1965 के भारत-पाक युद्ध में वायुसेना ने पहली बार आक्रामक तेवर दिखाए और ऐतिहासिक सफलता हासिल की. इसके महानायक एयर मार्शल अर्जन सिंह का आज 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया. देश के इस महान सैनिक को शत शत नमन.
1962 की जंग में चीन के हाथों हुई शर्मनाक पराजय के उपरांत 1965 की जीत ने भारतीय सेना के साथ ही देश की जनता का भी मनोबल बढाया. स्व.अर्जन सिंह का कुशल नेतृत्व उसमें सहायक बना. वे द्वितीय विश्व युद्ध में भी भारतीय वायुसेना का हिस्सा थे.
सन 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय चीफ ऑफ एयर स्टाफ रहे अर्जन सिंह की कुशल नेतृत्व और दृढ़ता के साथ स्थिति का सामना करते हुए भारत की विजय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तत्कालीन रक्षा मंत्री वाई. बी. चव्हाण ने कहा था, ‘एयर मार्शल अर्जन सिंह हीरा हैं, वह अपने काम में दक्ष और दृढ़ होने के साथ सक्षम नेतृत्व के धनी हैं.’
उन्हें भारत सरकार ने आजीवन एयर मार्शल बनाकर वही सम्मान दिया जो जनरल करियप्पा और जनरल मानेक शॉ को बतौर फील्ड मार्शल को प्राप्त था. 15 अगस्त 1947 को लालकिले के ऊपर जिन विमानों ने सलामी उड़ान भरी उनमें एक स्व. अर्जन सिंह उड़ा रहे थे.
वायुसेना में फाइव स्टार सम्मान पाने वाले अफसर अर्जन सिंह वैसे तो अपने अनुशासन के लिए जाने जाते हैं. लेकिन एक बार उन्हें कोर्ट मार्शल तक का सामना करना पड़ा. यह वक्त था आजादी से पहले का, जब सेना की कमान अंग्रेजों के हाथों में थी. युवा अर्जन सिंह ने फरवरी 1945 में केरल के एक घर के ऊपर बहुत नीची उड़ान भरी.
इसके बाद उन्हें वायुसेना का नियम तोड़ने के आरोप का सामना करना पड़ा. उनके ऊपर आरोप था कि उन्होंने सिविलियन की जानों को भी जोखिम में डाला. हालांकि अर्जन सिंह ने कोर्ट मार्शल का डटकर सामना किया. उन्होंने अपने बचाव में जो बात कही, उसके बाद उनका कोर्ट मार्शल नहीं हुआ.
बताया जाता है कि उस समय अर्जन सिंह कन्नूर केंट एयर स्ट्रीप पर तैनात थे. उन्होंने उड़ान भरी और एयरक्राफ्ट लेकर सीधे कॉरपोरेल के घर के ऊपर पहुंच गए. उन्होंने जहाज को काफी नीचे उड़ाया. कई बार कॉरपोरेल के घर के चक्कर लगाए. ऐसे में न सिर्फ कॉरपोरेल के घरवाले सड़कों पर निकल आएं बल्कि पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो गया.
यह लोगों के लिए तो काफी मजे की बात थी, लेकिन ब्रिटिश प्रशासन को यह बात पसंद नहीं आई और शिकायत ऊंचे अफसरों तक पहुंची और अर्जन सिंह को कोर्ट मार्शल का सामना करना पड़ा. हालांकि उस समय दूसरे विश्व युद्ध की वजह से ब्रिटिश सेना को काबिल पायलटों की जरूरत थी. ऐसे में ब्रिटिश सेना चाहकर भी अर्जन सिंह जैसे टैलेंटेड पायलट का कोर्ट मार्शल नहीं कर पाई.
अर्जन सिंह अपनी बहादुरी और कभी हार न मानने वाले जज्बे के लिए जाने जाते थे. वह सैन्य परिवार से ताल्लुक रखते थे. एयर मार्शल अर्जन सिंह के पिता रिसालदार थे, एक डिवीजन कमांडर के एडीसी के रूप में सेवा दी थी. उनके दादा रिसालदार मेजर हुकम सिंह 1883 और 1917 के बीच कैवलरी से संबंधित थे. उनके परदादा नायब रिसालदार सुल्ताना सिंह, 1879 के अफगान अभियान के दौरान शहीद हुए थे.