आज एक बड़ा ही मौजूं सवाल पूछा गया. सामने वाला मुझसे वही चीज़ पूछ रहा था जो आजकल चर्चा में है या यूं कह लें हर दशहरे पर चर्चा में आ जाता है.
‘क्या रावण सच में बुरा था?’
जवाब देने से पहले मेरे सामने खट्टर काका के तर्क घूम गए. मेरी आँखों के सामने अभी हालिया प्रकरण में खुद के नाम में ‘रावण’ लगाते सो कॉल्ड भीम आर्मी के एक सदस्य का भी उदाहरण था. मेरे सामने घूम जाता है सोशल मीडिया पर तैरता वह मैसेज जिसमें रावण अपनी बहन के अपमान का बदला लेता, परम प्रतापी, परम ज्ञानी, ब्राह्मण-क्षत्रिय वर्ग संघर्ष में क्षत्रियों द्वारा पराजित ‘बेचारा ब्राह्मण’ सिद्ध होता है. मैं मुस्कुराता हूँ.
जवाब देने से पहले मैं इस सवाल की जड़ों में घुसने की भी कोशिश करता हूँ. ‘यह सवाल क्यों?’ यह पहली चीज़ मुझे परेशान करती है. प्रश्नकर्ता ब्राह्मण था इसलिए मुझे इस प्रश्न के मूल को समझने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई. रावण को जब आप पराजित ब्राह्मण और उस पराजित ब्राह्मण को खुद के मूल से जोड़ लेते हैं तब आप ऐसे सवाल पूछते हैं, तब आप रावण को महान सिद्ध करने के लिए तर्क भी गढ़ते हैं और इन तर्कों के जरिए उसे एक ‘Fallen Hero’ साबित करने की कोशिश करते हैं.
ऐसे में आपके सामने यह तथ्य फिर कोई अस्तित्व नहीं रखता कि विशुद्ध ब्राह्मण विरोधी भीम आर्मी का कोई सदस्य अपने नाम में रावण लगाता है तो निश्चित है कि वह भी रावण को ब्राह्मण प्रतीक मान कर ऐसा नहीं करता. क्यों करता होगा वह ऐसा?
दरअसल पूरा मुद्दा राम के ‘मर्यादा-पुरुषोत्तम’ होने में है. रावण को बड़ा बताते हुए यह सिद्ध करना कि वह वास्तव में मर्यादित था, राम से बढ़िया था, ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ की गद्दी पर रावण को स्थापित करने की कोशिश भर है. संस्कृतियां स्थिर नहीं रहतीं बल्कि उनके तत्त्व समय के साथ बदलते हैं. कोशिश यह है कि तमाम भावनात्मक षड्यंत्रों के द्वारा ‘मर्यादा’ को पुनर्परिभाषित कर दिया जाय जिससे अपसंस्कृति को ही आप भी मर्यादा अथवा संस्कृति समझने लगें.
वाल्मीकि रामायण के अरण्यकांड को प्रमाण मानें तो रावण न केवल माता सीता के बाल खींचता है बल्कि उनकी जंघाओं के बीच अपने हाथ डाल कर उनका कामवश, अपहरण भी करता है. इतना ही जान लेने के बाद मुझे रावण से मोह नहीं रह जाता. आप सौ तर्क रावण के पक्ष में लेकर आएंगे तब भी मैं नहीं मानूंगा कि रावण किसी वर्ग संघर्ष में पराजित ब्राह्मण का बिम्ब है, ऐसा इसलिए क्योंकि मेरे लिए राम इस देश की आत्मा हैं. इस देश का कल्याण रामत्व को प्रतिस्थापित किए रहने में है, रावणत्व भले ही महिमामंडित कर आकर्षक बना दिया गया हो.
मेरे लिए रावण न तो ब्राह्मण है और न ही अच्छा-भला व्यक्ति, विद्वान चाहे जितना बड़ा रहा हो. रावण से अगर कुछ लेना आवश्यक ही है तो उसकी विद्याएं ग्रहण करें, उसका व्यक्तित्व नहीं और उसका रावणत्व तो बिलकुल ही नहीं.
आपको ब्राह्मणत्व के लिए ‘रावण’ जैसे नायकों की ज़रूरत महसूस होती है तो आप समझ लें कि आप वास्तव में उस षड्यंत्र के शिकार हो चुके हैं जो आपकी संस्कृति को रावणत्व के पर्यायवाची के तौर पर देखना चाहता है.
आपका फैसला आप पर.