
अब ये BHU के मामले को ही लीजिये. पहला मुद्दा : जब बड़े-बड़े वामी तोप झूठ बोलते पकड़े गए तो बस इतना कहकर निकल लिए कि हाँ, वो लड़की का रक्तरंजित फोटो कहीं और का है, बाद में पता चला, सो हम ने डिलीट कर दिया है. क्या अपने व्यवसायिक जीवन में ये लोग इतनी लापरवाही से काम चला सकते हैं?
वैशाखनंदिनी वरिष्ठ पत्रकार रही हैं. और भी प्रतिष्ठा के पदों पर रही हैं. क्या वहाँ भी ये इसी तरह काम करती रही? दैनिक हिंदुस्तान की चीफ एडिटर थीं तो क्या इतने गैर जिम्मेदाराना तरीके से समाचार छापती रहीं?
प्रशांत भूषण, सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील रहे हैं. क्या अपने आर्गुमेंट्स इसी तरह करते हैं सुप्रीम कोर्ट में? संजय सिंह तो केजरीसैनिक हैं, सच बोलेंगे तब न्यूज़ होगी. उनके बारे में क्या कहना.
यानी ये झूठ पकड़े जाने पर बस कंधे उचका कर निकल लेंगे और हम इन्हें जाने देंगे? ये झूठ इसलिए बोलते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि उन्हें कोई शारीरिक दंड मिलने से रहा. कानून उनकी ही सुरक्षा करता है और उनके ऐसे किए का नुकसान तय करने की कोई प्रणाली स्थापित नहीं है जिसके मानकों पर इन पर अभियोग चला कर इन्हें सज़ा दी जाये.
अब दूसरे मुद्दे को लेते हैं, यह और भी गंभीर है. छेड़छाड़ के आरोप पर रक्षात्मक होने की आवश्यकता ही क्या थी? प्रोसीजर से नहीं निपटा सकते थे? तुरंत लड़की से FIR कराते, जांच कमेटी बिठाते.
लड़की को भी तो अपने आरोप की पुष्टि करनी होती, लड़के को भी मौका मिलता, और सब से बड़ी बात, आंदोलन करने का मौका नहीं मिलता. सीधा कह तो सकते थे कि मामला कानून का है, कानून के हवाले किया है, कोई बीच बचाव नहीं होगा. जो अपराधी होगा उसे सज़ा मिलेगी.
बाकी केवल किसी के आरोप लगाने से अपराधी मान कर दंडात्मक कारवाई भी कर दें यह नहीं होगा. उसके लिए पुलिस और कोर्ट है, वे ही यह काम करेंगे.
तसवीरों का झूठ सामने आने पर भी वामी अपने एक आरोप को पकड़े रहे हैं. माना फोटो सही नहीं था लेकिन छेड़छाड़ तो गलत है.
छेड़छाड़ – in principle गलत होती है. वामियों का कहना अलग है. वे कह रहे हैं कि छेड़छाड़ की गई है, इनके इस आरोप को ही सत्य मान कर ही खुद को अपराधी मानना चाहिए. क्यों भला? जांच बिना कैसा न्याय?
वामियों का कहना है कि क्या लड़कियां ऐसा झूठ बोलेंगी? यही वाक्य एक trap है – क्या लड़कियां ऐसा झूठ बोलेंगी? – और इसमें प्रशासन आ गया है. वैसे और भी गलतियाँ हैं. जहां तक स्थानीय रिपोर्ट्स हैं, बाहरी चेहरे दिखाई दे रहे थे दो दिन पहले से. धर के थूर देते ढंग से तो ये बाकी नाटक से बचा जा सकता था.
फ्रंट फुट पर खेलो, मालिकों, भारत की जनता क्रिकेट की दीवानी है और उसने हमेशा फ्रंट फुट पर खेलने वालों को चाहा है.