हंगामा है क्यों बरपा : भाग-1

वित्त वर्ष 2013-14 में सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थों पर एक्साइज़ ड्यूटी से 88,065 करोड़ रूपए वसूले थे. 2014-15 में 1,06,653 करोड़ रूपए वसूले थे. 2015-16 में 1,98,793 करोड़ वसूले थे और 2016-17 में 2,40,000 करोड़ रूपए वसूले थे. अर्थात पिछले 3 वर्षों में सरकार ने डीज़ल पेट्रोल के दाम नहीं घटाकर लगभग 2.81 लाख करोड़ रूपए कमाये हैं. इन्हीं रुपयों को लेकर कांग्रेस और कुछ मीडिया हाऊस देश में हंगामा बरपाए हुए हैं. ऐसा वातावरण बनाया जा रहा है मानो सरकार ने लोगों को लूट लिया है. आखिर कहां गया यह पैसा?

उपरोक्त सवाल का जवाब केवल इस एक उदाहरण से समझा जा सकता है कि अगस्त 1947 से मार्च 2014 तक 67 वर्षों की समयावधि में देश में रेलवे के आधारभूत ढांचे के निर्माण पर लगभग 25 लाख करोड़ रूपए खर्च किये गए थे. जबकि पिछले 3 वर्षों में रेलवे के आधारभूत ढांचे के निर्माण पर लगभग 4.9 लाख करोड़ रूपए खर्च कर चुकी है मोदी सरकार.

यह सामान्य आंकड़ा या उपलब्धि इसलिए नहीं है क्योंकि 2004 से 2014 के दौरान 63 हज़ार करोड़ की 68 रेल परियोजनाओं के लिए विभिन्न रेल बजटों में धन आवंटित हुआ. 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद यह पता चला कि उन 68 में से एक परियोजना पर अभी काम चल रहा है. शेष 67 परियोजनाओं पर काम कभी शुरू ही नहीं हुआ. लेकिन उनके लिए बजट में आवंटित पूरी राशि अवश्य खर्च हो चुकी है.

मई 2014 में सत्ता सम्भालते ही मोदी सरकार का सामना इस भयानक सच से हुआ था कि पिछले 30 वर्षों के दौरान 1,57,883 करोड़ रूपए मूल्‍य की कुल 676 परियोजनाएं स्‍वीकृत की गईं, इनमें से केवल 317 परियोजनाओं को ही पूरा किया जा सका और शेष 359 परियोजनाओं को पूरा किया जाना बाकी है.

इतना अधिक विलम्ब होने के कारण उन शेष परियोजनाओं का लागत मूल्य कई गुना बढ़ चुका था जिन्‍हें पूरा करने के लिए अब 1,82,000 करोड़ रूपए चाहिए थे. एक और शर्मनाक सच्चाई यह भी उजागर हुई थी कि पिछले 10 वर्षों में 60,000 करोड़ रूपए मूल्य की 99 नई लाइन परियोजनाओं को स्वीकृत किया गया, जिसमें से मई 2014 तक मात्र एक परियोजना को ही पूरा किया गया. इसमें 4 परियोजनाएं तो ऐसी थीं जो 30 वर्ष तक पुरानी थीं परन्‍तु वे 2014 तक पूरी नहीं हुई थीं.

यह उदाहरण बताता है कि 3 साल पहले किन हालात में काम की शुरुआत कर कैसा काम कर रही है मोदी सरकार.

2014 से पहले लगातार 10 सालों तक रेलवे में ऐसे कमाल होते रहे थे. यह तो केवल कुछ उदाहरण मात्र हैं. इसके अलावा केवल सस्ती लोकप्रियता बटोरने के चक्कर में रेलवे को रेलयात्री किराए से होनेवाली आय के साथ कैसा खिलवाड़ हुआ जरा यह भी देखिए.

2004 में 650 किमी की रेलयात्रा के लिए AC-2 का 1138 रूपए, AC-3 का 742 रूपए व Sleeper का 283 रूपए किराया देना पड़ता था.

आज 13 वर्ष बाद 2017 में इतनी ही लम्बी (650 किमी) रेलयात्रा का AC-2 का किराया 1430 रूपए, AC-3 का किराया 1010 रूपए, व Sleeper का किराया 386 रूपए देना पड़ता है. अर्थात 13 वर्षों में AC-2 के किराए में 25.65%, AC-3 के किराए में 36.11% और Sleeper के किराए में 36.39% वृद्धि हुई. मुख्यतः इस वृद्धि का महत्वपूर्ण हिस्सा मोदी सरकार के कार्यकाल का ही है.

लेकिन इसी समयावधि (13 वर्ष) के दौरान रेलसेवा का उपयोग करने वालों की कमाई में तथा रेल से जुड़े खर्चों में कितनी वृद्धि हुई जरा यह भी देखिए…

सबसे पहले बात सबसे कमजोर वर्ग किसान की.

गेंहूं का समर्थन मूल्य जो 2004 में 620 रूपए था वो आज 1650 रूपए हो चुका है. अर्थात 166% की वृद्धि. धान का समर्थन मूल्य जो 2004 में 520 रूपए था वो आज 1550 रूपए हो चुका है, यानि 198% वृद्धि. अरहर दाल का समर्थन मूल्य जो 2004 में 1390 रूपए था वो आज 5450 रूपए हो चुका है, यानि 292% वृद्धि. गन्ने का समर्थन मूल्य जो 2004 में 74.5 रूपए था वो आज 255 रूपए हो चुका है, यानि 242% वृद्धि.

इस दौरान दो वेतन आयोगों की संस्तुतियों को लागू करने के परिणामस्वरूप रेल कर्मचारियों समेत पूरे देश के सरकारी कर्मचारियों के वेतन में भी लगभग तिगुनी वृद्धि हो चुकी है.

जिस डीज़ल से रेल चलती है वो डीज़ल आज 58 रूपए प्रति लीटर है वो 2004 में 22.74 रूपए प्रति लीटर था. अर्थात 155% वृद्धि.

इन विपरीत परिस्थितियों में क्या कर सकती थी कोई सरकार? लेकिन पिछले 3 वर्षों में उसने जो किया है वो किसी अजूबे से कम नहीं है. जरा डालिये एक नज़र मोदी सरकार के कार्यो पर –

अगस्त 1947 से मार्च 2014 तक 67 वर्षों की समयावधि में देश में रेलवे के आधारभूत ढांचे के निर्माण पर लगभग 25 लाख करोड़ रूपए खर्च किये गए थे. जबकि पिछले 3 वर्षों में रेलवे के आधारभूत ढांचे के निर्माण पर लगभग 4.9 लाख करोड़ रूपए खर्च कर चुकी है मोदी सरकार. अगले 2 वर्षों में 3 लाख 70 हज़ार करोड़ खर्च करने कार्ययोजना प्रगति पर है.

इसी का परिणाम है कि…

अप्रैल 2009 से मार्च 2014 तक की 5 वर्ष की समयावधि में देश में कुल 5920 किमी रेल मार्गों का विद्युतीकरण हुआ था. अर्थात प्रतिवर्ष औसतन लगभग 1184 किमी रेल मार्गों का विद्युतीकरण हुआ.

जबकि अप्रैल 2014 से मार्च 2018 को समाप्त होने जा रहे इस वित्तीय वर्ष तक की केवल 4 वर्ष की समयावधि में देश में कुल 8200 किमी रेल मार्गों का विद्युतीकरण पूरा हो जाएगा, इसमें से लगभग 85% कार्य पूर्ण हो भी चुका है. अर्थात इन दिनों देश में प्रतिवर्ष औसतन लगभग 2050 किमी रेल मार्गों का विद्युतीकरण हो रहा है. यानि 58% की वृद्धि.

इसी तरह अप्रैल 2009 से मार्च 2014 तक की 5 वर्ष की समयावधि में देश में रोजाना औसतन 4.3 किमी नई रेल लाइनें बिछाई गईं. अर्थात 5 वर्षों में लगभग 7850 किमी. जबकि अप्रैल 2014 से मार्च 2017 तक की 3 वर्ष की समयावधि में देश में रोजाना बिछाई गई नई रेल लाइनों के औसत में 85% की वृद्धि हुई और रोजाना 7.7 किमी नई रेल लाइनें बिछाई गईं. अर्थात केवल 3 वर्ष में 8431 किमी.

अगले 2 वर्षों में इस औसत को 25 किमी प्रतिदिन करने की कार्ययोजना बना चुकी है सरकार.

इसी तरह अप्रैल 2004 मार्च 2014 तक की 10 वर्षों की समयावधि में ट्रेनों के यात्री डिब्बों में 10,000 बायो टॉयलेट फिट किये गए थे. जबकि पिछले अप्रैल 2014 से मार्च 2017 तक की 3 वर्ष की समयावधि में ट्रेनों के यात्री डिब्बों में 32,000 बायो टॉयलेट फिट किये जा चुके हैं.

इसी तरह अप्रैल 2009 से मार्च 2014 तक की 5 वर्ष की समयावधि में देश मे 3810 नए रेलवे ओवरब्रिज/अंडर ब्रिज बनाये गए थे. औसतन 762 प्रति वर्ष. जबकि अप्रैल 2014 से मार्च 2017 तक की 3 वर्ष की समयावधि में 3462 नए रेलवे ओवरब्रिज/अंडर ब्रिज बनाये जा चुके हैं. औसतन 1162 प्रतिवर्ष. यानि 65% की वृद्धि.

यह तो देश के आधारभूत ढांचे से जुड़े केवल एक विभाग की कहानी है. सड़क, बिजली, कृषि में भी मोदी सरकार ने ऐसी ही अदभुत उपलब्धियां हासिल की हैं.

उनका उल्लेख अगले भागों में.

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