संघ की पोल खोल भाग-9 : प्रचारकों का पर्दाफाश, प्रचारकों की ऐश, बड़ी गाड़ियां, लक्ज़री लाइफस्टाइल

अब जबकि भाजपा केंद्र और अधिकतर राज्यों में सत्ता में है तो संघ प्रचारकों की भी ऐश होना स्वाभाविक है. अरे भैया आखिर सत्ता होती किस लिए है? सुख भोगने के लिए और किस लिए. तो इसमे कौन सी बड़ी बात है?

अक्सर विरोधी कहते हैं कि संघ के प्रचारक ऐश करते हैं. उन्हें सारी सुख सुविधाएं मुहैया होती हैं, बड़ी-बड़ी AC गाड़ियों में घूमते हैं. ऐसे में पिछले दिनों मुझे अपने एक मित्र के साथ संघ कार्यालय जाने का मौका मिला. बहुत सुना था संघ के बारे में ऐसा सुनहरा मौका मैं छोड़ना नहीं चाहता था. सो बताए टाइम से 10 मिनट पहले पहुँच गया.

[संघ की पोल खोल भाग-1 : First Hand Experience]

देखा तो संघ कार्यालय के बाहर बड़ी-बड़ी गाड़ियां लगी हुई थीं. और क्यों ना हो बड़े से बड़ा व्यक्ति यहां ढोक लगाने जो आता है. क्यों आते हैं ये मैं आपको पिछले भाग में बता चुका हूं. मैं समझ गया विरोधियों की बातें एकदम सत्य हैं. ख़ैर जब बाहर खड़ा था तो देखा कि एक प्रचारक महोदय पैदल चले आ रहे हैं.

अब तक प्रचारकों को अलग से पहचानने की क्षमता मुझ में आ चुकी है. जिस तरह वे किसी को पैर नहीं छूने देते लेकिन जिस तरह लोग झुक कर नमस्कार करते हैं उस से साफ पता चल जाता है कि अगला संघ का प्रचारक है. हाँ तो मैं कह रहा था एक प्रचारक पैदल आ रहे थे. अरे भैया कोई देख ना ले, इस लिए 100-200 मीटर पहले ही लक्ज़री गाड़ी से उतर गए होंगे ये सब ड्रामा है, हाँ.

[संघ की पोल खोल भाग-2 : संघ में जातिवाद]

अंदर गया तो देखा सब एक से एक साधारण कपड़ों में थे. सभी बेहद सामान्य लग रहे थे. शालीनता के साथ इज़्ज़त से कर हमें बैठाया गया. इतनी इज़्ज़त से तो हम लोग भी सामान्यतः बात नहीं करते.

मीटिंग के बाद हम सब जाने लगे तो एक प्रचारक महोदय अपना बैग ले कर उतरने लगे, उन्हें कहीं जाना था. हालांकि बैग कहना गलत होगा, आप थैला समझ लें, जिसमे सिर्फ 2 कपड़े आ सकते हैं. बाहर बड़ी-बड़ी गाड़ियां खड़ी थीं.

[संघ की पोल खोल भाग-3 : कम्युनल संघ]

लेकिन ये क्या, उन्होंने तो उस तरफ देखा तक नही. इतने में किसी ने उनसे निवेदन किया और वह उसके साथ चल दिये. अब मैं जासूस की तरह ये देख रहा था ये कौन सी लक्ज़री गाड़ी में बैठने वाले हैं.

हाय राम.. ये क्या? वे तो अपना बैग एक पुरानी सी एक्टिवा पर रख कर उस पर सवार हो गए. मुझे तो मानो सांप सूंघ गया हो, क्योंकि वे कोई सामान्य व्यक्ति नहीं थे बल्कि प्रदेश के प्रमुख प्रचारकों में से एक थे. मने वो हस्ती जिसके लिए मंत्री संतरी से ले कर CM भी अपनी गाड़ी भेज दें और इसमे अपना सौभाग्य समझें.

[संघ की पोल खोल भाग-4 : संघ प्रचारकों का पर्दाफाश]

ऐसे व्यक्ति को एक पुरानी सी एक्टिवा पर जाते देख मेरी आँखें फटी की फटी रह गयीं. अगर कोई आग्रह कर अपनी गाड़ी पर छोड़ दे तो ठीक वर्ना पैदल ही चल पड़ते हैं. 5-10 किलोमीटर इनके लिए सामान्य बात है और यहां 500 मीटर में पैर दुखने लगते हैं.

[संघ की पोल खोल भाग-5 : स्वाधीनता संग्राम और संघ का योगदान]

कुल मिला कर मैने पाया कि प्रचारकों को आपकी लक्ज़री गाड़ी से फर्क नहीं पड़ता बल्कि वे इससे बचते हैं. तो अगर आपके पास सफारी, स्कार्पियो, पजेरो वगैरह है और आप सोचते हैं कि वे दौड़ कर उसमें बैठ जाएंगे तो ये मुगालता अपने दिमाग से निकाल दीजिये. अलबत्ता यदि आप एक सामान्य से टू-व्हीलर पर हैं तो संभावना ज़्यादा है कि वे आपके साथ चल पड़ें.

[संघ की पोल खोल भाग-6 : आज़ादी का आंदोलन और गद्दार संघ]

बाद में मुझे किसी ने बताया कि संघ से प्रचारकों को साल में सिर्फ 2 कपड़े मिलते हैं, हैं ना लक्ज़री लाइफस्टाइल? फिर भी सभी प्रचारक एकदम साफ सुथरे रहते हैं. वे न्यूनतम में भी अच्छी तरह गुजारा करना बखूबी जानते हैं.

[संघ की पोल खोल भाग-7 : स्वाधीनता संग्राम और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ]

कुछ प्रचारक तो इतने हैंडसम हैं कि देख कर लगता ही नहीं कि ये प्रचारक हैं. एकदम फिल्मी हीरो जैसे, जिन्हें ऐश्वर्या राय जैसी लड़की मिल सकती थी लेकिन वे सबकुछ छोड़ कर दिन-रात देश सेवा में लगे हैं.

जब ट्रेन में सफर करते हैं तो कोशिश करते हैं कि जनरल बोगी में सफर करें. बहुत हुआ तो स्लीपर क्लास में. AC के बारे में तो सोचना भी मत, क्योंकि वे AC से ट्रेवल नहीं करते.

[संघ की पोल खोल भाग-8 : राष्ट्रीय ध्वज से नफरत करने वाले और तिरंगा न फहराने वाले संघी]

सिर्फ एक ध्येय राष्ट्रनिर्माण

इस गज़ब की लक्ज़री लाइफस्टाइल से भगवान ही बचाये. इनके आगे तो अपनी सामान्य सी ज़िन्दगी भी अब लक्ज़री लगने लगी है. भैया कम से कम हम से तो ना हो पायेगा ये सब.

इतना त्याग इतनी तपस्या किस के लिए? सिर्फ एक ध्येय राष्ट्रनिर्माण. इन्हें आजीवन ऐसा ही रहना है, कुछ नहीं मिलना. ऐसी भयंकर देशसेवा की सोच कर भी रोंगटे खड़े हो जाएं. छोटे से छोटा प्रचारक से ले कर सरसंघचालक तक का यही हाल है. मैंने अपनी पिछली लेखों में प्रचारकों को सच्चे संत की उपाधि दी थी, आज उस पर दोबारा मोहर लगा रहा हूँ.

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