BHU : पत्रकार के नाम पर जमा होकर वहां क्या कर रहे थे वामपंथी कार्यकर्ता?

चलिए, हम मान लेते हैं कि हमेशा की तरह ही संघी वीसी (ये डिग्री कहां बंटती और वेरिफाइ होती है, ज़रा पता लगाया जाए) मामले को संभाल नहीं पाए और एक बार फिर से ‘कम्युनिस्ट’ मामले को रंगने में कामयाब रहे. आप और हम किसी भी प्रशासनिक दायित्व को न संभालते हुए भी यह ज्ञान दे दीजिए कि वीसी और प्रॉक्टर को ये करना था, वो करना था… अमुक देखना था… ब्ला… ब्ला…. पर, कुछ सवाल बनते हैं… और ये पर… महत्वपूर्ण है….

1. जब आंदोलन लड़कियों का, लड़कियों के लिए, लड़कियों द्वारा था, तो पुलिस द्वारा कुटाई में लड़के कैसे घायल हुए. वह भी वैसे लड़के, जिनमें से कई दूसरे कॉलेज और यूनिवर्सिटी के थे, कुछ बनारस के बाहर के थे, कुछ के क्रेडेंशियल्स ही गड़बड़ थे. लड़कयों के आंदोलन के बीच में जनता का स्वयंभू चैनल बाहर से लोगों को ले जाकर फिर उन्हें बीच में बिठाकर उनकी बाइट क्यों करता है. पत्रकार के नाम पर वामपंथी कार्यकर्ता वहां जमा होकर क्या कर रहे थे?

2. वीसी के लड़कियों से मिलने की खबर भी है. उनके विरुद्ध नारेबाजी के साथ ही पत्थऱ चलाने और हिंसा की भी खबर है. इसमें पुलिस को क्या करना चाहिए था?

3. यह देश सचमुच अजीब है. केजरीवाल ने गजब प्रथा चलायी है. हरेक चीज़ पर पीएम बयान दें? अरे… पीएम न हुए, आपके पार्षद हो गए. जेएनयू पर बयान पीएम दें, एचसीयू पर दें, बीएचयू पर दें, जामिया पर दें… गोया पीएम मुदर्रिस हैं आपके. भइए, सैकड़ों यूनिवर्सिटी है आपके देश में. चचा नेहरू और इंदिरा माई की दया से 60 साल में आपकी जड़े भी खूब पुष्पित-पल्लवित हैं. आपको तो आपकी कब्ज के लिए भी मोदी जिम्मेदार लगते हैं, तो हुजूर हरेक यूनिवर्सिटी में अगर आप गड़बड़ करें, तो पीएम हरेक पर बयान देते रहें, मौजूद हो जाएं वहां….. सीपीआई कार्यकर्ता समझ लिया है क्या, जो खलिहर है पूरी तरह.

4. हमेशा की तरह मुख्य मुद्दा बैकग्राउंड में चला गया, कम्युनिस्टों की मेहरबानी से. जैसे, जेएनयू वाला मामला चला गया. वहां मसला देशविरोधी नारे लगाने का था, उनको सपोर्ट करनेवाले जेहादी-वामपंथी गठजोड़ को निकालना मसला महिलाओं की सुरक्षा है. उसके लिए वीसी का घेराव कीजिए, यूनिवर्सिटी बंद कीजिए, जो करना है कीजिए, लेकिन महामना की मूर्ति को पोतना, जनजीवन अस्त-व्यस्त करना… ये सब क्या मामला है. वो भी, उनके नेतृत्व मे, जो खुद बिड़ला के आगे होली के नाम पर अश्लीलतम हरकतें करते हैं, बनारसी ठसक के नाम पर रोज़ ही नारी को गाली देते हैं, किसी भी तरह की प्रगतिशीलता से इंकार करते हैं….

5. अंत में यह कि, एक पैटर्न है. एक के बाद एक यूनिवर्सिटी औऱ जिस तरह से कभी राहुल गांधी, तो कभी राज बब्बर लपकते हैं. लावा-दुआ में वामपंथी तो रहते ही हैं. सफेद दाढ़ी वाले सांप्रदायिक ने ऐसी नस दबा दी है बबुओं की कि अब रहा नहीं जा रहा. आप सोचिए कि आपको गिद्धों की बात में आना है कि नहीं.

बाक़ी, इस घटना की सैकड़ों व्याख्याएं आ चुकी हैं. वामपंथी गिद्ध लपक चुके हैं, तो या तो प्रतिक्रियावादी बनना बंद कर क्रिया कीजिए या उनकी ही रक्तपिपासा को पूरा कीजिए.

Comments

comments

LEAVE A REPLY