विश्वविख्यात अर्थशास्त्री प्रो. अंगस मेडिसन ने अपने “The History of World Economics” में सबूतों के आधार पर यह लिखा है कि सन 1000 में भारत विश्व व्यापार में सिरमौर था. पूरे दुनिया में व्यापार का 29% से ज्यादा हिस्सा भारत का था (यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि आज विश्व व्यापार में पहले क्रमांक के देश चीन के हिस्से में विश्व का 14.4% व्यापार है). भारत विश्व का सबसे धनवान देश था…!
लेकिन शायद यह हमारे खुशहाली की, संपन्नता की, ऐश्वर्य की पराकाष्ठा थी. इसके बाद तो भारत की स्थिति में निरंतर गिरावट आती चली गयी. इस्लामी आक्रांताओं से देश पराभूत हुआ. सामाजिक विकृतियां बढ़ने लगी. एकजुट समाज बिखरने लगा. जातियों में बटने लगा.
[हिंदुत्व-1 : हम ‘हिन्दू’ किसे कहेंगे..?]
वैसे यह कहना कि ‘इस्लामी आक्रमण के बाद ही हमारे देश का सामाजिक ताना-बाना बिखरता गया’, अर्धसत्य है. सच तो यह है कि हमारे सामाजिक बिखराव का प्रारंभ हो चुका था. और इसीलिए इतने शक्तिशाली भारतवर्ष को इस्लामी आक्रांताओं के सामने लगातार पराजय मिली. गुलामी मिली.
इसका कारण तो हिन्दुओं की संपन्नता में ही था. पिछले आलेखों में हमने देखा कि हमारे ऋषि – मुनियों ने इस विशाल देश के विभिन्न समुदायों में, समूहों में एकता का, समता का सूत्र पिरोया था. ‘हम सब हिन्दू हैं’ यह सूत्र तो था ही. सबकी भाषा भले ही भिन्न हो, संपर्क भाषा एक ही थी – संस्कृत.
[हिंदुत्व-2 : संगठित हिन्दू समाज]
खैबर के दर्रे से सुदूर कंबोडिया, जावा, सुमात्रा तक संस्कृत ही चलती थी. यह ज्ञान की भाषा थी, व्यापार की भाषा थी, लोक भाषा थी. फिर समता का सूत्र था. वर्ण व्यवस्था के बावजूद समरसता थी, कारण ‘वर्ण’ जन्म के आधार पर तय नहीं होते थे. वह तो कार्य करने के अलग अलग वर्ग थे.
और इसी आधार पर हिंदुत्व ने पूरे विश्व में धाक जमाई थी. एक भी आक्रमण न करते हुए सारा दक्षिण एशिया हिन्दू बन चुका था. और यहाँ उत्तर – पश्चिम की सीमा पर हमने सिकंदर, शक, कुशाण, हूण जैसे हमले न केवल झेले थे, उनको परास्त किया था या भगा दिया था.
[हिंदुत्व-3 : सामर्थ्यशाली हिन्दू]
मालवा के राजा यशोधर्मा ने हूणों के राजा मिहिरगुल को संपूर्ण परास्त किया, सन 528 में. इसके बाद लगभग पाँच सौ वर्ष भारत पर आक्रमण करने का दुस्साहस दुनिया की किसी ताकत ने नहीं किया. बीच में मोहम्मद कासिम ने सिंध पर आक्रमण किया था. लेकिन वह मात्र सिंध प्रान्त तक ही सीमित रहा. देश पर उसका प्रभाव नहीं पड़ा.
सन 600 से लेकर सन 1000 तक का कालखंड हमारे इतिहास का स्वर्णिम कालखंड है. अत्यंत वैभवशाली, संपन्नशाली और शक्तिशाली परिस्थिति में हम थे. और यहीं से हमारे पुरखों से चूक प्रारंभ हुई. हम में शिथिलता आ गयी. समाज को किसी का भय नहीं रहा.
ऐश्वर्य और संपन्नता के सामने, जिन तत्वों के आधार पर ऋषि – मुनियों ने हमारे समाज को संगठित किया था, एकजुट किया था, वह तत्व बिखरने लगे. वर्ण व्यवस्था अब गुणों से नहीं, जन्म से तय होने लगी. ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र यह सब जन्म के आधार पर बनते गए. इससे ऊँच – नीच की भावना बलवति होती गयी. जिनके हाथों में ज्ञान था, ऐसे ब्राह्मणों ने जाति वर्चस्व की बातें हमारे धर्मग्रंथो में डालना प्रारंभ किया. इस सामाजिक बिखराव के चलते ‘राष्ट्र सर्वप्रथम’ मंत्र भी धुंधला सा होता गया.
इसका परिणाम तो होना ही था. पूरे भारतवर्ष में उस समय द्रविड़, असुर, नाग, राक्षस, निषाद, यवन, किरात, कैवर्त, कांबोज, दरद, खस, शक, कुशाण, पणी, आंध्र, पुलिंद, मूतिब, पुंड्र, भरत, यादव, भोज, आदि समूह एकजुट होकर रह रहे थे, वे बिखरने लगे.
[हिंदुत्व-5 : राष्ट्र सर्वप्रथम]
सन 980 में जयपाल को परास्त कर इस्लामी आक्रांता सबुक्तगीना ने पंजाब जीत लिया. अगले कुछ वर्षों तक वह, और बाद के वर्षों में उसका लड़का महमूद गजनी, भारत पर आक्रमण करते रहे. और इतने शक्तिशाली हिन्दू साम्राज्य, ताश के पत्तों जैसे ढहने लगे.
अगले डेढ़ सौ वर्षों में इस्लामी आक्रांता भारत पर छा गए. वे अपने साथ अपना मज़हब, अपनी भाषा, अपना रहन-सहन भी लाये. बख्तियार खिलजी ने सन 1193 में नालंदा समवेत अनेक विश्वविद्यालय जला दिए, ध्वस्त किये. संस्कृत भाषा जाती रही. हमारी पूरी शिक्षा व्यवस्था छिन्न भिन्न हो गयी.
और इस असुरक्षा ने, अज्ञान ने हिन्दू समाज में अनेक प्रकार की विकृतियां भर दी, जो आज तक हम ढो रहे हैं. समता, सहकार्य, स्वातंत्र्य, ज्ञान आधारित व्यवस्था… यह सब नष्ट हो गए. विषमता ने समाज में अपना स्थान पक्का किया. “धर्म एव हतो हन्ति, धर्मो रक्षति रक्षितः” यह वचन सत्य हुआ. हम धर्म की रक्षा नहीं कर सके, इसलिए हमारा विनाश हुआ.
दलित अत्याचार, अस्पृश्यता, उच्च वर्ण का वर्चस्व आदि विकृतियां समाज में पैठ गयी. और इसी को हम धर्म समझने लगे. हिन्दू धर्म का स्वरुप ही बदल गया. धर्म की व्याख्या बदल गयी. आडंबर बढ़ गया. हिन्दू धर्म पराभूत हुआ. भारत का यह हाल देखकर दक्षिण-पूर्व एशिया का हिन्दू बहुल क्षेत्र भी अपना धर्म बदलने लगा.
देश गुलामी के भयंकर अंधकार में जाता रहा….
संदर्भ –
डॉ. काशीप्रसाद जायसवाल – 1. मनु और याज्ञवल्क, 2. हिन्दू पोलिटी
आचार्य क्षितिमोहन सेन – 1. भारतवर्ष में जाति भेद, 2. संस्कृति संगम
डॉ. पु. ग. सहस्त्रबुद्धे – हिन्दू समाज : संगठन और विघटन