आओ सीखें हिन्दी : ताकि आपको भी ताना न मिले ‘गुजरातन कहीं की’

ma jivan shaifaly jyotirmay books making india

जैसा कि आप सब जानते ही हैं मेरा जीवन दो कालखण्डों में बंटा हुआ है. स्वामी ध्यान विनय के जीवन में आगमन के पूर्व और उनके मेरे जीवन में आगमन के पश्चात अर्थात 2008 के पूर्व एवं 2008 के पश्चात. ठीक ईसा पूर्व और ईसा पश्चात या ओशो पूर्व या ओशो पश्चात की तरह. आपको यह अतिशयोक्ति लग सकती है लेकिन मेरे लिए तो उतनी ही महत्वपूर्ण है क्योंकि जैसा मैंने पहले ही कहा, मेरे जीवन का हर किस्सा इस दो कालखण्डों में बंटा हुआ है.

तो यह किस्सा भी 2008 के पहले का है जब एक प्रसिद्ध हिन्दी वेबसाइट में उपसंपादक के रूप में कार्य करती थी. आत्ममुग्धता की पराकाष्ठा के साथ उन दिनों अपनी हर बात के साथ अपनी भाषा पर भी मुझे बड़ा गर्व हुआ करता था, क्योंकि मैं जिन लोगों के बीच रहती थी, भाषा के सन्दर्भ में मेरे आसपास ही थे. तो टोकने वाला या सुधारने वाला कोई नहीं था.

फिर आगमन हुआ विघ्नकर्ता स्वामी ध्यान विनय का अपनी पञ्च लाइन के साथ “विनाश और विध्वंस, नए सृजन के लिए”…

तो उन दिनों आकाशवाणी, दूरदर्शन पर एंकरिंग के साथ वेबसाइट के कुछ ‘वीडियो कार्यक्रम’ के लिए Voice Over भी किया करती थी. चूंकि स्वामीजी से संपर्क तब ईमेल और फोन तक ही था तो कार्यक्रम के पहले उन्हें लेख या विषयवस्तु फोन पर ही पढ़कर सुनाती थी.

बस फिर क्या था इश्क़ विश्क़ तो गया तेल लेने, वो जब शिक्षक के रूप में होते हैं, तो फिर पूरे शिक्षक ही हो जाते हैं, प्यारी प्यारी बातें एकदम डांट में बदल गयी… अरे गुजरातन कहीं की… है नहीं हैं, विपरित नहीं विपरीत….. मुर्ख नहीं मूर्ख… बधीर नहीं बधिर… और भूख लगी है तो पहले कुछ खा आइये, कम से कम ‘सार्वजनिक’ बोलते हुए ‘र’ को तो मत खाइये…

अब इनका यह रूप पहली बार देख रही थी, और पहली बार भाषा को लेकर किसी से डांट खा रही थी… और ये सिलसिला आज तक जारी है… दो वर्ष पहले शिमला के एक कवि सम्मलेन में गयी थी, पूरे पंद्रह दिन मेरी भाषा पर कक्षा ली गयी, लेकिन फिर कार्यक्रम के बाद जब वीडियो बनकर आया तब भी यही झिड़की मिली… ‘हे ईश्वर ये गुजरातन कभी नहीं सुधरेगी…’

अपना एक ही जवाब हाँ हाँ तो ठीक है ना मोदीजी भी तो मेरी तरह गुजराती है, उनकी हिन्दी तो मुझसे भी गयी बीती है फिर भी लाखों लोग उनको प्रेम से सुनते हैं. इसलिए भाषा की परिपूर्णता से अधिक आपका प्रस्तुतिकरण होना चाहिये… और फिर आपके बब्बा (ओशो) उनकी हिन्दी और अंग्रेजी दोनों ही माशाअल्लाह है… फिर भी आप कैसे उनको डूब कर सुनते हैं…

अब उनका जवाब – तो आप लाइए मोदीजी वाली बात, उनके उठने बैठने का तरीका, उनके बोलने का तरीका, हाथों को उठाने और इंगित करने के साथ देखने की अदा… और बब्बा की तो बात ही छोड़िये, उनकी भाषा की वो त्रुटि ही उनका वास्तविक जादू है, वो यदि वैसे ना बोलते होते तो वो जादू पैदा ही नहीं होता… आप अब बहाने मत बनाइये… आगे जाकर आपको भी मंचस्थ होकर भाषण देना है इसलिए अभी से टोकता रहता हूँ…

तो जनाब इस हिन्दी कक्षा के चलते उन्होंने प्रसिद्ध उपन्यासकार गुरुदत्त की साढ़े आठ सौ पेज की पुस्तक “परित्राणाय साधुनाम” मेरे मुंह से सुनी और साथ ही मेरी अच्छे से हिन्दी की कक्षा ली गयी. समयाभाव के कारण पूरे चार महीने में यह पुस्तक पूरी पढ़कर सुना पाई. अब बारी है उस पुस्तक की समीक्षा की, देखते हैं वो कब लिख पाती हूँ…

चूंकि मेरी प्राथमिक पढ़ाई गुजराती माध्यम में हुई है तो बाराखड़ी और पहाड़े गुजराती में ही याद किये है. इसलिए मुझे इस उम्र में मेहनत करनी पड़ रही है, लेकिन जब बच्चों को इनके साथ बात करते हुए सुनती हूँ तो बस सुनती ही रह जाती हूँ.. बच्चों के मुंह से शीतल जल, ऊष्ण जल, चरण पादुका जैसे शब्द सुनती हूँ तो मुग्ध हो जाती हूँ.

इनकी देखा देखी आजकल बच्चे भी पूछने लगे हैं. मम्मा आप गुजराती माध्यम में पढ़ी हो ना? मैं खुश होकर कहती हूँ हाँ क्यों… तभी आप “Cone” कोन को कौन बोलती हैं…

ठहर पापा के चमचे अभी बताती हूँ…
और वो ये भाग… वो भाग.. मुझे गुजराती में गिनती सुनाता हुआ चिढ़ाता जाता… अढार, ओगणीस… वीस…

अब आपको तो कोई “गुजरातन कहीं की” का ताना देगा नहीं, लेकिन SMS, Whatsapp और फेसबुक पोस्ट्स ने जो हिन्दी की दशा बिगाड़ी है उसको रोकने के लिए हम छोटी छोटी बातों का ख्याल अवश्य रख सकते हैं. आपके साथ शायद मेरी भी हिन्दी कुछ सुधर जाए..

१. एकवचन के साथ “है” पर बिंदी नहीं होती.
बहुवचन के साथ “हैं” पर बिंदी होती है.

उदाहरण

वह आ रहा है
वे आ रहे हैं

वह भूल गया है
हम भूल गए हैं

२.
एक बार फिर “वही” सन्देश दोहरा रही हूँ कि SMS, Whatsapp संदेशों के साथ बिगड़ रही भाषा की शुद्धता को बनाए रखने का “यही” एक प्रयास है.

लेख पढ़ने के लिए तो “वहीं” जाना पड़ेगा… बाकी ये कक्षा “यहीं” चलेगी … मुझे भी आप लोगों के सहयोग से अपनी भाषा में सुधार करने को मिलेगा…

ऊपर के वाक्य में “वही” और “यही” और नीचे दिए गए वाक्य में “वहीं” और “यहीं” का फर्क समझिये…

नीचे के वाक्य में “यहीं” और “वहीं” में बिंदी है क्योंकि यहाँ जगह का उल्लेख है.
बाकी आप फिर भी “वही” गलती दोहराएंगे यह कहते हुए कि मोबाइल पर इतनी मेहनत कौन करे. हिन्दी को बचाना है तो थोड़ी मेहनत “यहीं” कर लीजिये… बाद में नहीं करनी पड़ेगी.

नोट : फिर को PHIR पढ़िए जो सही है FIR (फ़िर) मत पढ़िए, क्योंकि इसमें नुक्ता नहीं लगता, ये फूल वाला फिर है FOOL वाला फ़िर नहीं.

३.
गलत – बाद में नहीं “करना” पड़ेगी…

सही वाक्य होगा- बाद में नहीं करनी पड़ेगी..

क्योंकि हिन्दी में क्रिया कर्ता के अनुसार नहीं बल्कि कर्म के अनुसार लगती है.

जैसे : तुम्हें रोटी खाना पड़ेगी (गलत)
तुम्हें रोटी खानी पड़ेगी (सही)

तुम्हें दूध पीना पड़ेगा
क्योंकि दूध पुल्लिंग है. पीने वाला यानी कर्ता स्त्री हो या पुरुष.

चूंकि कर्म “मेहनत” स्त्रीलिंग है इसलिए करनी पड़ेगी.

आज की हिन्दी कक्षा यहीं समाप्त होती है. स्वामीजी को पढ़वाये बिना यह लेख प्रकाशित कर दिया है, तो आप जल्दी से गलतियां ढूंढकर मुझे बता दीजिये ताकि उनके पढ़ने से पहले ही ठीक कर दूं और उनसे ताना न सुनना पड़े… “गुजरातन कहीं की”.

Comments

comments

LEAVE A REPLY