क्या होता है जब लोगों तक सीधे पहुँचने लगती है सरकार?

क्या होता है जब सरकार लोगों तक सीधे पहुँचने लगती है? इसका उत्तर बहुत आसान हो सकता है किंतु प्रश्न ही पिछले सत्तर वर्षों से कभी पूछा नहीं जा सका था. जिन लोगों ने संगठित रूप से यह प्रश्न उठाने का ठेका ले रखा था वो चुप रहे क्योंकि वो व्यवस्था (अव्यवस्था) के वास्तविक लाभार्थी थे.

कौन थे ये लाभार्थी? क्या करते थे ये? क्यों सत्ता इनको पोषित करती थी?

ये थे वोटबैंक मैनेजर्स.. ये पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष लोग रहे हैं. मुसलमान को इस्लाम के नाम पर, हिन्दू को जाति के नाम पर बिना किसी भेदभाव के वोट मात्र में बदलने के विशेषज्ञ लोग…

2014 में जब सत्ता परिवर्तन हुआ तो वर्तमान सरकार ने सबसे पहले इन्हीं वोटबैंक मैनेजर्स की रीढ़ तोड़नी शुरू कर दी. वर्तमान सरकार स्वतंत्र भारत की संभवतः पहली सरकार है जिसने संगठित समूहों की राजनीति को छोड़ असंगठित आम आदमी की राजनीति शुरू की है.

असंगठित व्यक्ति समूह ही भारतीय राष्ट्र-राज्य की सबसे बड़ी संख्या का निर्माण करता है. वो ही व्यवस्था के दोषों का असली पीड़ित होता है क्योंकि किसी संगठित समूह की भांति शोर मचाकर या धमकी देकर अपनी बात नहीं मनवा सकता है.

ऐसे में इनके पास वोटबैंक मैनेजर्स का सहारा लेना ही एकमात्र विकल्प था. भारत में वोटबैंक के मैनेजर्स ने बेसिक सुविधाओं के बदले असंगठित व्यक्तियों के वोटों को पूर्ववर्ती सरकारों को बेचने की प्रैक्टिस बनाई हुई है.

1. जंगलों से जलावन लकड़ी तक काटने पर प्रतिबंध लगवाया गया क्योंकि सरकारी कारिंदों को तस्करों एवं आम ग्रामीणों में फ़र्क नहीं समझ आता है. इससे ग़रीब ग्रामीणों को ईंधन के लिए वोटबैंक मैनेजर्स की शरण में जाना पड़ता था जिनके संरक्षण में अवैध ईंधन सप्लाई लाइन बहाल रहती रही. बदले में ईंधन का अधिक मूल्य, और चुनावों में वोट लिया जाता था.

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना ने इस पूरी प्रक्रिया की कमर तोड़ दी है.

यह कोई सामान्य ख़ैरात बाँटू योजना नहीं है. इसमें सरकार ने सिर्फ़ आम गरीब लोगों को सीधे मुफ़्त गैस कनेक्शन दिए हैं. गैस मुफ़्त नहीं मिलेगी उसे अर्जित करने के लिए श्रम अनिवार्य है.

हाँ, ईंधन माफिया की कमर जरूर कायदे से तोड़ी गई है. अवैध गैस सिलिंडर की रिफिलिंग और घरेलू / व्यावसायिक की कालाबाज़ारी में बहुत अधिक कमी आई है. माफ़िया के अलावा इससे जुड़े हुए सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार से भी काफ़ी हद तक छुटकारा मिल रहा है. कालाबाज़ारी रुकने के ही कारण आवश्यकतानुसार पर्याप्त मात्रा में गैस उपलब्ध है.

2. भारत में नगरीय विस्तार हो रहा है, यह विस्तार इतना तीव्र और बेतरतीब है कि यदि हम इसे नारकीय विस्तार भी कहें तो गलत न होगा. शहरों की आधिकारिक परिधि के ठीक बाहर बनते जा रहे आवासीय परिसर बिजली-पानी-सड़कों की उपलब्धता हेतु पूरी तरह से वोटबैंक मैनेजर्स की दया पर निर्भर रहते हैं.

बिजली का कनेक्शन अवैध ही होगा और उसको बनाए रखने के लिए मोहल्ले के चिरकुट नेता को वोट और सरकारी कर्मचारियों को रिश्वत अनिवार्य है. ऐसी बिजली अंततः कितनी महँगी पड़ जाती है ये सभी जानते हैं. पानी और सड़कों की स्थिति भी यही है…

वास्तविक स्थिति यह हो चुकी है कि जिस नगरपालिका / नगरनिगम को आप दस लाख का समझते हैं वो लगभग सत्रह लाख आबादी को बसाए हुए है. सात लाख अवैध बिना मान्यता के किन्तु वोटर्स हैं. वोटर्स हैं तो वोटबैंक मैनेजर्स भी हैं और बिजली-पानी माफ़िया भी हैं.

सरकार ने सबसे पहले इसी वैध/ अवैध का खेल खेलने वाले नेटवर्क को तोड़ने का फैसला किया है.

पहले चरण में वैध बिजली कनेक्शन हेतु ‘सौभाग्य’ योजना लाई गई है. इस योजना की मूल बात यह है कि इसे 2011 में की गई जनगणना के आधार पर लागू किया जाएगा…

आप भारत के जन हैं आपको वैध विद्युत कनेक्शन सिर्फ़ इसी आधार पर मिल जाना है. किसी निगम/ पालिका/ पंचायत के फर्ज़ी मानक की ज़रूरत नहीं है. बिजली कनेक्शन ही मुफ़्त मिलेगा न कि बिजली.. उद्यम करिये. किसी भ्रष्ट विद्युत कर्मी को एक पैसा नहीं देना पड़ेगा न ही कटिया व्यवस्था के पक्षधर किसी घटिया नेता को वोट बेचना होगा.. पानी/ सड़कों के लिए ऐसी ही योजनाओं को और विस्तार देने पर विचार जारी है.

3. आपने अनुभव किया होगा कि जनधन/ सुरक्षा/ जीवन-बीमा योजनाओं के आने से पूर्व समाज का निर्धनतम व्यक्ति अपनी बैंकिंग-बीमा आदि के लिए साहूकारों एवं वोटबैंक मैनेजर्स पर किस कदर निर्भर था. शोषण का यह चक्र जन्मते लिए हुए कर्ज़ से मरण के बाद क्रियाकर्म पर भी पीछा न छोड़ता था.

आज जन्म पर मिले 6000 से मृत्यु तक 2,00,000 रुपयों की सुरक्षा समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को उपलब्ध है. हालांकि ये भी मुफ़्त नहीं है. कुछ मूल्य देना ही होगा…. वोटबैंक मैनेजर्स की पूछ खत्म होती जा रही है. रही सही कसर डायरेक्ट बेनिफिट ट्रान्सफर ने पूरी कर दी है..

वर्तमान सरकार के इन प्रयासों की सूची बहुत लंबी है. यहाँ मैंने सिर्फ उतना ही उल्लेख किया है जिससे सरकार की सोच सामने आ सके.

वरुण जायसवाल

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