ये किस्सा यूँ तो मैं पहले सुना चुका हूँ पर आज चूंकि इसी विषय पर देश में चर्चा चल रही है इसलिए दोहराना चाहता हूँ. पूरा ठीक से याद तो नहीं पर शायद दीवाली की छुट्टियां थीं और मैं अपनी पत्नी और छोटी बेटी के साथ दिल्ली आया हुआ था. हम वापस लौट रहे थे और नई दिल्ली से हमारी ट्रेन थी.
हम स्टेशन पहुंचे और फुट ओवरब्रिज से होते जब अपने प्लेटफ़ॉर्म के पास पहुंचे तो भीड़ देख के सहम गए. पूरा प्लेटफ़ॉर्म खचाखच भरा हुआ था क्योंकि उसी प्लेटफ़ॉर्म से बिहार जाने वाली गाड़ी भी लगी हुई थी. यानि 6 नंबर पे अमृतसर जाने वाली हमारी गाड़ी और 7 नंबर से पटना जाने वाली कोई जनसाधारण टाइप ट्रेन थी.
दीपावली – छठ का सीज़न हो तो बिहार जाने वाली गाड़ी का क्या हाल होता है, आप सोच सकते हैं. प्लेटफॉर्म पर उतरने वाली सीढ़ियों पे भी मुसाफिर जमे हुए आगे बढ़ने को धक्कामुक्की कर रहे थे. सीढ़ियों के ठीक सामने प्लेटफ़ॉर्म का पिलर था और उन्ही सीढ़ियों के सामने ही रेलवे की ब्रेक वैन से उतरा सामान बिखरा हुआ था.
अब ऐसे में एक छोटी बच्ची, पत्नी और सामान… मैंने कहा, “इस भीड़ में घुसना बेहद खतरनाक हो सकता है”. पूरी तरह Stampede (भगदड़) के हालात थे. पत्नी ने पूछा, “अब क्या करें? ऐसे तो ट्रेन छूट जाएगी”. मैंने कहा, “ट्रेन बेशक छूट जाए पर जान बची रहेगी”.
फिर मैंने दिमाग लगाया. बगल वाले प्लेटफ़ॉर्म पे गए जो खाली था. वहां खड़ी ट्रेन में चढ़ के पीछे से उतर गए. सामने हमारी ट्रेन खड़ी थी. मने हम अपनी ट्रेन में प्लेटफ़ॉर्म से नहीं बल्कि दूसरी तरफ से चढ़ गए पर उस भीड़ में नहीं गए. मुझे इसी नई दिल्ली पे हुई वो भगदड़ याद थी जिसमे कई यात्री मारे गए थे. इसके अलावा मुझे हर वो घटना याद रहती है जिसमे लोगों ने अपनी मूर्खता में जान गंवाई.
भारत की हर सार्वजनिक सुविधा ओवरलोडेड है. सिर्फ रेल ही नही, बस, अस्पताल, सड़क, मेट्रो, ऐसा कौन सा संस्थान है जो अपनी क्षमता से 10 – 20 या 50 गुणा ज़्यादा लोड ले के नहीं चल रहा है.
इस भीड़ भरी दुनिया में ज़िंदा बचे रहना आपकी और सिर्फ आपकी जिम्मेवारी है. कोई आपको बचाने नहीं आएगा. सरकार तो बिल्कुल नहीं आएगी.
ज़िंदा बचे रहना ही Survival Skill है. ज़िंदा रहेंगे तभी न सरकार को गरियाएँगे. ज़िंदगी बहुत कीमती है. इसे यूँ ही भीड़ में लोगों के पैरों तले कुचल के मत गंवाइए. कुछ अपनी भी अक्ल लगाइए.
जालंधर शहर के रेलवे स्टेशन पर प्लेटफॉर्म नंबर एक से 2 – 3 पे जाने के लिए सिर्फ एक ही पुल है. कई बार जब 2 नंबर और 3 नंबर पे एक साथ दो गाड़ियां आ जाती हैं तो पुल पे बहुत ज़्यादा भीड़ हो जाती है.
ऐसे में, मैं उस भीड़ में घुसने की बजाय पहले ही रुक जाता हूँ. थोड़ा सुस्ता लेता हूँ. एक तरफ रुक के फेसबुक पे एकाध कोई पोस्ट पढ़ लेता हूँ. दो चार कमेन्ट कर लेता हूँ. सिर्फ 5 मिनट में वो भीड़ आश्चर्यजनक रूप से एकदम कम हो जाती है.
भीड़ का हिस्सा मत बनिये… भीड़ छंटने का इंतज़ार कीजिये.