हम दोनों के बीच मौन भी उतना ही मुखर है, जितना मौन है संवाद में

वर्ष के आख़िरी दिन जन्मा
पिछले जन्म का वो रिश्ता
मेरी मुक्ति के वर्तुल की अंतिम त्रिज्या है
जिसके पहले दर्शन से उपजी स्मृतियों से
चुन कर लाई हूँ मैं यह इकलौती बात
कि आकर्षण केवल देह का नहीं होता
कभी कभी आत्मा भी आकर्षित करती है…

वो ठोस रहता है प्रारब्ध के विपरीत
अपने पूर्व कटु अनुभवों को दोहराने से बचने के लिए
मैं प्रारब्ध को स्वीकार कर
उन अनुभवों से गुज़रकर तरल हो चुकी हूँ

वो हर बार वर्ष के अंतिम दिन जन्मता है
पूर्व कर्मों से मुक्ति के लिए
मैं मुक्ति के अंतिम दिन
पहले जन्म का हिसाब जोड़ बच जाती हूँ मुक्ति से…

मेरे अंतिम जन्म से प्रारंभ होता है
उसकी पहली यात्रा का पल
और वो उस पल को पलकों में छुपा कर
परिभाषित कर देता है कर्म, कर्मफल और प्रारब्ध को…

वो नहीं जानता परिभाषाएँ भाषा से उत्पन्न हुई विकृतियाँ हैं
इसलिए हम दोनों के बीच मौन भी उतना ही मुखर है
जितना मौन है संवाद में…

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