पिछले वर्ष नवम्बर में जब SBI और अन्य कुछ बैंकों ने विजय माल्या के लोन को Write off किया था, तो मीडिया में हवा बनाई जाने लगी कि केंद्र सरकार ने माल्या का लोन माफ़ कर दिया. तब रविश कुमार write off को लेकर पत्रकारीता की चरम सीमा लाँघ चुके थे. वित्त मंत्री द्वारा ये सफ़ाई दिए जाने के बावजूद कि राइट ऑफ़ का मतलब लोन माफ़ी नहीं होता बल्कि उसे performing asset से non performing asset (NPA) वाली बुक में दर्ज कराना होता है जिसके बाद उसके रिकवरी की प्रक्रिया शुरू होती है.
बावजूद इसके रविश कुमार अपनी सड़कछाप व कुटिल पत्रकारिता पर पूरे अटल रहे, इन्होंने एक बार भी ये नहीं पूछा कि ये सारे लोन कांग्रेस काल में किस आधार पर पूँजीपतियों को दिए गए थे? बैंकों की इस दशा का ज़िम्मेदार कौन है? न ये सवाल उस समय पूछा गया जब ये लोन बैंक पूँजीपतियों को दे रहे थे और न ही ये आज पूछा. उल्टा ये उस सरकार से पूछ रहे हैं जो रिकवरी करने की दिशा में आगे बढ़ी है.
जैसे कि ED द्वारा विजय माल्या की 1400 करोड़ की सम्पत्ति और पुनः 6600 करोड़ की सम्पत्ति अटैच कर ली गयी. माने कुल 8000 करोड़ की सम्पत्ति अटैच कर ली गई, लगभग इसी के आस पास विजय माल्या का लोन भी था. ये समाचार अख़बार में आया लेकिन TV मीडिया में जितनी ज़ोर ज़ोर से राइट ऑफ़ के ऊपर छाती कूटी गई था, उतनी ज़ोर ज़ोर से ये बात नहीं बतायी गयी. NDTV देखना छोड़ चुके भक्तों से फ़ेसबुक पर गाली खाने वाले रविश कुमार ने भी इस पर कुछ नहीं लिखा. तब राइट ऑफ़ पर इन्होंने इतना बवाल किया था कि DD न्यूज़ पर SBI के चेयरमैन तक को राइट ऑफ़ का मतलब बताना पड़ा था. लेकिन इसपर मुँह से एक शब्द नहीं निकला. हाय रे मक्कारी!
ऊपर से अब रविश कुमार नया शगूफा लेकर आए कि उत्तर प्रदेश में 50 पैसा, 68 पैसा लोन माफ़ हुआ है, सरकार ने किसानों के साथ मज़ाक़ किया है. जिसे लेकर फिर से अफ़वाह का बाज़ार गरम हो गया. इधर UP का किसान कुछ नहीं बोला क्योंकि उसका लोन वास्तव में माफ़ हुआ था, लेकिन प्रपोगंडा देखिए उधर आंध्र के एक NGO ने जो ख़ुद को किसान हितैषी बताती है, प्रधानमंत्री को जन्म दिवस पर 68 पैसे का चेक भेजा. लोग फ़ेसबुक पर मोदी की आलोचना करने लगे. लेकिन फिर से देर सबेर इनकी सड़कछाप पत्रकारिता धूल फाँक गई, सच सामने आ गया.
ये भी हवा बनाई गई कि बैंक आम आदमी को लूट रहे हैं, न्यूनतम बैलेंस से कम रखने पर पैसे कटेंगे. SBI ने ऐसी कटौतियाँ करके फ़लाँ करोड़ बना लिया. लेकिन किसी मीडिया वाले ने इस बारे में सही जानकारी नहीं दी. मालूम हो कि अक्सर लोग अनायास दो तीन खाते खुलवा के रखते हैं, इस्तेमाल एक का करते हैं लेकिन बैंक इन खातों के मेंटेनेस के लिए अनायास ख़र्च करता रहता है, उसे हासिल कुछ नहीं होता, जिससे उसकी दक्षता प्रभावित होती है.
ये मिनिमम बैलेंस वाला फ़ंडा इसीलिए आया है ताकि लोग सहूलियत का बेजा इस्तेमाल न करें. लेकिन वहीं यदि किसी को लगता है कि वो 5 या 10 हज़ार भी खाते में पूरे महीने नहीं रख पाएगा, उसके लिए भी बैंकों के पास बेसिक सेविंग अकाउंट है जिसमें ज़ीरो बैलेंस रह सकता है. जनधन खाते भी ऐसे ही अकाउंट हैं. बैंक स्वतः कस्टमर के हिसाब से ही खाते खोलता है, इसीलिए मिनिमम बैलेंस न मेंटेन होने पर पैसे ग़रीबों के नहीं कटे, ये उनके कटें जिनके फ़िज़ूल में 2-3 अकाउंट थे, लेकिन इस्तेमाल एक का करते थे.
कहने का मतलब, अफ़वाह फैलाने का क्रम जारी रहेगा. ये कोई नई बात नहीं है. अफ़वाह आएँगी, ध्वस्त होंगी. झूठ ज़्यादा दिन टिकता नहीं है. लेकिन जितने दिन टिकता है, नुक़सान करता है. प्रश्न उठता है कि क्या इतने दिनों में भी इन धूर्तों की पहचान नहीं हो सकी है? क्यों बार बार इनकी अफ़वाहों का शिकार होना, उस नेता पर बार बार क्यों शक करना जिसका ट्रैक रिकॉर्ड एकदम साफ़ रहा है!