भारतीय संविधान के निर्माणकर्ताओं में से एक डॉ॰ अंबेडकर चाहते थे कि संस्कृत इस देश की राष्ट्र भाषा बने, लेकिन अभी तक किसी भी भाषा को राष्ट्र भाषा के रूप में नहीं माना गया है. सरकार ने 22 भाषाओं को आधिकारिक भाषा के रूप में जगह दी है. जिसमें केन्द्र सरकार या राज्य सरकार अपने जगह के अनुसार किसी भी भाषा को आधिकारिक भाषा के रूप में चुन सकती है.
केन्द्र सरकार ने अपने कार्यों के लिए हिन्दी और अंग्रेजी भाषा को आधिकारिक भाषा के रूप में जगह दी है. इसके अलावा अलग अलग राज्यों में स्थानीय भाषा के अनुसार भी अलग अलग आधिकारिक भाषाओं को चुना गया है. फिलहाल 22 आधिकारिक भाषाओं में असमी, उर्दू, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, संतली, सिंधी, तमिल, तेलुगू, बोड़ो, डोगरी, बंगाली और गुजराती है.
वर्तमान में सभी 22 भाषाओं को आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त है. 2010 में गुजरात उच्च न्यायालय ने भी सभी भाषाओं को समान अधिकार के साथ रखने की बात की थी. हालांकि न्यायालयों और कई स्थानों में केवल अंग्रेजी भाषा को ही जगह दिया गया है.
ऐसी हालत में आज राजभाषा दिवस पर लोगों की हिंदी प्रशस्ति भरे लेख पढ़ कर मैं सोच में पड़ गई हूँ कि मैं क्यों नहीं कुछ गुणगान कर पा रही. . . लज्जा का विषय है यह मेरे लिए, सचमुच !!
पर क्या कहूँ? मेरे लिए तो हर एक दिन ही तो हिंदी दिवस है. हर श्वास हिंदी है. हिंदी का ही ओढ़ती, बिछाती और खाती भी हूँ.
हिंदी लोकप्रिय होती है और सहज – सरल बन कर अहिंदी भाषियों द्वारा अपनाई जाती है तो भला किसे परेशानी हो सकती है ? यह तो बहुत खुशी की बात है.
लेकिन, कुछ बातें हम हिंदी भाषियों को सचेत हो कर अपनानी होगी कि हम अपनी बोली और व्यवहार से ऐसा कुछ न करें कि दूसरी भारतीय भाषाओं को असुरक्षा का अनुभव हो और उन्हें लगने लगे कि इस भाषा को उन पर थोपा जा रहा है. चुपचाप अपना काम अवश्य करें हम, बिना किसी को ठेले. ऐसे में हिंदी फिल्मों एवं उनके गानों ने खूब मदद की है हिंदी की पहुँच दूर-दराज तक पहुँचाने में. इसके लिए उनकी प्रशंसा होनी ही चाहिए.
हिंदी को जनप्रिय बनाने के लिए दूसरी भाषाओं के शब्द यदि अपनाये जाते हैं तो यह कदम निश्चित रूप से स्वागत योग्य होगा अहिंदी भाषियों के लिए और प्रयोक्ता सुलभ भी. भाषा शुचिता पर ध्यान देना भी आवश्यक है पर यह मेरे विचार से एक स्तर के बाद ही उचित रहेगा. पहला उद्देश्य इस भाषा को स्वीकृति दिलवाने का है उन क्षेत्रों में, जहाँ यह मातृभाषा तो नहीं है पर स्कूल स्तर पर पढ़ाये जाने के लिए तैयार है. लोकप्रियता बढ़ाने के लिए उन क्षेत्रों में भाषा को लोचदार बनाना उपयोगी ही सिद्ध होगा.
दो और क्षेत्र हैं जहाँ हिंदी भाषा को आज भी गंभीरता से नहीं लिया जाता – सरकारी कार्यालयों और तकनीकी शिक्षा. सरकारी कार्यालयों में जिस तरह की हिंदी का प्रयोग होता है, उससे हिंदी की भद्द ही उड़ती है. वैसी हिंदी कहीं से भी व्यवहारिक नहीं और न ही उससे हिंदी के विकास और लोकप्रियता में मदद मिलने वाली है.
ठीक उसी तरह हर प्रोफेशनल पढ़ाई के लिए इस भाषा को लेकर कोई गंभीर चिंतन नहीं झलकता. इस पर भी गंभीरता से काम करना बनता है.
सबसे बड़ी यह है कि किसी एक दिन या सप्ताह या पखवाड़े भर तक ढोल बजाने से नहीं वरंच सतत और बिना शोर शराबे के कार्य से ही सफल हो सकता है.
हिंदी को प्रत्येक दिन मेरी शुभकामनाएँ और प्रणाम.