चित्रकूट में जब भरत प्रभु से मिलने जाते हैं तो श्रीराम भरत को राजकाज और राजनीति की शिक्षा देते हैं. प्रभु ने भरत को तब जो शिक्षायें दी थी वो आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं. प्रभु की कुछ शिक्षाओं का सीधा उपयोग तो आज के भारत में भी होना चाहिये था जो दुर्भाग्य से नहीं हो रहा. आज जो बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हो रहा है यह सिर्फ इसलिये हुआ है कि कहीं न कहीं JNU के उन सब राष्ट्रद्रोहकों के साथ तब नरमी बरती गई थी.
राम भरत से कहते हैं – “हे भरत! राजा को चंचल वृति का नहीं होना चाहिये अन्यथा वो आपातरमणीय वचनों को सुनकर ही संतुष्ट हो जाता है और सहसा बिना सोचे-विचारे ही किसी कार्य की ओर दौड़ पड़ता है. उसकी इस प्रवृति के कारण उसके छिद्र (दुर्बलता) को शत्रु लोग उसी तरह से ताड़ जाते हैं जैसे क्रौंच पर्वत के छेद को पक्षी. (यानि जिस प्रकार क्रौंच पर्वत के छेद से होकर पक्षी पर्वत के उस पार चले जाते हैं और आते-जाते रहते हैं ठीक उसी प्रकार शत्रु भी राजा के उस छिद्र या कमजोरी से लाभ उठाते हैं)”
जब ओबामा भारत आने वाले थे तब चर्च पर हमले की कहानी बनाई गई और आपने फौरन सारे अल्पसंख्यकों को सुरक्षा का आश्वासन देकर अ-प्रत्यक्ष रूप से ये यह मान लिया कि हाँ! यहाँ तो अल्पसंख्यकों के लिये खतरे हैं. फिर अखलाक़ काण्ड हुआ और आप कोझीकोड में हिन्दुओं को समझाने लग गये. फिर गोरक्षा, पहलू खान और जुनैद, धार्मिक हिंसा, JNU, HCU का वेमुला काण्ड और एक के बाद एक उनके फेंके पांसे में आप फंसते चले गये फिर एक दिन आपको एक चैनल के राष्ट्रद्रोह पर कार्रवाई करने से भी पीछे हटना पड़ा.
शत्रु पक्ष बहुत अच्छे से ये बात समझ चुका है कि शोर मचाओ, दबाव् डालो और इनसे जो गलत नहीं भी हुआ है उसकी भी स्वीकारोक्ति करवा लो. आपके इस छिद्र को शत्रु-पक्ष भांप चुका है साहेब, और वो इसका लाभ भी उठा रहे हैं. किसी ने बड़ा सही लिखा था कि इस तीन साल में एक मृत हो चुकी विचारधारा को सबसे अधिक संजीवनी मिली है. ये सत्य इसलिये है कि उन्होंने पर्वत समान आपके विराट कद में एक छिद्र ढूंढ लिया है.
BHU का ड्रामा भी इसी कड़ी का हिस्सा है. शोर मचाओ, नाटक और हंगामे करो और फिर साहेब को मजबूर कर दो कि वो अपने ही खेमे पर चढ़ दौड़ें.
साहेब! रामलला की नीतियों का अनुगमन करिये, पूरा देश आपके साथ है. करीब डेढ़ दशक तक आसुरी शक्तियों से अकेले जूझने वाले मजबूत कद के इस व्यक्ति को यूं लाचार, बेबस और शत्रु की चाल में फंसता देखना बेहद दुख:दायी है.
वाल्मीकि रामायण के युद्धकाण्ड में प्रभु राम लक्ष्मण से कहते हैं, “भाई! शमनीति (शांति) के द्वारा इस लोक में न तो कीर्ति प्राप्त की जा सकती है, न यश का प्रसार हो सकता है और न संग्राम में विजय ही पाई जा सकती है”. बाकी दिग्विजयी सम्राट आप स्वयं ही हैं और शत्रुओं का शमन भी जानते हैं बस इस पक्ष पर भी विचार करिये.