जब इंदौर में थी तब से ही स्वामी ध्यान विनय ने अपने पिता की हू-ब-हू तस्वीर मेरे सामने खींच दी थी. तब से जिज्ञासा थी उन्हें देखने की और जब देखा तब उनकी शख्सियत और ध्यान विनय के शब्दों को एकाकार होते पाया… वही शेर सी शख्सियत और मूंछों वाले पापा… उन्हीं दिनों ध्यान विनय ने एक ऐसी शख्सियत के बारे में भी बताया था जिन्हें पापा “गुरुदेव” कह के पुकारते थे… तब मेरी जिज्ञासा और बढ़ गयी ये सोचकर कि पापा-शिष्य जब ऐसे हैं तो गुरू कैसे होंगे… खैर जबलपुर आ जाने के बाद पापा को फोन पर अक्सर अपने गुरूदेव से बात करते हुए सुना..
इस बीच फेसबुक पर एक बुज़ुर्ग व्यक्ति से मित्रता हुई और उनका सन्देश मिला –
नदी के किनारे कोई आसमान धो रहा है
दुपहर है,
महुए का पेड़ सो रहा है __ तुम्हारी रचनाएं बहुत अच्छी हैं … लिखा करो …
मैंने जवाब दिया- बस आपका आशीर्वाद बना रहे …….
बातों का सिलसिला यूं ही चलता रहा वो दिन आज का दिन मेरी सुबह उनके सुप्रभात सन्देश के आशीर्वाद से ही होती है… ये अलग बात है कि उनकी सुबह 4 बजे ही हो जाती है…
एक दिन मैंने उनसे कहा- इस उम्र में भी इतनी ताज़गी… हमें तो 6 बजे उठने में भी दादी नानी याद आ जाती है… कभी अपना लिखा हुआ भी पढ़वाइए न अंकल…. आपके बारे में बहुत सुना है… आपसे बात करना मेरा सौभाग्य है…
वे अचंभित हुए – अरे मेरे बारे में कहाँ सुन लिया?
मैंने कहा- मेरे ससुर जी तो आपको “गुरुदेव” कहते हैं …
अब अचंभित होने की बारी उनकी थी – उन्होंने तुरंत पापा का नाम बताते हुए कहा चलो फिर तो ये घर की ही बात हुई… लेकिन मुझसे बहुत औपचारिक होने की आवश्यकता नहीं है
मैंने भी कह दिया – जी.. आप तो मित्र सूची में हैं तो आप तो मेरे मित्र हुए…
वो हंसने लगे तुम चाहे जो कह लो …
तो पापा के गुरूदेव कृष्णा जनस्वामी अंकल मेरे कृष्ण-मित्र हो गए… और मैं उनकी गोपी-सखी.
पिछली बार पापा अपने “गुरूदेव” से मिलने गए थे तो उन्होंने मेरे लिए दो पुस्तकें भिजवाई थी … वो पुस्तकें नहीं “गुरुदेव” के जीवनभर के अनुभवों का खजाना है…
एक बार फिर पापा उनसे मिलने जा रहे थे… इस बार मैंने अपनी एक पुस्तक उन्हें भेंट स्वरूप भेजी… प्रथम पृष्ठ पर मैंने लिखा – “कृष्ण-मित्र को शैफाली की ओर से सप्रेम भेंट”…
ध्यान बाबा को दिखाया तो कहने लगे क्यों भई कृष्णा अंकल नहीं लिखा?
मैंने कहा जिस दिन घर आएँगे वो आदरणीय कृष्णा अंकल होंगे .. तब तक तो वो मेरे फेसबुक फ्रेंड कृष्ण-मित्र ही रहेंगे ….
रिश्ते ऐसे जादुई तरीके से ही मेरे जीवन में प्रवेश करते हैं..
ध्यान बाबा कहने लगे – पापा को भी अपना मित्र बना लो, फिर ऐसे ही उनकी मूंछें खींचते हुए आपकी भी फोटो ले सकूंगा… मैंने कहा कृष्णा अंकल के तो नाम का फायदा उठा लिया और गोपी बन गयी. पापा की तो शेर जैसी मूंछें ही काफी है डराने के लिए.. ऊपर से उनका नाम भी लायन टी आर नायक… मतलब नाम के आगे लायन और पीछे नायक… रहने दिजीये, आपके दो चूहे जैसे बेटे काफी है सोये शेर की पीठ पर कूदने के लिए.
लेकिन हाँ मैं जानती हूँ उनके मन में मेरे लिए जो प्रेम है उसे कभी शब्दों की आवश्यकता नहीं पड़ी… बकौल स्वामी ध्यान विनय “सबसे अच्छी मौन की भाषा”.
और मुझे उनके दिए कीमती तोहफे देने वाले दिन के अलावा वो दिन बहुत अच्छे से याद हैं जब ध्यान विनय और पापा कहीं से लौट रहे थे और ध्यान बच्चों के लिए चॉकलेट लेने रुके तो पापा ने कहा दो नहीं तीन लेना… ध्यान ने पूछा तीन क्यों… कहने लगे एक शैफाली के लिए भी ले लो.
बुज़ुर्ग दिवस पर प्रणाम!