हम लोग यहां एक उद्देश्य को लेकर आए हैं. अधिकांश मित्र यहां हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की लड़ाई लड़ रहे हैं. न आप ये चाहेंगे कि ये लड़ाई झूठ की बुनियाद पर लड़ी जाए और न मैं ये चाहूंगा. बात ये है कि रोहिंग्या मुसलमानों की एक फोटो जबरदस्त ढंग से वायरल हो रही है.
बड़े-बड़े फेसबुकियों ने मान लिया है कि रोहिंग्या आदमखोर हैं, मनुष्य का मांस खाते हैं. किसी ने उन फोटोग्राफ्स की सच्चाई जानने का प्रयास नही किया. भाई, ये फोटो रोहिंग्या मुसलमानों की नहीं है. इसका मतलब ये नहीं कि मैं रोहिंग्या का पक्षधर हो गया लेकिन धर्मयुद्ध में ‘अधर्म’ का सहारा हम कैसे ले सकते हैं.
ये फोटो थाईलैंड के ‘परचौब खिरि खान प्रोविन्स’ (parchaube khiri khan) में 13 मार्च 2009 को खींची गई थी. यहां एक बौद्ध समुदाय है जो एक पुरानी परंपरा को आज भी निभाता आ रहा है. अंतिम संस्कार की यहां दोनों विधियां अपनाई जाती हैं. यानि दहन और दफन दोनों किये जाते हैं. यहां जो लाशें लावारिस पाई जाती है, उनका अंतिम संस्कार सामूहिक रूप से किया जाता है.
उस दिन 64 लाशें यहां रखी गई थी. लावारिस लाशों के एक साथ दाह संस्कार करने लायक संसाधन उनके पास नहीं हैं इसलिए लाशों के टुकड़े किये जाते हैं और उनकी हड्डियों का दाह संस्कार कर दिया जाता है. इन संस्कारों पर बाकायदा सरकार की निगाह रहती है.
आम नागरिक अपनी इच्छा से इस संस्कार में हिस्सा लेते हैं और उस दिन अनिवार्य रूप से उन्हें उपवास करना होता है. संस्कार पूरा होने पर उन्हें शाकाहारी भोजन करने की इजाज़त होती है.
विश्वास नहीं हो रहा होगा लेकिन ये सच है. इस फ़ोटो का रोहिंग्या से कोई संबंध नही है. उम्मीद करता हूँ कि अब आगे ये झूठ जारी नहीं रहेगा. राष्ट्रवादी मित्र इस झूठे अध्याय को यही समाप्त कर देंगे. और इस खुलासे से रोहिंग्या के प्रति रुख में कोई नरमी नहीं आने वाली है.