सर्जिकल स्ट्राइक के समय सभी कट्टर शेर पाकिस्तान से आरपार की लड़ाई के लिए गुर्रा रहे थे. उस समय मैंने सम्पूर्ण समक्ष युद्ध के विरोध में लिखा था. कारण भी बताये थे कि पहले जो दो युद्ध हुये थे वे केवल सीमा पर ही हुये थे. तब प्रक्षेपास्त्र (missiles)नहीं चले थे.
आज हमारे पास प्रक्षेपास्त्र हैं तो पाकिस्तान के पास भी हैं. भारत के किसी भी नगर में कहीं भी प्रक्षेपास्त्र गिराये जा सकते हैं. उनसे जो हानि होगी उसकी पूर्ति करने में आर्थिक क्षति तो होगी ही, अभी जनता की जो मन:स्थिति है कि बोला तो तुरंत चाहिये, ऐसी स्थिति अराजकता को निमंत्रण होगी.
युद्ध अपने साथ-साथ अभाव (shortage) भी लाता है जिससे वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य किसी के नियंत्रण में नहीं रह जाते. सेवायें ठीक से नहीं मिलतीं. औषधियों तथा संसाधनों के अभाव में रोगी अधिक मरते हैं. आज आप की चूक से भी आप का कोई सगा सम्बंधी मरा तो आप अपना क्रोध चिकित्सक और स्वास्थ्यकर्मियों पर निकलते हैं, उस स्थिति में आप क्या करेंगे? सोचिये.
पानी नहीं आता है तो आज आप की क्या हालत होती है? किसी महानगर में, आपूर्ति तंत्र (supply system) ध्वस्त हो जाये तो आप क्या करेंगे? सोचिये.
इस युग में उचित यही है कि युद्ध आर्थिक हो, तकनीक के प्रयोग से हो, राजनैतिक हो. छिपे भीतरघातियों को ढूँढ़ कर निकाला जाय, उन्हें बाहर खुले में आने के लिये विवश किया जाए. शत्रु की उनके सहारे युद्ध की तीव्रता बढ़ाने की क्षमता पर चोट हो, यही आज सफलता होती है.
उस समय लोग मेरे पीछे पड़ गये थे, ट्रोलिंग करते मेरी माँ तक पहुँच गये थे, वामियों का गुप्त सहयोगी तक बताया गया, क्या क्या नहीं… अस्तु.
ऊपर एक वाक्य लिखा है, “उस समय मूल्य किसी के नियंत्रण में नहीं रह जाते”.
हाँ, पता है कि यह युद्ध का समय नहीं है और न ही मैं आप को बढ़े दामों के समर्थन में कोई तर्क दे रहा हूँ.
मुझे इतना ही कहना है कि दामों में अनियंत्रित वृद्धि युद्ध के साथ साथ अनिवार्य होती है. इसके साथ ही बहुत उथल पुथल होती है, नौकरियों का भी ठिकाना नहीं रहता.
आज पेट्रोल के दाम बढ़े तो मोदी जी को जो लोग पानी पी-पी कर कोस रहे हैं, लगभग वे ही सभी पाकिस्तान से आर पार की लड़ाई के प्यासे थे.