दूसरे के विनाश पर अपने सृजन की अभिलाषा में ही निहित है संपूर्ण विनाश

अजित और फेसबुक के भारतीय कर्णधारों में बड़ा दिलचस्प रिश्ता है. जब देखो तब एफबी वाले भन्नाई हुई बीबी की तरह, अजित पर अपनी खीज निकालने के लिये उसकी आईडी ब्लॉक कर देते है! खास तौर से अजित जब भी प्रकृति की कोई बात करते है, तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाता है.

खैर अजित की एक पोस्ट ऐसी है जिसको लेकर कुछ लोग बड़ा खफा रहते है, आज मैं उसी को अपने शब्दों में उतार रहा हूँ.

आज कल अक्सर अल्लाह के नेक बन्दे यह बयान देते हुये दिखते हैं कि वह इस दुनिया पर फतह अपनी बढ़ती हुयी आबादी के बल पर कर लेंगे और एक दिन पूरी दुनिया पर इन बन्दों के बेतहाशा पैदा हुये बच्चों का राज होगा. अच्छी सोच है.

कुछ वर्ष पूर्व डिस्कवरी चैनल पर मैंने एक प्रोग्राम देखा, जो ऑस्ट्रेलिया के सिम्पसन रेगिस्तान के बीच एक छोटे से कस्बे में घटित एक सत्य घटना पर आधारित थी.

हुआ यह है कि दक्षिण ऑस्ट्रेलिया के सिम्पसन रेगिस्तान के बीच में एक छोटा सा कस्बा बसा हुआ था. उस कस्बे में अचानक वहां चूहों की संख्या बढ़ने लगी. वहां के लोगों ने, चूहों को पकड़ने के लिये सारे घरेलू उपायों को आजमाया लेकिन चूहों की बढ़ती जनसंख्या के आगे वे सब बेकार साबित हुये.

चूहों की जनसंख्या जब विकराल रूप लेने लगी तो कस्बे के प्रशासन ने कमर कसी और वे बड़े पैमाने पर चूहों को मारने में लग गये. शुरुआत में तो प्रशासन को सफलता मिली लेकिन चूहों की आबादी इस तेज़ी से बढ़ने लगी कि कस्बे के प्रशासकों ने भी अपने हथियार डाल दिये. तब कस्बे के प्रशासकों ने इन चूहों की विकराल समस्या के बारे में राजधानी एडिलेड स्थित दक्षिण ऑस्ट्रेलिया राज्य की सरकार को अवगत कराया.

चूहों की इस महामारी को दक्षिण ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने पूरे मामले को बड़ी गम्भीरता से लिया और रोडेन्ट विशेषज्ञों के एक दल को इस समस्या का हल करने को लगा दिया. विशेषज्ञों ने भी तमाम उपायों को आजमाया लेकिन चूहों की बढ़ती आबादी और उससे कस्बे के जीवन के अस्तव्यस्त होने को वह नही रोक पाए. कस्बे के लोग हर कोने से निकलते हुये चूहों और उनके द्वारा कस्बे में की जा रही बर्बादी से तो तंग थे ही लेकिन हालात अब इतने भयावह हो गये थे कि चूहों ने घरों पे कब्जा कर लिया.

वे बेधड़क घर में घूमते, जो भी खाने को मिलता उसे सफा चट कर जाते. रसोई में खाना बनाना मुश्किल हो गया, खाने का सामान सुरक्षित रखना दूभर हो गया. चूहे इतने दबंग हो गये थे कि उन्होंने कस्बे वालों से डरना छोड़ दिया. वो उनकी किताब, उनका सूटकेस, उनका कोई भी सामान, जो वे अपने दांतों से कुतर सकते थे, उस पर हाथ साफ करने लगे.

कस्बे के लोग तो पहले से ही चूहों के प्रकोप से सहमे हुए थे लेकिन जब चूहों द्वारा छोटे बच्चों पर हमला और उनको ही कुतर कर खाने का प्रयास किया जाने लगा तब कस्बे के लोग मनोवैज्ञानिक रूप से टूट गये. इस स्थिति को देखते हुये विशेषज्ञों को, ऑस्ट्रेलिया में चूहों से प्लेग की महामारी फैलने का अंदेशा होने लगा और उन्होंने सरकार को राय दी कि कस्बे को तत्काल खाली करा देना चाहिए ताकि मनुष्यों में प्लेग की बीमारी न फैल सके.

हालात की नज़ाकत को देखते हुये, सरकार ने नागरिकों को कस्बा खाली करने का आदेश दे दिया और लोग उस कस्बे को छोड़ के चले गये.

पूरा कस्बा मनुष्य विहीन हो गया और उस कस्बे में रह गए सिर्फ चूहे. उन चूहों का उस कस्बे पर एकछत्र राज्य हो गया. उन चूहों ने कुछ ही दिनों में उस कस्बे में बचा खुचा अनाज खा डाला और जब वह खत्म हुआ तो उस कस्बे की हर वह सामान कुतर डाला जिस को चूहे खा सकते थे.

फिर एक ऐसी स्थिति आयी कि उस रेगिस्तान में बसे कस्बे में कुछ भी ऐसा नही बचा था जिसको खा कर ज़िंदा रह सकते थे. अब चूहों ने अपने से कमजोर चूहों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया और चूहा, चूहे को ही खाने लगा.

कस्बा खाली किये जाने के दो महीने बाद जब स्थिति का जायजा लेने के लिये विशेषज्ञों के साथ उस कस्बे के लोग अपने कस्बे पहुंचे तो पूरी तरह सन्नाटा था और हवा में एक अजीब सी दुर्गंध फैली हुयी थी. उन्होंने देखा, जिस कस्बे को उन्होंने चूहों के कोलाहल और उनकी आक्रमकता के कारण छोड़ा था, उसी कस्बे की सड़कें और उनके घर, मर कर सूख गये चूहों के अवशेषों से पटा हुआ है.

आज पूरे कस्बे में एक भी जिंदा चूहा नहीं था.

यह सत्य कहानी उन लोगो के लिये संदेश है जो प्रकृति के नियमों की अवेहलना कर के, दर्जनों बच्चों की फौज खड़ा कर सिर्फ एक धर्म और एक प्रजाति के बचे रहने के ख्वाब में जीते है. कोई धर्म, कोई जाति या कोई भी प्रजाति, प्रकृति के इस नियम से परे नहीं है कि जो दूसरे के विनाश पर अपने सृजन की अभिलाषा रखता है, उसका सम्पूर्ण विनाश का जन्म उस सृजन की अभिलाषा में ही निहित होता है.

लोगो को डिस्कवरी चैनल देखना चाहिये. अच्छा चैनल है.

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