पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं.. बचपन में हिंदी के मुहावरों में इसको भी पढ़ा था पर असली अर्थ समझ में आया तब जब 67 वर्ष पूर्व 17 सितंबर को जन्मे एक बच्चे के बचपन के बारे में पता चला. 67 वर्ष पूर्व एक चाय वाले के घर में तीसरी संतान का जन्म हुआ.
साधारण से परिवार में एक असाधारण व्यक्तित्व और जीवन वाले बच्चे का जन्म हुआ है, उस समय किसी को भी नहीं पता था. जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता गया उसके काम और बुद्धि उसको दूसरों से अलग बताने लगी. बच्चा कुशाग्र था तो थोड़ा शरारती भी था पर संवेदनशील और जिम्मेदार भी था.
माता-पिता की सहायता करने के मौके ढूँढता रहता था, बिना बोले ही स्वयं आगे बढ़ कर कुछ जिम्मेदारियां उठा लेता था. माँ घर से बाहर हों तो घर के जो भी काम उससे हो सकते हों कर दिया करता था जिससे माँ जब वापस आए तो उनको कुछ कम काम करना पड़े. कुछ बड़े होने पर पिता की भी सहायता करनी शुरू कर दी.
पिता की चाय की दुकान रेलवे स्टेशन के बाहर थी. सुबह पिता के दुकान पर पहुँचने से पहले ही जा कर दुकान खोल कर साफ़-सफाई कर देना और चूल्हा जला देना दिनचर्या का हिस्सा बन गया था. ऐसा करने के पीछे एक मंशा यह भी थी कि सुबह पहली ट्रेन के आने से पहले पिताजी चाय बना सकें जिससे उनकी आय में वृद्धि हो.
यह बच्चा अपने परिवार की तीसरी संतान था, घर की जिम्मेदारी इसकी तो नहीं थी. इससे बड़े दो और भाई थे जिनकी जिम्मेदारी पहले बनती थी. पर कभी इसने ये नहीं कहा कि बड़े भाई काम क्यों नहीं करते हैं? वो अपनी इच्छा से माता-पिता की सहायता करता था.
छोटी सी उम्र में भी वर्तमान स्थिति से आगे बढ़ने के लिए जो कुछ भी संभव था वो करता था. दोपहर में जब लंच ब्रेक होता था तब सारे बच्चे खाने या खेलने में व्यस्त रहते थे, उस समय यह बच्चा पिता की दुकान पर उनकी सहायता के लिए आ जाता था.
घर में गरीबी थी पर जहाँ चाह वहाँ राह… संयोगवश गाँव में एक लाइब्रेरी भी थी. पढ़ने का शौक बिना पुस्तक ख़रीदे ही पूरा हो जाता था. गाँव में एक तालाब भी था जहाँ बच्चे खेल-खेल में ही तैराकी सीख जाते थे. परंतु उस तालाब में मगरमच्छ भी थे जिनसे बच कर तैराकी करना बड़ी चुनौती थी.
शायद यहीं से चुनौतियों का सामना करना और भयरहित हो कर अपने लक्ष्य की तरफ चलना बालक नरेंद्र ने सीखा. बचपन में ही किसी ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी कि नरेंद्र या तो बड़े सन्यासी बनेंगे या देश के लिए महान काम करेंगे. उस ज्योतिषी की बात पर विश्वास था या माँ की स्वानुभूति जिससे 2014 में हीरा बा पूरे आत्मविश्वास से कहती थीं “मेरा बेटा प्रधानमंत्री जरूर बनेगा”.
जो भी हो मोदी जी ने बचपन में जैसे थे आज भी वैसे ही हैं. अपनी माँ के सामने 6 साल के बच्चे और काम करने में 16 साल के किशोर वाली ऊर्जा वाले. कागज पर उनकी उम्र भले ही 67 वर्षों की हो पर 46 वर्ष वाले व्यक्ति भी इनके सामने बुजुर्ग ही लगते हैं.
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यथा राजा यथा प्रजा. गर्व करिए कि आपके पास एक ऊर्जावान राजा है उससे प्रेरणा लीजिए. ईश्वर को धन्यवाद दीजिए कि आज के दिन उन्होंने एक अच्छी आत्मा को आपके बीच भेजा. जीवेत् शरद शतम् के अनुसार मोदी जी भी 100 वर्ष की आयु पूर्ण करें. हमारे प्रेरणास्त्रोत बनें रहें. ईश्वर से यही प्रार्थना है.