भारत के मुसलमान, रोहिंग्याओं को यहाँ क्यों बुला रहे है? क्योंकि वे उनके लिए cannon fodder हैं! क्योंकि आज की तारीख में रोहिंग्या एक भुक्खड़ फौज है जिसके पास खोने को कुछ नहीं. म्यांमार में उसे मारा ही जाएगा, वहाँ अपनी घिनौनी मज़हबी फितरत के कारण वो म्यांमार के लोगों की सारी सद्भावना खो चुका है. वहाँ उसको कोई शरण नहीं, मरण की ही गारंटी है.
भारत का मुसलमान आज फ्रंट लाइन सिपाही नहीं बनना चाहता. आज उसके पास खोने को कुछ है. कुछेक के पास तो बहुत कुछ है. लड़कर जान नहीं गंवानी उनको, कम से कम फ्रंट लाइन में नहीं. वे आज डेस्परेट नहीं हैं इसीलिए cannon fodder – तोप का चारा – खोजने के लिए डेस्परेट हुए हैं. क्या होता है ये cannon fodder? अगर आप को पता है तो अगला पैराग्राफ छोड़कर आगे पढ़ सकते हैं.
लगभग सवा सौ साल पहले तक, तोप के गोले आज जितने बड़े दायरे में विस्फोटक नहीं होते थे, वाकई लोहे के भारी गोले ही होते थे. तब उनकी मार सहने के लिए highly trained सैनिकों को आगे नहीं जाने दिया जाता था. ये बस जरा सा सिखाये कच्चे रंगरूट होते थे जो दौड़कर टूट पड़ते थे. तोपें भी फटाफट नहीं चलती थी, गोला चलाने के बाद गरम तोप को ठंडा किया जाता था तब ही अगले फायर के लिए बारूद भरा जा सकता था. समय लेता था. इतने समय में ये cannon fodder लोग – जितने भी बच गए हो – दौड़कर पहुँच जाते और तोपचियों पर हमला बोल देते. तोपें ठंडी पड़ने पर प्रशिक्षित सेना, घुड़सवार दल (ये सब से महंगे सैनिक होते थे) धावा बोलकर मारकाट कर देते. तो ये होते थे cannon fodder लोग. अब मुद्दे पर आते हैं.
रोहिंग्या के पास कुछ नहीं, वो जड़ें जमाना चाहता है. वैसे वो भी मरना नहीं चाहता लेकिन अन्य उपाय नहीं तो लड़ने को तैयार है. ये जो इनके लिए नौटंकी कर रहे हैं वे खुद को रिज़र्व सोल्जर्स मान बैठे हैं. और इन्होने रोहिंग्याओं को समझा दिया है – ‘बहुत नहीं मरोगे, हिन्दू में लड़ने का माद्दा है ही नहीं, उनकी मीडिया को हमने खरीद लिया है और उनके सभी नेता भी हमारे इशारे पर चलते हैं, क्योंकि उनका काला धन हम ही मैनेज करते हैं, वे भी अपने लोगों को संगठित होकर लड़ने का आदेश नहीं देंगे. असंघटित लड़नेवाले को मारना मुश्किल नहीं है. और हम भी आ ही रहे हैं, तुम्हारे पीछे ही. मरोगे तो जन्नत मिलेगी, जिंदा रहोगे तो घर. फायदे में रहेंगे हम दोनों’.
आप ने क्या तय किया है अब? अगर आप ने रविश कुमार जैसे सोचा है कि क्या फर्क पड़ेगा, हम भी मुसलमान हो जाएँगे, तो जरा अल्लाह का पैगाम भी सुन ही लीजिये –
कुर’आन सूरह 8 आयत 67 को समझिए – “कोई नबी जब तक रू-ए-ज़मीन पर काफिरों का खून न बहाये, उसके यहाँ कैदियों का रहना मुनासिब नहीं. तुम लोग तो दुनिया के ऐश-ओ-राम चाहने वाले हो और अल्लाह तुम्हारे लिए आखिरत की भलाई चाहता है और अल्लाह जबर्दस्त हिकमत वाला है.”

और आप सोचते हैं कि आप कन्वर्ट होंगे तो बख्श दिये जाएँगे. यहाँ तो काफिरों का खून बहाने के बाद ही जो काफिर बचे तो उन्हें कैदी बनाने की बात कही गई है.
वैसे भगवद्गीता का एक श्लोक बता ही देते हैं –
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्.
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः ॥३७॥
या तो तू युद्ध में मारा जाकर स्वर्ग को प्राप्त होगा अथवा संग्राम में जीतकर पृथ्वी का राज्य भोगेगा. इस कारण हे अर्जुन! तू युद्ध के लिए कृतनिश्चयी होकर खडा हो जा. ॥३७॥
तस्मादुत्तिष्ठ!