फिल्म – अनोखी रात, संजीव कुमार का जीवंत अभिनय, कभी न मिटने वाली दर्द की छाप अनोखी रात से लेकर खिलौना तक…..
बहुत छोटी रही होउंगी शायद १२-१३ साल की तब देखी थी दूरदर्शन पर ये फिल्म, लेकिन उस समय जिस वेदना से गुज़री थी वो आज भी उतनी ही ताज़ा है…. सोच रही हूँ कितना अंतर आया है परिस्थितियों में…
इस हो हल्ला और चीख पुकार और सजावटी मोमबत्तियों के पीछे आज भी वही चीत्कार है, और उन मोमबत्तियों के आगे वही नारे बाजी —– नारी तू ये नारी तू वो…
नहीं, कुछ नहीं बदला है सिर्फ समय आगे बढ़ गया है लेकिन उस समय के पीछे जीवन की परिभाषा आज भी यही है….
कि………………
सूरज को धरती तरसे
धरती को चन्द्रमा
पानी में सीप जैसे
प्यासी हर आत्मा
बूँद छुपी किस बादल में
कोई जाने ना….
https://www.youtube.com/watch?v=9Za8ZtfHXXY&feature=youtu.be