घुसपैठियों से क्या होता है, वो हम असम में देख चुके

एक किंवदंती सी है जो रुसी नौसेना अधिकारी वसीली आर्खिपोव के नाम से चलती है. उन्हें अक्सर दुनिया बचाने वाला नौसैनिक कहा जाता है. कितना सच है, कितना झूठ ये तो पता नहीं, लेकिन कहते हैं कि क्यूबन मिसाइल क्राइसिस के दौर में क्यूबा के पास ही किसी पनडुब्बी में वसीली तैनात थे. जब अमरीकी हवाईजहाजों और समुद्री जहाजों ने इलाके में गहराई जांचने वाले यंत्र गिराए तो उनकी पनडुब्बी को बाहर आने का सिग्नल देने लगे, ताकि उसकी पहचान हो सके.

पनडुब्बी बहुत गहराई पर थी और रेडियो सिग्नल वहां पहुँच सकें ऐसी हालत नहीं थी. पनडुब्बी के लोग महीनों से वहीँ पड़े थे तो दुनिया में क्या हो रहा है ये भी उन्हें पता नहीं था. पनडुब्बी के कप्तान सविट्सकी ने तय किया कि ये सिग्नल युद्ध शुरू होने के सिग्नल हैं. टोह ले रहे जहाज पर उन्होंने एक न्यूक्लियर तारपीडो दाग देने का फैसला किया. इस न्यूक्लियर हमले का मतलब होता कि इस युद्ध के बादल मॉस्को, लन्दन, पूर्वी एंग्लिया और जर्मनी पर छा जाते. करीब आधी ब्रिटिश आबादी इस एक मिसाइल से ख़त्म हो जाती.

इस एक हमले का मतलब होता कि जवाबी हमले में भी परमाणु हथियार दागे जाते. क्यों और कैसे मर गए, ये समझे बिना ही दुनिया के कई देश साफ़ हो जाते. खुशकिस्मती से तारपीडो सर्वसम्मति के बिना नहीं छोड़ा जा सकता था. जब सबकी सहमति थी तो वसीली आर्खिपोव ने अपना वीटो का पावर इस्तेमाल कर डाला. समुद्रतल के पास किसी ऐसे कमरे में जहाँ सभी संभावित हमले से डरे बैठे लोग जवाबी हमले की तैयारी में थे तो एक आदमी की ‘ना’ ने भविष्य बदल दिया.

उस दिन एक वसीली ने ‘ना’ कह दिया था इसलिए परमाणु युद्ध हुआ ही नहीं. भारत पर भी वैसे ही हालात हैं. कुछ को लगता है कि घुसपैठिये और अतिथि में कोई अंतर ही नहीं है, इसलिए वो बांग्लादेशियों और रोहन्गिया को यहाँ बसाने पर तुले हैं.

कुछ को सबसे बड़े लोकतंत्र को जिम्मेदारी याद दिलानी हैं, जबकि बाकी पूरे वक्त वो सिर्फ अपने अधिकारों की अपने हक़ छीन के लेने की बात करते हैं. कुछ हैं जिन्हें समझ ही नहीं आ रहा कि पहले ही जनसँख्या का दबाव झेलते देश में तीन करोड़ बांग्लादेशी और एक आध करोड़ रोहन्गिया के आ जाने से क्या फर्क पड़ेगा, तो वो भी कहते हैं आने दो.

ऐसे माहौल में मेरी आवाज शायद इकलौती भी हो, बड़े अखबार मेरे लेख नहीं छापते, मुखपत्रों जैसे टीवी चैनल हमारा भाषण प्रसारित भी नहीं करेंगे, मगर फिर भी… इन्हें बसाने पर मेरी आपत्ति दर्ज की जाए. इन घुसपैठियों से क्या होता है वो हम असम में देख चुके हैं. जबरन घुस आये इन लोगों को हमारे घर से भगाया जाए.

Comments

comments

LEAVE A REPLY