओं पर सुरक्षित निर्बाध तीर चलाये जा सकते हैं. अब यह आप पर निर्भर है कि आप अर्जुन बनना पसंद करेंगे या भीष्म. आप जो भी बने ये आपकी समस्या है शिखंडी की नहीं, वह अपना काम करता रहा है और रहेगा.

हे महान आत्मा गांधी जी! आप हमेशा रिवाल्वर के आगे लगने वाले “मौनकर्ता (साइलेंसर ) ” की तरह विश्व में हिंसा के धमाके की आवाज को अपने अहिंसा के छद्म से दमित करते रहे, कृतज्ञ राष्ट्र आपको स्मरण करने का पाखंड करके आपको आपकी प्रिय विधि से पूजित करता है.

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