भारतीय लोग जाने अनजाने ढिम्मी बने रहते हैं. किसी भारतीय को सतर्क किया जाए कि फलाना आपको लूट रहा है, आपका शोषण कर रहा है तो वह उल्टा तर्क देता है “नहीं भाई साहब, फलाने ने तो यह व्यवस्था इसलिए बनाई है कि लूट बन्द हो सके”.
अपनी बु्द्धि दौड़ाइए, अपनी विवेचना कीजिए, अपना निष्कर्ष निकालिए कि कहीं सामने वाला ठीक तो नहीं कह रहा? कहीं वास्तव में फलाना लूट तो नहीं रहा? सामने वाले की इसमें क्या रुचि है, उसे क्या लाभ है मुझे सतर्क करने से? अपनी बुद्धि को कष्ट दीजिए उसे किसी के पास Mortgage करा के न रखें, बन्धक न रखें. बुद्धि को कष्ट न देना ही पराधीनता है यही गुलामी है. यह स्टॉकहोम सिन्ड्रोम (Stockholm Syndrome) है.
एक कटु सत्य है कि भारतीय लोग मानसिक रूप से अभी पराधीन/ दास/ गुलाम ही हैं. समाज अथवा राष्ट्र को स्वतन्त्र बनाने से पहले स्वयं को, स्वयं की मन:स्थिति को स्वयं के विचारों को स्वतन्त्र बनाना पड़ता है. ध्यान दीजिए यह कहा है कि “विचारों को स्वतन्त्र बनाना पड़ता है” इसका अर्थ यह नहीं है “विचारों को उन्मुक्त बनाना पड़ता है”.
उन्मुक्त का अर्थ है कि आप कुछ भी अनाप शनाप सोचिए, स्वतन्त्र का अर्थ है अपनी व्यवस्था अपने अनुशासन में रह कर विचार करना. आगे बढ़ते हैं…
किसी मित्र ने लिखा है :
“ये भी हवा बनाई गई कि बैंक आम आदमी को लूट रहे हैं, न्यूनतम बैलेंस से कम रखने पे पैसे कटेंगे, SBI ने ऐसी कटौतियाँ करके फ़लाँ करोड़ बना लिए. लेकिन किसी मीडिया वाले ने इस बारे में सही जानकारी नहीं दी. मालूम हो कि अक्सर लोग अनायास दो-तीन खाते खुलवा के रखते हैं, इस्तेमाल एक का करते हैं लेकिन बैंक इन खातों के मेंटेनेस के लिए अनायास ख़र्च करता रहता है, उसे हासिल कुछ नहीं होता, जिससे उसकी दक्षता प्रभावित होती है. ये मिनिमम बैलेंस वाला फ़ंडा इसीलिए आया है ताकि लोग सहूलियत का बेजा इस्तेमाल न करें.”
भाई, तुम्हें भारतीय बैंकों का पता है, बैंकिंग प्रणाली का पता है? आप अत्यन्त बुद्धिमान हैं, विचार कीजिए. बचत खाते पर बैंक आपको कितनी ब्याज देता है? आजकल तो 4% भी नहीं है. अच्छा महँगाई क्या होती है भाई साहब? मुद्रास्फीति क्या होती है? बस आप स्वयं खोजिए और विवेचना कीजिए. मैं कुछ नहीं कहूँगा, अपनी विवेचना और अपने निष्कर्ष निकालिए…
एक बैंक ने, केवल एक बैंक ने 235 करोड़ जुर्माना वसूला है, एक तिमाही में. कौन से खातों से वसूला है? जिन्हें, खाते में न्यूनतम बैलेंस रखने की क्षमता नहीं थी, उन्हें एक से अधिक खाते रखने की क्या आवश्यकता थी? भाई साहब, उसकी सभी शाखाओं के कर्मचारी कितने हैं? कई शाखाओं के कर्मचारियों का वेतन ही इसी जुर्माने से निकल गया… वाह इसे कहते हैं स्मार्ट बैंकिंग.
अधिक खाते होने से बैंक पर बोझ बढ़ता है तो बैंक उसके लिए सेवा शुल्क भी लेता है. एटीएम से रुपए निकलवाने पर भी शुल्क लगता है, चेक बुक जारी करने पर भी शुल्क लगता है. गृह शाखा के अतिरिक्त किसी अन्य शाखा में जमा करवाने पर भी शुल्क लगता है. ये सब सेवाएँ नि:शुल्क होती हैं क्या?
अच्छा, बैंक आपको कितने ब्याज पर ऋण देता है? जो हमारा पैसा बैंक के पास जमा होता है और दूसरों को ऋण दिया जाता है उस पर बैंक कम से कम 6% ब्याज कमाता है, 15% भी हो सकता है.
चलिए, ये सब बातें एक तरफ, ऊपर दिया गया चित्र एक ईमेल की प्रति है. यह ईमेल उसी बैंक के, भारत के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक के सर्वोच्च पदाधिकारी अर्थात् अध्यक्ष महोदया से प्राप्त ईमेल के उत्तर में लिखी गई है जिसका उत्तर नहीं मिला… और मिलेगा भी नहीं. और इससे पूर्व की ईमेल में क्या लिखा गया? बैंक के विरुद्ध शोषण तथा धोखाधड़ी के मामले के अन्तर्गत FIR की चुनौती दी गई है…
अभी कल की ताजा खबर यह है कि बैंक अपनी जुर्माने की नीति की समीक्षा कर रहा है. इसका मतलब समझ रहे हैं न?
ढिम्मी मत बनिए, और यह भी जानिए कि बैंक की नीतियाँ और शुल्क आदि सरकार निर्धारित नहीं करती. बैंक अपनी नीतियाँ स्वयं बनाते हैं रिज़र्व बैंक के अनुशासन के अन्तर्गत, और बैंक, रिज़र्व बैंक के नियमों का कितना पालन करते हैं यह हम दिखाएँगे कुछ ही दिनों में सीधे प्रसारण से…
महत्त्वपूर्ण नोट : सरकार अपनी रक्षा स्वयं करने में सक्षम होनी चाहिए, अपने रिपोर्ट कार्ड के माध्यम से… सरकारी बाउंसर न बनें… यह सोशल मीडिया बाउंसरों से निपटना भी जानता है.
– अशोक सत्यमेव जयते The 4th Pillar