भारत में यदि एक परिवार टॉयलेट बनवाता है… तो उसे हर साल 50 हजार रुपए की बचत होती है. यह निष्कर्ष यूनीसेफ ने अपनी एक सर्वे रिपोर्ट के आधार पर निकाला है. स्टडी के मुताबिक देश के 2 लाख से अधिक घरों में टॉयलेट बनने से हर परिवार को एक साल में 50 हजार रुपए का फायदा हुआ है. यही नहीं, यदि कोई परिवार स्वच्छता पर 1 रुपए खर्च करता है तो वह दवाओं के 4.30 रुपए की बचत करता है.
यूनीसेफ ने यह स्टडी भारत में संपूर्ण स्वच्छता अभियान… के तीन साल पूरे होने पर देश के 12 राज्यों में 10 हजार घरों पर की है. यूनिसेफ इंडिया के वाटर, सैनिटेशन एंड हाइजिन चीफ… निकोलस ऑसबर्ट का कहना है कि सरकार के स्वच्छता अभियान का सबसे ज्यादा फायदा गरीबों को हो रहा है. यूनीसेफ भी देश में स्वच्छता अभियान को तेज करेगा. ऑसबर्ट ने वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट हवाला देते हुए कहा कि स्वच्छता की कमी की वजह से भारत को हर साल करीब 3.46 लाख करोड़ रु. का नुकसान होता है.
यह देश की अर्थव्यवस्था का करीब 7% है. इनमें अशुद्ध पानी की वजह से सबसे अधिक बीमारियां होती हैं. वहीं, डब्ल्यूएचओ के मुताबिक दुनिया में डायरिया से 5 साल तक बच्चों की होने वाली मौतों में अकेले 22% भारत में होती हैं. 2015 में 1.17 लाख बच्चों की इस बीमारी से मौत हुई थी. यानी हर घंटे डायरिया से 13 मौतें होती हैं.
2 लाख गांवों में खुले में शौच बंद
स्वच्छ भारत अभियान के तहत 3 साल में देश के… 195 जिलों में 2 लाख से अधिक गांवों में खुले में शौच बंद हो चुका है. यूनिसेफ ने आंकड़ों को जारी करते हुए कहा कि देश के 5 राज्य पूरी तरह से शौच मुक्त हो चुके हैं. इन में सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, केरल, हरियाणा और उत्तराखंड शामिल हैं. 10 अन्य राज्य मार्च 2018 तक इससे मुक्त हो जाएंगे. अभी देश के… 2.36 लाख गांवों में कोई भी व्यक्ति खुले में शौच करने के लिए नहीं जाता है.
4.6 करोड़ घरों में बने टॉयलेट
2 अक्टूबर 2014 को संपूर्ण स्वच्छता अभियान के शुरू होने से पहले तक पूरे भारत में… अधिकतर ग्रामीण और कई शहरी इलाकों में लाखों लोग सुबह के नित्यकर्म को लेकर बेपरवाह थे. खासकर वे खुले में खुद को कहीं भी हल्का कर लेते थे. उन्हें स्वच्छता के साथ-साथ इस वजह से होने वाली बीमारियों की तनिक भी चिन्ता नहीं रहती थी. माता-पिता अपने बच्चों को गंभीर खतरे में डाल रहे थे.
स्वच्छ भारत मिशन के तहत अभी तक देश के 4.6 करोड़ घरों में टॉयलेट का निर्माण हो चुका है. वहीं, पब्लिक सेक्टर की मदद से स्कूल, कॉलेजों में भी टॉयलेट्स बनाए गए हैं. स्वच्छता अभियान से देश की 67.5 फीसदी जनता को जोड़ा गया है. देश के हर जिले में स्वच्छता अभियान चल रहा है.
जो स्थान खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं वहां… गंदगी से फैलने वाली बीमारियों में 70 प्रतिशत तक की कमी आई है. एक अकेले जिले तक में दवाओं की बिक्री भी 20 करोड़ रुपये तक घट गई है.
मानव मल एक अपशिष्ट है जिसका त्याग प्राकृतिक तौर मजबूरी और जरूरी दोनों है. इसी तरह अपशिष्ट मानव विचार भी त्यागने का विषय है, इनका भी खुले में रहना किसी भी समाज के लिए नुकसानदायक.
आइये… कहावतों उर्फ जुमलों के सही अर्थ समझते हुए 5 सौ रुपयों के बेरोजगारी भत्ते की मानसिकता से बाहर निकलें और इन लाखों की बचत को अपनी समझ, सरोकारों के बचत पासबुकों में दर्ज करें, साल दर साल.
अच्छे दिनों में कहावतें भी हकीकतों में बदला करती हैं : वो भी महज बंद जगह में ‘हर तरह के अपशिष्ट’ त्याग भर से.