एक दौर था जब भाजपा का नेतृत्व संघ से आये हुए अनुशासित स्वयंसेवक किया करते थे. इन्हें अपना कुछ नहीं दिखता था, ना अपमान, ना सम्मान, बस काम और राष्ट्र के प्रति समर्पण. चाहे जितना भी बड़ा नेता हो, वो स्वयं को कभी बड़ा दिखाकर पेश नहीं करता था, ज़मीन पर फट्टी पे बैठकर भी ख़ुद को सम्मानित अनुभव करते थे.
और अब भाजपा में दिखते हैं तो ऐसे चेहरे जिनसे टपकता है केवल और केवल स्वार्थ, लालच, फ़ोटो खिंचवाने की होड़ और अपने नेता की चापलूसी. पहले आप भाजपाइयों और बाकी पार्टियों के नेताओं में स्पष्ट फ़र्क देख सकते थे और अब आप फ़र्क ही नहीं कर सकते कि ये कांग्रेसी छुटभैया है कि भाजपाई?
अभी उत्तराखण्ड में एक कार्यक्रम में भारतीय महिला क्रिकेट टीम की खिलाड़ी एकता बिष्ट को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया था. बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम में वे स्टेज पर कुर्सी में बैठी थीं. पर जैसे ही राज्य के मुख्यमंत्री आये, स्टेज पर छुटभैय्यों की भीड़ लग गई. सब मुख्यमंत्री के साथ फोटो खिंचवाने के लिए चढ़ बैठे.
किसी को होश ही ना रहा कि मंच पर एक मुख्य अतिथि और भी बैठी हैं. बेचारी को धक्कामुक्की के बीच स्टेज से उतार दिया गया, वो चुपचाप नीचे एक कुर्सी में जाकर बैठ गयीं, बिना किसी से कुछ कहे.
फ़िर जब मुख्यमंत्री ने उनका नाम लिया और सम्मान के लिये स्टेज पर बुलाया तब जाकर छुटभैय्यों को पता पड़ा कि हमने जिसे स्टेज से भगा दिया, वो तो स्वयं इस कार्यक्रम की मुख्य अतिथि है.
मुख्य अतिथि ना भी होती तो भी एक लड़की है जिसके साथ ऐसी अभद्रता को कत्तई सभ्य और शोभनीय नहीं कहा जा सकता… उस पर भी बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे आदर्श कार्यक्रम में.
भाजपा अध्यक्ष अमित भाई शाह और प्रधानमंत्री मोदी पार्टी को बड़ा करने में जुटे हैं, मेहनत कर रहे हैं पर थोड़ा सा ध्यान पार्टी को अनुशासित करने पर भी दें क्योंकि ये नेहरूवियन कांग्रेसी कल्चर नहीं बल्कि पंडित दीनदयाल और श्यामा प्रसाद मुखर्जी वाली भाजपा है, अटल-आडवाणी वाली भाजपा है.
ये डॉ हेगडेवार और गोलवरकर जी जैसे लाखों स्वयंसेवकों के संस्कारों से सिंचित होने वाली भी भाजपा है जिसका अपना अनुशासन और गौरव, दर्शनीय व अनुकरणीय रहा है. इसकी मर्यादा, संस्कारों और अनुशासन का ध्यान धरना परम आवश्यक है अन्यथा इस पार्टी को भी जनमानस के चित्त से उतरने से कोई शक्ति नहीं बचा पाएगी, सनद रहे.