दुर्गा पूजा : ये अधूरी मूर्ति नहीं, ये है तुष्टिकरण की राजनीति में एक बड़ी आबादी का हाल

दुर्गा पूजा मनाने से वंचित पश्चिम बंगाल के लोगों पर केन्द्रित यह लेख गत वर्ष लिखा गया था, जो राज्य की ममता बनर्जी सरकार की हठधर्मिता के चलते आज भी प्रासंगिक है.

बरसों से हमने फिल्मों में भी देखा है कि एक सौतेली माँ होती है जो अपने बच्चे पर ज्यादा ध्यान देती है. वहीँ उसकी सौत के बच्चे को तरह-तरह की तकलीफों में डालती होती है. जाहिर है भेदभाव झेल रहा बच्चा जब बड़ा होता है तो वो फिल्म का नाराज़ हीरो होता है.

इस एंग्री यंग मैन से सबको सहानुभूति ही होती है, उसे जो झेलना पड़ा उसकी वजह से उसका गुस्सा जायज़ था. आज असगर वजाहत कहते हैं, हिन्दू साम्प्रदायिकता मुस्लिम तुष्टीकरण से बढ़ती है.

अब ये समझने के लिये विद्वान या कथाकार होने की तो जरूरत नहीं! इसके लिए कम्युनिस्ट या ‘सो कॉल्ड सेक्युलर’ होना भी जरूरी नहीं है. अगर एक घर में एक पर दूसरों से ज्यादा ध्यान दिया जाए, बाकी को छोड़ दें, तो ज़ाहिर है घृणा ही पैदा होगी.

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय लोगों के लिए संवैधानिक अधिकार है. सोचिये इसके बावजूद हम किसी बंगाली को दुर्गा पूजा ना मनाने दें तो क्या होगा? अगर आप सोच रहे हैं कि बंगाली को दुर्गा पूजा ना मनाने देना तो घोर अनर्थ हो जाएगा, बात बढ़ सकती है तो आप गलत सोच रहे हैं.

कई साल पहले बंगाल में ही ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ के रोज़ रमजान के पाक महीने में जब हिन्दुओं को काटा जा रहा था. तब मोहनदास करमचंद गांधी ने सलाह दी थी कि वो काटते हैं, बलात्कार करते हैं तो करने दो! हिन्दुओं को विरोध नहीं करना चाहिए. एक को दबा कर दूसरे को तजरीह देना शुरू हो चुका था.

प्रशासनिक हीलाहवाली

किस्मत से बंगाल के बीरभूम जिले के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट का नाम पी. मोहनगाँधी ही है. पिछले तीन सालों से इस इलाके के कंगलापहाड़ी में दुर्गा पूजा नहीं मनाने दी जाती. जब इस बारे में उनसे पूछा गया तो वो टरकाते हुए इजाज़त देने की जिम्मेदारी स्थानीय बी.डी.ओ. पर सरका कर निकल लेते हैं.

बीरभूम के एसपी एन. सुधीर कुमार को मामले का पता नहीं है. यहाँ के 300 हिन्दू परिवारों को 25 मुस्लिम परिवारों की शिकायत पर दुर्गा पूजा पिछले तीन साल से मनाने नहीं दी जाती है. हर बार प्रशासन इजाज़त देने से मना कर देता है, जबकि एक ग्रामीण ने इस मंदिर के लिए जमीन भी दान में दे रखी है.

तुष्टिकरण का आलम ये है कि जो अधिकारी मामले का पता ना होने का रोना रो रहे हैं उन सबके दफ्तर में आवेदन भेजा गया है. इस एक सितम्बर (2016) को ग्रामीण, डी.एम. ऑफिस, पुलिस अधीक्षक, सब-डिवीज़नल पुलिस ऑफिसर (SDPO रामपुरहाट), और बी.डी.ओ. नाल्हाटी-1 के दफ्तर में आवेदन जमा कर चुके हैं.

मेरे लिए मेरा संविधान बस इतना ही…

इस मामले को लेकर उन्होंने कोलकाता हाई कोर्ट में भी याचिका दायर की थी, जिसकी सुनवाई होनी है. ये जो आप तस्वीर में देख रहे हैं वो कोई अधूरी बनी मूर्ति नहीं है. ये तुष्टीकरण की राजनीति में भारत की एक बड़ी आबादी का हाल दर्शाता है.

मेरे लिए मेरा संविधान इतना ही लागू होता है. मेरे लिए मेरे कानून इतना ही काम करते हैं. मेरे लिए व्यवस्था इतनी ही चिंतित हैं. मेरी शिकायत की सुनवाई भी इतनी ही करते हैं हुक्मरान! मोहन राकेश की किताब के नाम जैसा… ‘आधे-अधूरे’

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