मैं कोई अर्थशास्त्री नहीं, मगर इतना दावे से कह सकता हूँ कि जब बड़े-बड़े डिग्रीधारी अर्थशास्त्री नहीं थे तब दुनिया में भुखमरी ना के बराबर थी. जैसे-जैसे इन सफेदपोशों की संख्या बढ़ रही है दुनिया में भुखमरी बढ़ रही है. क्यों?
क्योंकि ये व्यवस्था को क्लिष्ट बनाते हैं, जो सिर्फ इन्हें समझ आये और जिसका फायदा उठा कर, ये अपने और अपने मालिक के लिए व्यवस्था में से अधिक से अधिक हिस्सा हड़प सकें.
कोई एक या कुछ लोगों का समूह, अपनी प्राकृतिक आवश्यकता से अधिक हिस्सा छीनेगा तो स्वाभाविक है कि कुछ लोगों के हिस्से में से यह घटेगा. और इस तरह जिसके पास अधिक होगा वो अमीर और जिसके पास नहीं होगा वो गरीब बन जाएंगे.
इतिहास को देखें तो एक दिलचस्प बात नजर आएगी, हर काल में खजांची और मुंशियों ने अपने राजा और सेठ के साथ मिल कर ये खेल खूब खेला. यही कारण है जो लोग इनसे सदा बना कर रखते आये हैं, मगर ये कभी इज्जत नहीं पाते और इनकी इमेज सदा एक धूर्त की होती है.
ऐसे में एक राजा का रोल महत्वपूर्ण हो जाता था कि वो इन धूर्तो को कैसे नियंत्रित करता है.
आज अमेरिका इन सफेदपोश लोगों को बनाने की सबसे बड़ी फैक्ट्री है. और उसके पाले-पढ़ाये हुए अर्थशास्त्रियों ने दुनिया में आर्थिक आतंक मचाया हुआ है. इनके बल पर ही आज कई राष्ट्र अमीर, तो कई गरीबी से जूझ रहे हैं.
यही कारण है जो भारत जैसे उपभोक्ता देश में किसी कम्पनी का मुख्य अधिकारी सेल्स वाला बनाया जाता है जिससे वो अधिक से अधिक माल बिकवा सके, जबकि अमेरिका में अधिकांश कम्पनी के हेड फाइनान्स के होते हैं, जिससे ये पूरे विश्व में पैसे का खेल खेल सकें.
इसलिए जब अमेरिका का पाला-पढ़ाया अर्थशास्त्री किसी अन्य देश की अर्थव्यवस्था पर कमेंट करता है तो कान खड़े हो जाना चाहिए. फिर चाहे वो रघुराम राजन और अमर्त्य सेन हों या चिदंबरम.