नमो चालीसा : एक ही व्यक्ति में चारों वर्णों के गुण

नमो की प्रशंसा में लिखे मेरे लेख पर लोग कहते हैं, आजकल भक्त हनुमान चालीसा की जगह नमो चालीसा पढ़ते हैं. तो सोचा क्यों न नमो चालीसा ही लिखी जाए. उनकी प्रशंसा में कम से कम चालीस लेख तो लिख ही सकती हूँ. हालांकि यह लेख पिछले वर्ष लिखा था जब उस वर्ष अप्रेल में एक अंग्रेज़ी अखबार में एक लेख पढ़ा था जिसकी हेड लाइन थी –

PM Narendra Modi is a dream merchant: Dr Manmohan Singh

दस साल तक जिनकी जुबान पर खानदानी ताला लगा था जिसका कोड नम्बर भी खुद मनमोहन सिंह को पता नहीं था- वो अचानक से इतनी शायराना बातें करने लगे तो सोचने में ये भी आता है कि प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों और कार्यों ने मौन-मोहन को भी वाचाल-मोहन बना दिया, तो फिर सोशल मीडिया के वृहद मुख का कहना ही क्या.

लेकिन मोहन प्यारे ने बात तो बहुत पते की की थी, कि मोदी सपनों के सौदागर हैं.

वो सपने बेचते ही नहीं, सपने खरीदने का भी माद्दा रखते हैं. कहते हैं एक अच्छा व्यापारी कभी घाटे का सौदा नहीं करता. और मोदी जैसा चतुर व्यापारी तो घाटे का सौदा कर ही नहीं सकता.

मोदी के विदेश दौरों का और उनकी मेक इन इंडिया की व्यापारी नीति का मजाक उड़ाने वाले भी वही है जो देशी वस्तुओं को हिकारत की नज़र से देखते हैं और गैजेट्स से लेकर प्लास्टिक के डब्बे तक चाइना बाज़ार से खरीदते हैं.

हाँ मोदी सपनों के सौदागर हैं, उन्होंने युवाओं के सपनों को निवेश किया है, उन्होंने महिलाओं की दुआओं को निवेश किया है, उन्होंने बुजुर्गों के अनुभवों को निवेश किया है ताकि हमारे बच्चे उस दुनिया में स्वच्छंद सांस ले सके, जिसका मात्र सपना देखने के लिए मेरा देश पिछले सत्तर साल तक गहरी नींद में सोता रहा.

हाँ मोदी सपनों के सौदागर हैं, तभी उन्होंने देश के युवाओं को Startup India Standup India जैसे सपने देकर कहा- कि सपने वही पूरे होते हैं जो जागती आँखों से देखे जाएं. इसलिए अब उस लम्बी नींद से जागो, उस नींद में जितना समय गंवाया है उसकी भरपाई करने के लिए दोगुनी मेहनत करना है. इसलिए वो खुद भी दिन के सोलह से अठारह घंटे काम करते हैं, वो भी एक भी दिन छुट्टी लिए बिना.

हाँ मोदी सपनों के सौदागर हैं, तभी तो जिन्होंने दलित कहकर हाशिये पर फेंक दिया उन्हें मुख्य धारा में लाने के लिए वो उन्हें कहते हैं- ‘स्टैंडअप इंडिया’…. ईश्वर ने जो शक्ति, सामर्थ्य और हुनर सबको दिया है, वही शक्ति, सामर्थ्य और हुनर दलित भाइयों को भी दिया है.

हाँ मोदीजी ही असली सपनों के सौदागर हैं, तभी तो पानी का सपना देखने वाले लातूर में लोगों ने सपने को साकार होते देखा. उन्हें प्यास से मरता हुआ नहीं छोड़ा. यही नहीं भारत माँ के सौभाग्य को समृद्ध करने के लिए तमाम योजनाओं के साथ सौभाग्य योजना भी लाए हैं.

सौदागर अर्थात व्यापारी, चतुर बनिया, तो वैश्य का सबसे उम्दा उदाहरण है मोदीजी, जो कभी घाटे का सौदा नहीं करते. इसलिए उन्हें पता है किसी व्यापार को सफल बनाने के लिए क्या युक्तियाँ होती हैं. इसलिए उन्हें ये भी पता है कि त्वरित प्रतिक्रिया से वो हिन्दू राष्ट्रवादियों के चहेते तो बन जाएंगे… राजनीतिक बुद्धि से ठीक भी होगा… लेकिन उनकी राष्ट्रनीति कहती है देश को दोबारा विपक्षियों के हाथ में जाने से रोकने के लिए उनका लम्बे समय तक टिके रहना आवश्यक है, जो बाकी लोगों को पक्ष में किये बिना संभव नहीं है.

जिसके लिए उन्हें कई कटु आलोचनाएं सहना होगी, वो भी अपनों से… और वो सह भी रहे हैं… जिसे आप प्रधानमंत्री पद का लोभ कह रहे हैं, वो पद का लोभ नहीं, 70 सालों बाद जिन युक्तियों से बागडोर दोबारा भारतमाता के हाथ में आई है वो बस गलत हाथों में दोबारा न चली जाए, उसका प्रयास मात्र है.

और सिर्फ वैश्य ही क्यों, मैं बता दूं ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य और शूद्र तो आपने बहुत देखे होंगे. लेकिन आपने मोदीजी जैसा व्यक्ति नहीं देखा होगा जो ज्ञान से ब्राह्मण, कर्म से क्षत्रीय, युक्ति में वैश्य हो, आपके मन में आ रहा होगा शूद्र क्यों छोड़ दिया? तो सुनिए, आपकी परिभाषा के अनुसार शूद्र वह है जिन पर इन बाकी तीन वर्गों की सेवा का का भार था… तो एक अर्थों में मोदीजी खुद को “प्रधान सेवक” भी कह चुके हैं.

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