यज्ञ को केवल कर्मकाण्ड समझने वाले और उसकी आध्यात्मिकता के भौतिक जगत से संबंध और उसके प्रभाव को अस्वीकार करनेवाले ये नहीं जानते कि हमारे लिए अग्नि हमेशा से पूजनीय रही है. अग्नि के मानस देवता का हमारे कई ऋषि मुनियों ने साक्षात्कार किया है. और मात्र शारीरिक व्याधियां या बीमारियाँ दूर करने के लिए ही नहीं बल्कि दैवीय शक्तियों के आह्वान के लिए भी यज्ञ हवन उतना ही आवश्यक है. ठीक उसी तरह जैसे किसी मुद्दे पर सोशल मीडिया पर हलचल मच जाने पर सारे राष्ट्रवादी एक साथ लिखना शुरू कर राष्ट्रीय ऊर्जा को एकत्रित कर देते हैं. यह भी एक तरह का यज्ञ ही है.
ऐसे ही एक ऋषि स्वरूप श्री ओंकारनाथ जी बिना किसी व्यक्तिगत स्वार्थ के मात्र राष्ट्र की आध्यात्मिक उन्नति के लिए उन लोगों के लिए यज्ञ करते हैं जिन्होंने राष्ट्र की सेवा के लिए खुद को समर्पित कर दिया है. उन लोगों में मात्र माननीय नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ, मनोहर लाल खट्टर जी जैसों के ही नाम नहीं बल्कि देश की रक्षा करने वाले हमारे जवानों के अलावा सोशल मीडिया पर उनसे जुड़े कुछ मित्रों के भी नाम है. यही नहीं उनके फेसबुक और Whatsapp मित्र भी उसमें शामिल हैं.
अचम्भा मुझे तब हुआ जब उसमें मेरा भी नाम शामिल हुआ. तब मुझे अनुभव हुआ ओंकारनाथ जी का आशीर्वाद तो मिला ही साथ में मेकिंग इंडिया के उन हज़ारों पाठकों की ऊर्जा भी तो उस यज्ञ में आहुति समान है जो राष्ट्र की उन्नति और समृद्धि के लिए वेबसाइट के लेख को पढ़ते हैं, उसे आगे साझा करते हैं और बदले में दे जाते हैं अपना आशीर्वाद और प्रेम.
ये ऊर्जा ही तो है जो ब्रह्माण्ड में न जाने किन किन रूपों में विद्यमान रहती है. ऐसे ही ये शब्दों की ऊर्जा जन जन तक पहुँच कर एक ऐसी लहर पैदा कर रही है जो हमारे राष्ट्र की चिति (आत्मा) और विराट (प्राण) को दिनों दिन और अधिक समृद्ध कर रही हैं.
ऐसे ही आज आश्विन नवरात्रि में, महाष्टमी के दिन, गुरुवार को फेसबुक के राष्ट्रवादी, सनातनी मित्रों के स्वस्थ, निरोग जीवन, दीर्घायुष्य के लिए ओंकारनाथ जी ने यज्ञ में महामृत्युंजय मंत्र की आहुतियाँ दीं.
ओंकारजी कहते हैं – “नोटबंदी के समय गोवा भाषण में जब मोदी जी ने कहा कि उनकी जान को खतरा है तब मैंने दिसंबर 2016 में एक माह लगातार महामृत्युंजय मंत्र की आहुतियाँ दी थीं. 38 वर्षों के आध्यात्मिक जीवन में गायत्री महामंत्र, महामृत्यंजय मंत्र, यज्ञ के सैकड़ों चमत्कारों का अनुभव किया है. असम्भव को भी संभव होते देखा है. अतः मेरा पूर्ण विश्वास है कि मेरे इस आध्यात्मिक, साधनात्मक, यज्ञीय आहुतियों से सम्बंधित व्यक्तियों के जीवन में, अवश्य ही कुछ दैवी कृपा अवश्य ही प्राप्त होगी. मैं इस प्रकार अपना धर्म कर्तव्य और राष्ट्र धर्म निभाता हूँ, निभाता रहूँगा.”
राष्ट्र हित की यह भावना ही है जिसकी वजह से हर युग की आध्यात्मिकता उसकी भौतिकता से जुड़ जाती है.
आभार श्री ओंकार नाथ शर्मा ‘श्रद्धानंद’
संस्थापक, संचालक
श्री सत्य सनातन धर्म परिवार,
सिद्धपीठ, गायत्री शक्तिपीठ शांतिधाम, छपरा, बिहार