सबको पता है कि क्या है इस देश की मूल पहचान

जब असम में था तक किसी ने एक सत्य-कथा सुनाई थी कि प्रशासनिक अधिकारियों का कहीं प्रशिक्षण-वर्ग लगा था, जहाँ देश भर से प्रशासनिक अधिकारी आये हुये थे. प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के एक सत्र में सबसे कहा गया कि आप सब चूँकि भारत के अलग-अलग भागों से आये हैं और वहां की विशिष्टताओं के वाहक हैं, इसलिये एक-एक कर सामने आइये और अपने प्रदेश, अपनी परंपरा, खान-पान, भाषा-बोली के बारे में आकर बताइये ताकि यहाँ हम सबको भारत को जानने-समझने का मौका मिले.

वहां के सहभागियों में दो लोग नागालैंड से भी गये थे. जब उनकी बारी आई तो उन्होंने चर्च, बाईबल, ईस्टर, लास्ट-सपर, जॉब (अय्यूब) वगैरह के बारे में बताना शुरू कर दिया. उन्होंने बताना शुरू ही किया था कि वहां खड़े बड़े अधिकारियों ने उनको लगभग डपटते हुए मंच से उतार दिया. उन अधिकारियों ने उनसे कहा कि “हम सबकी बड़ी अपेक्षा थी कि आप हमें नागालैंड के लोगों के बारे में, वहां की जनजातियों, भाषा-बोली, हस्त-शिल्प, पर्व-त्योहार और परंपराओं के बारे में बतायेंगे पर आपने हमें चर्च और बाईबल पढ़ाना शुरू कर दिया, अगर यही सुनना था तो हमारे शहर में चर्च नहीं हैं क्या?”

हम भारत से बाहर जाते हैं या दुनिया से कोई भारत में आता है तो उनकी दिलचस्पी और जिज्ञासा वेदों और उपनिषदों के बारे में जानने की रहती है. उन्हें योग और गीता में दिलचस्पी होती है, उन्हें हमारे कुंभ और नदी रूप में पूजित होने वाली गंगा आकर्षित करती है. उन्हें यहाँ के साधु-संन्यासी और यहाँ के मठ-मंदिर खींच कर लाते हैं.

उन्हें भारत का मतलब श्रीराम, श्रीकृष्ण, वेद, योग और अध्यात्म लगता है. राष्ट्र भले सेकुलर घोषित हो, राष्ट्र के प्रमुख भले ही किसी मज़हब के मानने वाले हों पर विदेश से आने वाला कोई भी राष्ट्रप्रमुख हवाई-जहाज से निकल कर हाथ जोड़कर नमस्ते ही करता है. यह इस बात का प्रमाण है कि भारत की मूल संस्कृति क्या है और दुनिया हमको किस रूप में पहचानती है.

पाकिस्तान में जुल्फिकार अली भुट्टो प्रधानमंत्री हुआ करते थे. उनके कमरे में भगवान बुद्ध की प्रस्तर प्रतिमा रखी होती थी और दीवार पर हड़प्पा और मोहनजोदाड़ो की तस्वीरें. वो बड़े गर्व से आने वाले अतिथियों को अपने मुल्क की पहचान के रूप में उसे दिखाते थे.

जुल्फिकार अली भुट्टो मुस्लिम थे पर अपनी सांस्कृतिक जड़ों को पहचानते थे, वो जानते थे कि एक इस्लामी मुल्क के रूप में पाकिस्तान को आगे करके वो इस्लामिक देशों के लाड़ले तो बन जायेंगें पर उनके मुल्क की मूल पहचान, जो इस्लाम के आने से काफी पहले की है, खत्म हो जायेंगी.

पी सी एलॅक्ज़ॅण्डर लंबे समय तक महाराष्ट्र के राज्यपाल रहे. पूजा-पद्धति से ईसाई थे पर एक इंटरव्यू में जब उनके पूछा क्या कि विश्व में भारत की सबसे बड़ी देन क्या है जिस पर हमें गौरव करना चाहिये? तो उनका जवाब था, “वेद”.

आज के कटे-फटे भारत का प्रबुद्ध नागरिक हो या पाकिस्तान, बर्मा या बांग्लादेश के रूप में अलग हुये इसके टुकड़ों में रहने वाले भुट्टो जैसे लोग, सबको पता है कि इस देश की मूल पहचान क्या है, सबको पता है कि दुनिया हमें किस रूप में देखती है और हमें किस रूप में देखना चाहती है, पर दुर्भाग्य से इस समझ और सत्य का विस्मरण हमारे यहाँ हो चुका है.

भारत को भारत रहने दीजिये, इसकी मूल पहचान का हरण मत कीजिये. जालियाँ और नक्काशियाँ दुनिया के कई देशों में हैं, पर जो भारत के पास है वो और कहीं भी नहीं है. दुनिया इसे ही देखने और समझने भारत आये तभी भारत, भारत रहेगा. सब कुछ करिए, पर कृपा कर भारत की मूल पहचान का सौदा मत कीजिये.

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